भगवान श्री विष्णू के छठे अवतार धरती  पर आज भी हैं  तपस्या में लीन  

-भगवान विष्णू के दसवें कल्कि अवतार के भी गुरु बनेंगे भगवान परशुराम

रामायण काल (त्रेता युग) में भगवान श्री विष्णू जी के छठे अवतार ने परशुराम के रुप में एक ब्रह्राण के घर जन्म लिया। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान श्री विष्णू ने परशुराम को त्रेता में रामावतार होने पर भूलोक पर तपस्यारत रहने का वरदान दिया। भगवान विष्णू के वरदान के चलते ही कलयुग में धरती पर तपस्यारत भगवान परशुराम कलयुग के समापन पर धरती का उद्धार करने हेतू अवतरित होने वाले कल्कि अवतार को शस्त्र विद्या से प्रशिक्षित करेंगे।

भगवान परशुराम का जन्म कहां हुआ?

भगवान परशुराम जी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण ग्रंथों में किया गया है। पौरोणिक वृत्तान्त अनुसार भगवान परशुराम जी का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा आयोजित पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था। परशुराम के रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस चार बड़े भाई थे। भगवान राम के काल में होने के कारण और शिवजी द्वारा प्रदान परशु धारण किए रहने के कारण वह परशुराम कहलाये। भगवान शिव ने ही उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्रदान किए थे।  एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे भगवान परशुराम कर्म से एक क्षत्रिय थे। इसी कारण उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है।

शस्त्र विद्या के महान गुरु थे परशुराम

भगवान परशुराम जी को शस्त्रविद्या का महान गुरु माना गया। उनके शिष्यों में भीष्म पितामह, द्रोण व कर्ण प्रमुख थे। परशुराम जी ने अत्रि की पत्नी अनसूईया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। भगवान परशुराम जी ने अहंकारी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार कर धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया। माना जाता है कि भारत के अधिकांश गांव उन्हीं के द्वारा बसाये गये थे। जिस मे कोंकण, गोवा व केरल का समावेश है। परशुराम ने अधिकांश विद्या अपने बाल्यकाल में ही अपनी माता की शिक्षाओं से हासिल कर ली थी। वह पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बातें भी करते थे। यहां तक कि खूंखार पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।

 

धरती को 21 बार किया क्षत्रिय विहीन

का‌र्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रार्जुन) ने घोर तप द्वारा भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर सहस्त्र भुजाए तथा युद्ध में किसी से भी न हारने का वर पाया था। एक दिन सहस्त्रार्जुन जमदग्निमुनि के आश्रम जा पहुंचा। देवराज इंद्र द्वारा प्रदान कपिला कामधेनु को बलपूर्वक छीनकर ले गया। परशुराम ने फरसे के प्रहार से उसकी समस्त भुजाएं काट डाली और सिर को धड़ से अलग कर दिया। तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप परशुराम की अनुपस्थिति में उनके िता जमदग्नि की हत्या कर दी। रेणुका पति की चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई। इस कांड से गुस्साए परशुराम ने महिष्मती नगरी पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक पूरे 21 बार इस पृथ्वी से हैहयवंशी समाज क्षत्रियों का विनाश किया। यह समाज आज भी है।

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परशुराम जी के कारण ही भगवान गणेश एकदंत बने

एक बार कैलाश स्थित भगवान शंकर के अन्त:पुर में प्रवेश करते समय गणेश जी द्वारा रोके जाने पर परशुराम ने बलपूर्वक अन्दर जाने की चेष्ठा की। तब भगवान गणपति ने उन्हें अपनी सूंड में लपेटकर गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन करवा भूतल पर पटक दिया। मूर्छित अवस्था से बाहर आने पर गुस्साए परशुरामजी ने फरसे का प्रहार किया। इस प्रहार में गणेश जी का एक दांत टूट गया। इसके बाद ही वह एकदंत के नाम से पहचाने गए।

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भगवान श्री राम ने किया था परशुराम जी का पूजन

त्रेतायुग में भगवान राम की ओर से भगवान  शिव का धनुष तोड़े जाने पर गुस्साए परशुराम जी ने भगवान राम को अपना शत्रु भी कह डाला था। परंतु भगवान राम से हुए वार्तालाप के बाद संशय मिटते ही अपना वैष्णव धनुष श्रीराम को सौंप क्षमा याचना करते हुए तपस्या के लिए वन चले गए। वन जाने से पहले श्री राम ने  परशुराम का पूजन किया। वहीं परशुराम जी ने श्री रामचन्द्र की परिक्रमा की।

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महाभारत काल में भीष्म संग किया था 23 दिनों तक युद्ध

भीष्म पितामह द्वारा स्वीकार न किए जाने के कारण अंबा परशुराम जी के पास सहायता लेने पहुंची। परशुराम ने  भीष्म को युद्ध के लिये ललकारा। उन दोनों के बीच 23 दिनों तक घमासान युद्ध हुआ। अपने पिता जमदग्निमुनि द्वारा भीष्म को दिए इच्छा मृत्यु  वरदान स्वरुप परशुराम जी भी उन्हें हरा नहीं सके।

परशुराम जी ने दिया था कर्ण को श्राप

एक बार गुरु परशुराम कर्ण की एक जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे। तभी एक बिच्छू कहीं से आया और कर्ण की जंघा पर घाव बनाने लगा। किन्तु गुरु का विश्राम भंग न हो। इसलिये कर्ण बिच्छू के दंश को सहता रहा। अचानक परशुराम की निद्रा टूट गई। एक ब्राह्मण पुत्र में इतनी सहनशीलता पा कर कर्ण से पूछा। तो कर्ण के झूठ बोलने पर उसे श्राप दिया कि जब उसे अपनी विद्या की सर्वाधिक जरुरत होगी, तब वह सब कुछ भूल जाएगा।

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कल्कि पुराण अनुसार कल्कि अवतार को करेंगे प्रशिक्षित

कल्कि पुराण के अनुसार परशुराम जी, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे। उन्हें अस्त्र शस्त्र में प्रशिक्षित करेंगे। साथ ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये कहेंगे।

प्रदीप शाही

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