यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ??

-समुद्र में समाई श्री कृष्ण की कर्मभूमि द्वारका के रहस्य की खोज जारी

-हिरण्य, सरस्वती और कपिला नदियों के संगम के पास हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार
भारत की प्राचीन सभ्यता ने सदियों से विदेशियों को अपनी तरफ आकर्षित किया है। भारत की धरती पर जगह-जगह पर देवी-देवताओं के अनुपम नक्काशी में स्थापित मंदिर देखने वालों को पहली नजर में ही अपनी तरफ आकर्कित कर लेते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि प्राचीन समय में भी भारत के इंजीनियरों की सोच मौजूदा तरक्की करने वाली साइंस से कहीं अधिक बेहतर मानी जा सकती है। वहीं हिंदू मान्यता अनुसार भगवान श्री कृष्ण की कर्मभूमि द्वारका के समुद्र में समाए जाने के रहस्य की आज भी जारी है। बेहद कम लोग जानते होंगे कि द्वारका में हिरण्य, सरस्वती और कपिला नदियों के संगम के पास भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार हुआ था। चार धाम में से एक द्वारका पुरी देश के सबसे पुराने सात शहरों में से एक मानी गई है।

समुद्र में समाई द्वारका की खोज जारी
एक दशक से अधिक समय पहले द्वारिका के अनबूझ रहस्यों को सुलझाने के लिए भारतीय नौसेना की मदद से अभियान की शुरुआत की गई। समुद्र की तलहटी में मिले तराशे हुए सैंकड़ों पत्थरों का आकलन शुरु किया गया। वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक स्कूबा के जरिए भी समुद्र में समाई श्री कृष्ण की द्वारका के रहस्यों को सुलझाने की कोशिश जारी है। भगवान श्री कृष्ण की मौत के साथ एक किदवंति यह भी है कि श्री कृष्ण की मौत के साथ ही द्वारका समुद्र में समा गई थी।


संगम के किनारे हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार
द्वारका पुरी में स्थापित कस्बा सोमनाथ पट्टल के पास हिरण्य, सरस्वती और कपिला इन तीन नदियों का संगम है। इस संगम के पास ही भगवान श्री कृष्ण जी का अंतिम संस्कार किया गया था। इस कस्बे तक पहुंचने के लिए समुद्र के रास्ते विरावल बंदरगाह पर उतरना पड़ता है। इसके बाद दक्षिण पूर्व में स्थित कस्बा सोमनाथ पट्टल आता है।

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निष्पाप कुंड पर होता है पिंड दान
द्वारका पुरा में गोमती तालाब के ऊपर नौ घाट है। जिसमें प्रमुख तौर से निष्पाप कुंड है। इसमें गोमती नदी का पानी भरा रहता है। कंडु में नीचे उतरने के लिए पक्की सीढ़ियां भी बनी हुई है। लोग सबसे पहले इस निष्पाप कुंड में स्नान कर अपने को शुद्ध करते है। नदी के दक्षिण में पांच कुंए आज भी हैं। इन कुंओं के पानी से कुल्ले बाद ही वह यहां पर अपने पुरखों के नाम पर पिंड दान करते हैं। इस जगह पर कृष्णजी, गोमती माता और महालक्ष्मी के मंदिर भी हैं। पंरतु यहां पर रणछोड़ जी का का विशाल मंदिर है। क्योंकि इस इलाके में श्री कृष्ण को रणछोड़ जी भी कहा जाता है। काले पत्थर में बनी चांदी के सिंहासन पर विराजमान श्री कृष्ण जी की मूर्ति बेहद दर्शनीय है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित इस मूर्ति में हीरे मोती, सोने की 11 मालाएं, सिर पर सोने का मुकुट सुशोभित है। मंदिर की जिल में माता अंबा जी की मूर्ति भी है। इस मंदिर की उंचाई 140 फीट है।
गुलाबी पानी वाला कैलाश कुंड
कैलाश कंडु का पानी गुलाबी रंग का है। जो किसी अजूबे से कम नहीं है। कुंड के पास ही सूर्य नारायण का मंदिर है। शहर के पूर्व की तरफ बने दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तियां स्थापित हैं। इससे करीब बीस मील आगे कच्छ खाड़ी का एक छोटा सा टापू है। इस पर बेट पर ही द्वारका बसी है। बेट द्वारका के दर्शन बिना द्वारका का तीर्थ पूरा नहीं माना जाता है।

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दुर्वासा ऋषि, टीकम जी के मंदिर
यहां पर ऋषि दुर्वासा जी और टीकम जी के दो मंदिर हैं। मंदिर में एक बहुत बड़ा तहखाना भी है। जिसमें भगवान शिव का लिंग है और माता पार्वती जी की मूर्ति है।
कुशेश्वर मंदिर के पास स्थित हैं छह मंदिर
कुशेश्वर शिव मंदिर के आस-पास छह: मंदिर स्थित है। इनमें माता अंबा जी, देवकी माता, राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जामवती के मंदिर है।
दर्शनीय हैं पांच महल
गोमती-द्वारका की तरह ही एक बहुत बड़ी चारदीवारी है। यहां पर पांच विशाल महल है। कई भवन दो मंजिला और कुछ तीन मंजिला हैं। सबसे बड़ा भवन भगवन श्रीकृष्ण का है। इसके अलावा सत्यभामा, जामवती, रूक्मिणी और राधा के भव्य महल है। इनकी सजावट दर्शनीय है। इन के दरवाजों और चौखटों पर चांदी के पतरे लगे हुए हैं। भगवान श्री कृष्ण और उनकी सभी रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी का दर्शनीय सजावट की हुई है।

गोमती नदी में स्नान का विशेष महत्व

गोमती नदी में स्नान का विशेष महत्व रहा है। इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता है और सूर्यास्त पर कम हो जाता है। सबसे खास बात यह है कि सूरज निकलने से पहले नदी का जल महदा एक से डेढ फीट ही रह जाता है।

कुमार प्रदीप

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