त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक “ॐ” में है आलौकिक आभा का समावेष

– “ॐ” मंत्रोच्चारण से होता है कई रोगों का निदान
-हर धर्म में एकाक्षर मंत्र का है विशेष महत्व
इस सृष्टि के रचियता कहे जाने वाले त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश को “ॐ”, ओ३म् का प्रतीक माना गया है। एकाक्षर मंत्र “ॐ” के उच्चारण से ही कई रोगों का निदान हो जाता है। साइंस ने भी “ॐ” मंत्र से निकलने वाली आलौकिक आभा को पूर्ण तौर से स्वीकार किया है। “ॐ” मंत्र का तो वेदों में भी उल्लेख मिलता है। केवल हिंदू धर्म में ही नहीं “ॐ” मंत्र का प्रमुखता से उच्चारण किया जाता है। इस मंत्र की महानता को तो सिख धर्म ने भी इक ओंकार यानि एक ओ३म के महत्व को पूर्णतया स्वीकार किया है।

ॐ मंत्र की ध्वनि त्रिदेव का प्रतीक
ओ३म् शब्द तीन ध्वनियों में विभाजित माना गया है। अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों के बारे उपनिषद में जानकारी उपलब्ध है। इसे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना गया है। इस मंत्र की भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोक के प्रतीक के रुप में पहचान है। ओ३म् शब्द के उच्चारण में ओ पर अधिक जोर दिया जाता है। ऋषियों , मुनियों, तपस्वियों ने ध्यान की अवस्था में शरीर के भीतर व बाहर जिस ध्वनि को महसूस किया उस ध्वनि को ओंम का ही नाम दिया। इस ध्वनि को सुना नहीं जा सकता है। केवल ध्यान से महसूस किया जा सकता है। माना जाता है कि इस मंत्रोच्चारण से परम पिता परमात्मा से जुड़ा जा सकता है। सबसे अहम बात यह भी ओ३म् को हम अपने देवी देवताओं के नमन किए जाने से पहले प्रयुक्त करते हैं।

“ॐ” मंत्रोच्चारण का महत्व
“ॐ”, ओ३म् , ओंम का यह एकाक्षर मंत्र अद्भुत है। इस आलौकिक मंत्र को संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ओंकार ध्वनि से निकलने वाले अर्थ की व्याख्या करना मुनासिब ही नहीं है। आइंस्टाइन ने भी कहा था कि ओ३म् मंत्र का उच्चारण इस ब्राह्मांड समान है। क्योंकि ब्राह्रांड भी अनंत है। अनादि है। भगवान महावीर ने भी ध्यान की अतल गहराइयों में उतर कर ओ३म् के अनंत स्वरुप को महसूस किया था।

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ॐ की सभी धर्मो में उपस्थिति दर्ज
ओ३म् , ॐ नाम में किसी धर्म से ताल्लुक को स्वीकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि इस मंत्र को प्रणव मंत्र के रुप में पहचाना जाता है। इस मंत्र का आरंभ तो है, परंतु इसका अंत कोई भी नहीं है। ओ३म् मंत्र किसी एक धर्म की व्याख्या या निशानी के तौर पर पहचान नहीं रखता है। ओ३म् किसी न किसी रूप में सभी संस्कृतियों की पहचान रहा है। ईसाई या फिर यहूदी भी एकाक्षर मंत्र आमेन का प्रयोग करती है। वहीं मुस्लिम समुदाय इसे आमीन कह कर याद करते हैं। बौद्ध मत में इसे ओं मणिपद्मे हूं कह कर प्रयोग करते हैं। जबकि सिख मत में इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है। इतना ही नहीं अंग्रेज़ी भाषा का शब्द Omni, जिसका अर्थ अनंत है। यह शब्द वास्तव में ओ३म् शब्द का ही रुप है। एेसे में ॐ सभी धर्मो में एक समान किसी न किसी रुप में विद्यमान है। इतने से यह सिद्ध है होता है कि ओं३म् किसी धर्म, मजहब, मत का न हो कर इंसानियत की बात करता है। जैसे इस कायनात में हवा, पानी, सूर्य, धरती सभी इंसानियत के हित में निस्वार्थ भाव से अपना आशीर्वाद देती है।

ओ३म मंत्रोच्चारण से रोगों को भगाना संभव
ओ३म की महिमा अनंत मानी गई है। रिसर्च एंड इंस्टीट्‌यूट ऑफ न्यूरो साइंस के प्रमुख प्रोफ़ेसर जे मार्गन और उनके सहयोगियों ने सात वर्ष तक ओ३म्‌ के प्रभावों का अध्ययन किया। शोध के दौरान मस्तिष्क और हृदय रोग से पीड़ित 2500 पुरुषों और 200 महिलाओं पर ओ३म मंत्रोच्चारण का परीक्षण किया। इन सभी मरीज़ों को केवल वह दवाएं दी गई जो उनके जीवन को बचाने के लिए जरुरी थी। अन्य सभी दवाओं को बंद कर दिया गया। इन सभी मरीजों को ब्रह्म महूर्त में खुले वातावरण में माहिरों द्वारा ओ३म्‌ का जप कराया गया। हर तीन माह में हृदय, मस्तिष्क के अलावा पूरे शरीर की स्कैनिंग का रिकार्ड रखा गया। चार साल तक यह प्रक्रिया जारी रही। चार साल बाद 70 फीसद पुरुष और 85 फीसद महिलाओं को रोगों में 90 फीसद की कमी दर्ज की गई। प्रो. मार्गन ने बताया कि इस जाप से जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है।

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ओ३म मंत्रोच्चारण से मृत कोशिकाएं भी हो सकती हैं पुनर्जीवित
ओ३म मंत्रोच्चारण के समय निकलने वाली ध्वनि जुबां से न निकलकर पेट से निकलती है। इस दौरान पेट, सीने और मस्तिष्क में कंपन पैदा होती है। ओ३म मंत्रोच्चारण की ध्वनि से होने वाले कंपन से मृत कोशिकाएं भी पुनर्जीवित हो सकती है। तथा नई कोशिकाएं जन्म लेती हैं। दिमाग, नाक, गला, हृदय, पेट और सिर से लेकर पैर तक होने वाले रक्त विकार को भी दूर किया जा सकता है। मानिसक तौर से कमजोर इंसान मजबूती हासिल कर सकता है।

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