मंदिर है पर प्रतिमा नहीं, इसी कारण नहीं होती मंदिर में पूजा

-11वीं सदी में स्थापिच में किया गया था
वास्तुकला भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारत के प्राचीन मंदिर समृद्ध भारतीय वास्तुकला के जीते जागते प्रमाण हैं। यह प्राचीन भारतीय मंदिर आज भी भारतीय संस्कृति, भारतीय इतिहास की गौरव गाथा को बयान करते ज्यों के त्यों खड़े हैं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र होने के साथ-साथ शोधकर्ताओं के लिए आज भी शोध का विषय बने हुए है। इसी संदर्भ में भुवनेश्वर का ‘राजा रानी मंदिर’ प्राचीन वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है। राजारानी मंदिर काफी लोकप्रिय स्थल है यहां पर हर साल हज़ारों की संख्या में पर्यटक घूमने आते हैं। सदियों पहले बना यह मंदिर आज भी प्राचीन समय की कितनी ही कहानियां व ना जाने कितने राज़ अपने अंदर दबाए बैठा है।


‘राजा रानी मंदिर’ का इतिहास
लिंगराज मंदिर के उत्तर -पूर्व में स्थित इस मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में किया गया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं व बारहवीं शताब्दी के बीच हुआ, इसी समय के दौरान प्रसिद्ध मंदिर जगननाथ पुरी का निर्माण भी हुआ था। इस मंदिर के बारे में रोचक बात यह है कि इसके गर्भ गृह में कोई भी प्रतिमा या मूर्ति स्थापित नहीं है। इसी लिए इस मंदिर में किसी देवी या देवता की पूजा नहीं होती। इस मंदिर को मूल रूप से ’इन्द्रेस्वरा‘ के नाम से जाना जाता है।


वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण ‘राजा रानी मंदिर’
राजारानी मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। इस मंदिर को ‘प्रेम मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे ‘लव टेम्पल’ के नाम से जानते हैं। इसका कारण इस मंदिर की दीवारों पर सुन्दर नक्काशी कर बनाई गई स्त्री-पुरुष जोड़ों की कामोत्तेजक मूर्तियां है। राजारानी नामक स्थानीय लाल व पीले पत्थरों से इस मंदिर का निर्माण किया गया है। इसी कारण इस मंदिर का नाम ‘राजा रानी’ पड़ा। राजारानी मंदिर का निर्माण दो संरचनाओं में ऊंचे मंच पर पंचरथ शैली में किया गया है। इस मंदिर में किसी देवी या देवता की प्रतिमा स्थापित नहीं है इस लिए इसका किसी खास सम्प्रदाय से संबंध नहीं है लेकिन फिर भी इसे शैव पंथियों का मंदिर माना जाता है।
माना जाता है कि मध्य भारत के अन्य मंदिरों की वास्तुकला भी इसी मंदिर पर आधारित है। ‘राजारानी मंदिर’ की दीवारों पर बेहतरीन व लुभावनी नक्काशी कर मूर्तियां बनाई गई हैं इनमें बच्चों को प्यार करती महिला, दर्पण देखती महिला व नाचती-गाती महिलाओं तथा शेर, हाथी, बैल इत्यादि की मूर्तियां शामिल हैं। इनके इलावा भगवान नटराज व शिव विवाह की मूर्तियां बनी हुई हैं। यह मूर्तियां खजुराहो के मंदिर की मूर्तियों की याद दिलाती हैं। कुल मिलाकर प्राचीन ‘राजारानी मंदिर’ भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है जो इतनी सदियां बीतने के बाद भी नवीन लगता है और देश- विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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‘राजा रानी मंदिर’ वार्षिक संगीत समारोह
हर साल राजारानी मंदिर में ओडिशा सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा राजा रानी संगीत समारोह का आयोजन किया जाता है। तीन दिन तक चलने वाले इस समारोह में देश के विभिन्न हिस्सों से कलाकार शामिल होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इस समारोह में मुख्य रूप से शास्त्रीय संगीत से संबंधित प्रस्तुतियां होती हैं।

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कैसे पहुंचे
भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट से राजारानी मंदिर की दूरी लगभग चार किलोमीटर है। इस मंदिर की देख-रेख पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की जाती है। इस मंदिर में जाने के लिए टिकट लेनी पड़ती है।

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