वैज्ञानिकों ने माना स्वास्तिक चिह्न और लाल रंग से प्रवाहित होती है सकारात्मक उर्जा

-स्वास्तिक चिह्न से निकलती है सबसे अधिक 10 लाख बोविस
कहते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते है। उसी तरह इस इस ब्राह्मंड में लाभकारी व हानिकारक दो तरह की उर्जा विद्यमान है। वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं कि हर धार्मिक मंत्र, चिह्न, धार्मिक स्थलों से मंगलकारी उर्जा निकलती है। परंतु स्वास्तिक चिह्न व लाल रंग से हमेशा मंगलकारी उर्जा प्रवाहित होती है। यह भी सत्य है कि स्वास्तिक चिह्न से सबसे अधिक 10 लाख बोविस उर्जा प्रवाहित होती है। लाल रंग को भारतीय संस्कृति में बेहद पावन माना गया है। मौजूदा समय में घरों, दुकानों व आफिसों में सकारात्मक उर्जा पाने के लिए स्वास्तिक चिह्न को लगाने की आस्था में निरंतर तेजी पाई जा रही है।


हर प्राणी पर सकारात्मक व नकारात्मक उर्जा अपना-अपना प्रवाह डालती है। इस उर्जा की सटीक जानकारी हासिल करने के लिए फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ. एंटोनी बोविस ने बायोमीटर (उर्जा मापक यंत्र) के निर्माण किया। धरती पर उर्जा का महासागर विद्यमान है। घर में यदि हम अव्यवस्थित वस्तुओं को देखते है, तो हमारे मन में उसे व्यवस्थित करने की भावना समाहित होने लग जाती है। उसी तरह जब हम किसी धार्मिक स्थल पर पहुंचते हैं, तो सहज ही हमारे मन में सकारात्मक उर्जा प्रविष्ट हो जाती है। इतना ही नहीं कई बार हम किसी स्थान पर पहुंचते ही असहज महसूस करने लग जाते हैं। यह सब सकारात्मक व नकारात्मक उर्जा का ही प्रभाव है। वैज्ञानिकों यह भी स्वीकार किया है कि किसी स्थान पर लंबे समय तक निरंतर जप, तप, ध्यान, अनुष्ठान होते रहें तो वहां के आभामंडल में सकारात्मक उर्जा प्रवाहित होने लग जाती है। या यूं कहें कि जिस तरह के हमारे विचार, संगत होगी, उसी तरह का हम जीवन जीने लग जाते हैं।

इसे भी पढ़ें…ॐ, डमरू के नाद का है, भोले बाबा के निवास पर वास

स्वास्तिक चिह्न का महत्व
भारतीय संस्कृति में किसी भी शुभ कार्य के शुभारंभ से पहले सिद्धिविनायक भगवान गणेश जी का पूजन औऱ स्वास्तिक का चिह्न बनाने की परंपरा रही है। शास्त्रों में एेसी मान्यता रही है कि स्वास्तिक का चिह्न बना कर इसका पूजन करने से सभी मांगलिक कार्य सफलता से पूर्ण हो जाते हैं। स्वास्तिक चिह्न को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। शास्त्रों अनुसार स्वास्तिक की सभी रेखाएं हमारी चार दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण की तरफ इशारा करती हैं। इसके अलावा इस की चारों रेखाओं को हमारे चारों वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक भी माना गया है। कुछ मतों अनुसार स्वास्तिक की चार रेखाएं सृष्टि के रचियता भगवान श्री ब्रह्मा के चार सिरों का प्रतीक है।

इसे भी पढ़ें…यहां पर वास करते हैं छह इंच के बजरंग बली

स्वास्तिक व अन्य स्थानों से प्रवाहित होने वाली उर्जा
फ्रांस के वैज्ञानिक डॉ. एंटोनी बोविस की ओर से निर्मित बायोमीटर (उर्जा मापक यंत्र) अनुसार सभी धार्मिक स्थलों का बोविस ऊर्जा स्तर काफी उंचा मापा गया है। यह सब इन धार्मिक स्थलों पर होने वाले तप का ही असर है। जो वहां पहुचंने वाले लोगों के मन को शांति भी प्रदान करते है। भारतीय स्वस्तिक चिह्न में सबसे अधिक दस लाख बोविस उर्जा निकलती है। सबसे खास बात यह है भी यदि इस चिह्न का निर्माण उल्टा कर दिया जाए, तो इससे निकलने वाली प्रतिकूल उर्जा का अनुपात भी यही रहती है। स्वास्तिक चिह्न को यदि थोड़ा सा भी टेड़ा बना दिया जाए। तो इसमें निकलने वाली उर्जा की मात्रा महज 1,000 बोविस तक रह जाती है। वहीं हिंदू धर्म में सबसे अधिक उच्चारण किए जाने वाले मंत्र ऊँ से 70 हजार बोविस की उर्जा प्रवाहित होती है। इसके अलावा चर्च के क्रास में से 11 हजार बोविस और चर्च में बजने वाली घंटियों से भी 11,000 बोविस की उर्जा निकलती है। मस्जिद में से 12 हजार बोविस की उर्जा प्रवाहित होती है। जबकि तिब्बत के मंदिरों में निकलने वाली उर्जा का स्तर 14 हजार बोविस तक रहता है। तिब्बत वासियों की पूजा के समय घुमाए जाने वाले चक्र से 12 हजार से 14 हजार बोविस उर्जा निकलती है। सबसे खास बात यह है कि बुद्ध स्तूप में से 12 हजार बोविस उर्जा निकलती है। इजिप्ट में आई प्रतीक चिह्न से नौ हजार बोविस, रुस में पावन कही जाने वाली की यानि कि चाबी में से नौ हजार बोविस उर्जा निकलती है। सबसे अहम बात यह है कि जिंदा मानव शरीर से औसत उर्जा साढे छह हजार बोविस उर्जा निकलती है। जबकि मृत शरीर से बोविस शून्य पाया गया है।

इसे भी पढ़ें…यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ??

लाल रंग का भारतीय संस्कृति में महत्व
भारतीय संस्कृति में लाल रंग को सभी मांगलिक कार्यों में सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। सभी पूजन में सर्वप्रथम पूजे जाने वाले स्वास्तिक चिह्न को भी लाल रंग से ही बनाए जाने की परंपरा है। मांगलिक कार्यों की बात करें तो इस में सिंदूर, रौली या कुमकुम का प्रयोग किया जाता है। सभी देवी देवताओं की प्रतिमा पर लगाए जाने वाले रौली का टीका भी लाल रंग का होता है। भारत में लाल रंग को विजय का प्रतीक भी माना गया है। वहीं विश्व भर में लाल रंग को प्रेम का प्रतीक माना गया है। महिलाओं के जीवन में भी लाल रंग का विशेष महत्व रहा है। भारतीय संस्कृति में लाल रंग सुहाग चिह्न व श्रृंगार में में सर्वाधिक प्रयुक्त किया जाता है। विवाहित महिलाओं की ओर से मांग में लाल रंग का सिदूर, माथे पर लाल रंग बिंदी, हाथों में लाल रंग का चूड़ा और चूड़ियां, पांव में लगाए जाने वाला आलता, करवाचौथ की लाल साड़ी, विवाह का जोड़ा व वेलेंटाइन दिवस पर प्रेमी की ओर से प्रेमिकाओं को दिया जाने वाला लाल गुलाब प्रमुख है। लाल रंग के फूलों में उर्जा की मात्रा 65 से 72 बोविस तक मानी गई है।

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY