यहां पर जमीन में गड़ा है भगवान परशुराम जी का फरसा…

-मंदिर में भगवान परशुराम के पद चिह्न है विद्यमान
देवी देवताओं के इस धरती पर अवतरित होने को कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता है। भारत में जगह-जगह पर देवी देवताओं के अवतरित होने के प्रमाण आज भी विद्यमान हैं। क्या आप एेसे स्थान के बारे जानते हैं, जहां भगवान श्री विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम जी का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है। इतना ही नहीं इस मंदिर के परिसर में भगवान परशुराम जी के पद चिह्न भी विद्यमान हैं। आईए आज आपको इस स्थान के बारे बताते हैं।

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कहां पर जमीन में गड़ा है भगवान परशुराम जी का फरसा
झारखंड के गुमला और रांची शहर के मध्य घन जगंलों में आज भी भगवान परशुराम जी का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है। नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र के अधीन आने वाले इस मंदिर को टांगीनाथ धाम कहा जाता है। फरसा तो झारखंड में टांगी कहा जाता है। इस लिए इस स्थान को टांगीनाथ धाम से पुकारा जाता है। सबसे खास बात यह है कि इस धाम में भगवान परशुराम के पद चिह्न भी मौजूद हैं।

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भगवान परशुराम ने यहां की थी घोर तपस्या
टांगीनाथ धाम के बारे कहा जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री परशुराम ने यहां पर घोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि जब भगवान श्री राम, राजा जनक द्वारा सीता के लिये आयोजित स्वयंवर में भगवान शिव का धनुष तोड़ देते हैं। तो परशुराम इस बात से क्रोधित हो जाते हैं। वह भगवान राम पर शिव का धनुष तोड़ने पर गुस्सा होते हैं। परंतु श्री राम फिर भी मौन रहते है। इस घटना को देखकर लक्ष्मण को क्रोध आ जाता है। और वह भगवान परशुराम से बहस करने लग जाते है। इसी बहस के दौरान जब परशुराम पता चलता है कि राम भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। तो वह इस बात का पश्चाताप करने के लिये इन घने जंगलों में तपस्या करने पहुंच जाते हैं। यहां वह भगवान शिव की स्थापना कर पास में अपना फरसा गाड़ कर तपस्या करने लग जाते है। यही वह जगह है जहां आज भी भगवान परशुराम का फरसा गड़ा हुआ है।

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खुले में गड़ा होने के बावजूद फरसे पर नहीं लगा जंग
टांगीनाथ धाम परिसर में सदियों से भगवान परशुराम के लोहे का फरसा गड़ा हुआ है। जो की खुले आसमान के नीचे हैं। परंतु इस फरसे की एक विशेषता यह है कि हजारों सालों के बाद भी इस फरसे पर जंग नही लगी है। यह जमीन में कितनी गहराई तक नीचे तक गड़ा है। इसकी भी कोई भी जानकारी नहीं है। लोगों का मानना है कि यह फरसा जमीन में 17 फीट नीचे तक गड़ा हुआ है। एक अन्य कथा अनुसार एक बार इस क्षेत्र मे रहने वाली लोहार जाति के कुछ लोगों ने लोहा प्राप्त करने के लिए इस फरसे को काटने प्रयास किया था। परंतु फरसे को वह लोग नहीं काट पाए। इसके बा यह लोहार जाति के लोग आपस में लड़ने लग गए। कुछ समय बाद यह लोहार जाति इस क्षेत्र को ही छोड़ गई। आज भी टांगीनाथ धाम के 15 किलोमीटर के क्षेत्र में लोहार जाति के लोग वास नहीं करते हैं।

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फरसे की आकृति कुछ त्रिशूल से मिलती है
यहां पर रहने वाले कुछ लोग टांगीनाथ धाम में गड़े फरसे को भगवान परशुराम जी का फरसा नहीं मानते है। उनका मानना है कि यह भगवान शिव का त्रिशुल है। पुराण में वर्णित कथा अनुसार जब एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते है। गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार करते है। शनि देव त्रिशूल के प्रहार से अपने आप को किसी तरह बचा लेते है। परंतु शिवजी का फैंका हुआ यह त्रिशुल एक पर्वत की चोटी पर जा कर धस गया। यह वहीं त्रिशुल है, जिसे भगवान शिव ने शनि देव पर फैंका था। क्योंकि टांगीनाथ धाम मे गड़े हुए फरसे का उपरी हिस्सा त्रिशूल की भांति ही दिखाई देता है। इस फऱसे या त्रिशूल के सदियों पुराने इतिहास को नकारा नहीं जा सकता है।

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इस क्षेत्र में प्राचीन शिवलिंग, मूर्तियां बिखरी पड़ी
टांगीनाथ धाम के आसपास के क्षेत्र में सैंकड़ों की संख्या मे प्राचीन शिवलिंग और मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। टांगीनाथ धाम में स्थित प्रतिमाएं उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर व गौरी केदार में प्राप्त प्रतिमाओं से मेल खाती है। टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र मे मिले अनगिनत अवशेष इस बात को ब्यां करते हैं कि यह क्षेत्र किसी जमाने मे हिन्दुओं का एक तीर्थ स्थल रहा होगा

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टांगीनाथ धाम में खुदाई से निकले थे प्राचीन आभूषण
लगभग तीन दशक पहले एक बार पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम के आसपास के क्षेत्र की खुदाई की थी। खुदाई दौरान उन्हें सोने चांदी के आभूषण सहित अनेक मूल्यवान वस्तुएं मिली थी, लेकिन कुछ कारणों के चलते यहां पर खुदाई बंद कर दी गई। जो आज तक बंद है। खुदाई दौरान हीरे जडि़त मुकुट, चांदी का अर्धगोलाकार सिक्का, सोने का कड़ा, कान की सोने की बाली, तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था जैसी कई चीजें मिलीं थीं। यह सभी चीजें आज भी एक पुलिस थाना के मालखाना में रखी हुई है।

 

प्रदीप शाही

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