19 नवंबर सोमवार को होगा भगवान श्री कृष्ण के शालिग्राम रुप से तुलसी माता का विवाह

-धरती पर तुलसी के रुप में वास करती है मां लक्ष्मीइस समूचे ब्राह्मांड में हर तरफ विद्यमान परम पिता परमात्मा के स्वरुप माने जाने वाले देवी देवता किसी न किसी जीवंत रुप में इंसान को दर्शन जरुर देते हैं। देवी देवता भी समय समय पर मानव रुप में अवतरित होने में अपना सौभाग्य मानते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान श्री कृष्ण के भगवान शालिग्राम रुप में उनका विवाह माता तुलसी से होता है। भक्त घरों में प्रबोधनी एकादशी का व्रत करते है। धरती पर रहने वाले इंसान के लिए प्रतिदिन सबसे सौभाग्य के क्षण हैं कि माता लक्ष्मी हर पल माता तुलसी के रुप में हमारे मध्य विराजमान रहती है। इस बार देवउठनी एकादशी पर माता तुलसी का भगवान शालिग्राम संग विवाह 19 नवंबर 2018 को श्रद्धा व उल्लास से मनाया जा रहा है।

माता तुलसी विवाह का महत्व
हिंदू धर्म में माता तुलसी को सदियों से विशेष महत्व दिया गया है। इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी अहम है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी में सबसे अधिक स्वास्थ्य वर्धक गुण पाए जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ धार्मिक रूप से इसका खास महत्व इसलिए है कि माता तुलसी को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है। जिनका विवाह भगवान शालीग्राम से हुआ था। शालीग्राम को भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है। घरों में तुलसी विवाह तक अखंड दीप जलाने की परंपरा है।


भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी को भगवान श्री हरि विष्णु जी हर साल चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं। जबकि देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु हर साल चार माह शयन के बाद जगते हैं। माता लक्ष्मी के स्वरुप माता तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है। एेसे में जब देव जागते हैं, तो वह हरिवल्लभा माता तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन माता तुलसी जी का विवाह भगवान शालिग्राम जी से होता है। ऐसी कहा जाता है कि जिस घर में माता तुलसी जी की पूजा होती है। उस घर में कभी भी धन धान्य की कमी नहीं रहती। यानिकि वहां माता लक्ष्मी का वास रहता है।

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तुलसी विवाह की विधि-
माता तुलसी जी को लाल चुनरी पहनाकर पूरे गमले को लाल मंडप से सजाया जाता है। भगवान शालिग्राम जी की काली मूर्ति न मिलने पर भगवान श्री विष्णु जी की मूर्ति को विराजमान किया जाता है। सिद्धिविनायक श्री गणेश जी की पूजा के बाद गाजे बाजे के साथ ही भगवान शालिग्राम जी की बारात उठती है। अब लोग नाचते गाते हुए माता तुलसी जी के पास पहुंचते हैं। विधि विधान से पूजा कर भगवान विष्णु जी या भगवान शालिग्राम जी की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा किया जाता है। भगवान शालिग्राम जी को पीला वस्त्र धारण करवाकर दही, घी, शक्कर अर्पित किया जाता है। भारतीय परंपरा अनुसार शादी के रीति-रिवाजों सहित दूध व हल्दी का लेप लगाकर शालिग्राम व तुलसी जी को चढ़ाया जाता है। मंडप पूजन कर विवाह की सभी रस्मों को पूरा किया जाता है। भगवान शालिग्राम और तुलसी जी के सात फेरे भी कराए जाते हैं। वधू परिवार की ओर से कन्यादान करने वाले संकल्प को पूरा किया जाता है।

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माता तुलसी के आयोजन से मिलते हैं कई सुखद आशीर्वाद
तुलसी विवाह के आयोजन से कई तरह के लाभ मिलते हैं। तुलसी विवाह करवाने वाले को कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। सुखद दांप्तय हासिल करने के लिए, विवाह न होने पर, पाप नष्ट करने, परिवार में आर्थिक रुप से संपन्नता लाने, आज्ञाकारी संतान पाने का सौभाग्य मिलता है।

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माता तुलसी विवाह तिथि, शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह तिथि: सोमवार 19 नवंबर 2018
शुभ मुहूर्त: तिथि आरंभ: 19 नवंबर 2018 को दोपहर 2:29 बजे

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