धूमधाम से देश भर में 17 नवंबर को मनाई जा रही आंवला नवमी

-कब श्री कृष्ण ने बाल लीला त्याग, कर्तव्य पथ पर रखा था कदम ??

-आंवला या अक्षय नवमी के पूजन का है विशेष महत्व

सदियों से भारत में व्रत, पर्व को पूर्ण श्रद्धा व उल्लास से मनाए जाने की परंपरा रही है। भारतीय संस्कृति में हर पर्व को मनाने का विशेष महत्व रहा है। गौपाष्टमी के एक दिन बाद आंवला व अक्षय नवमी के पर्व को मनाने का भी विशेष महत्व है। हो भी क्यों न इस दिन ही भगवान विष्णू जी के अवतार भगवान श्री कृष्ण ने बाल लीलाओं को त्याग कर कर्तव्य पथ को अपना पहला कदम रखा था। गौर हो गौपाष्टमी पर श्री कृष्ण जी ने बछड़ों को चराने के स्थान पर गौ चारण की नई परंपरा को शुरु किया था। वहीं गौपाष्कटमी के अगले  दिन ही आंवला या अक्षय नवमी पर्व मनाने की पंरपरा शुरु की। 17 नवंबर 2018 को देश भर में आंवला या अक्षय नवमी पर्व को मनाया जा रहा है।


आंवला या अक्षय नवमी पर्व को मनाने की प्रथा
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवला या अक्षय नवमी पर्व खास तौर से उत्तर भारत में अधिक मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने जनमानस के कल्याण के लिए कर्तव्य पथ पर पहला कदम रखते हुए वृंदावन की गलियों को छोड़ कर मथुरा में वास शुरु कर दिया था। इस दिन वृंदावन में महिलाओं की ओऱ से आंवला के पेड़ की परिक्रमा भी करने का रिवाज है। महिलाओं में यह पूजा संतान प्राप्ति व परिवार सुख के लिए की जाती है।

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आंवला या अक्षय नवमी पर्व का पूजन व कथा
कहते है कि काशी में एक व्यापारी व उसकी पत्नी रहती थी। परंतु संतान सुख ने होने से व्यापारी व उसकी पत्नी परेशान थे। एक दिन व्यापारी की पत्नी को किसी ने कहा कि यदि वह संतान का सुख पाना चाहता है। तो वह किसी बच्चे की बलि भैरव बावा के समक्ष दे। महिला ने यह बात अपने पति से कही। पति को यह बात न सुहाई। परंतु व्यापारी की पत्नी ने अपने पति की बात को अनसुना करते हुए भैरव बावा के सामने बच्चे की बलि दे दी। इस कृत्य के चलते पत्नी को कई तरह के रोगों ने घेर लिया। जब पत्नी अपने पति को बच्चे की बलि की जानकारी दी। तो वह व्यापारी बेहद दुखी हुआ। परंतु बाद में पत्नी की इस दशा पर उसे दया भी आई। पत्नी को इस पाप से मुक्ति पाने के लिए गंगा में स्नान करने की सलाह दी। गंगा घाट पर पूर्ण विधि विधान से माता गंगा की पूजा भी की। माता गंगा ने प्रसन्न हो कर एक बूढी महिला का रुप धर कर व्यापारी की पत्नी को दर्शन देकर उसके सारे रोगों से मुक्ति दिला दी। माता गंगा ने तब कहा कि जो भी महिला शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवके का व्रत रख उसका पूजन करेगी। तो उसके व परिवार के सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। व्यापारी को बच्चे का सुख भी मिला। तथा पत्नी को सभी रोगों से मुक्ति भी मिली।

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आंवला व्रत की सामग्री
व्रत रखने वाली महिलाएं इस दौरान आंवले का पौधा, पत्ते, फल, तुलसी के पत्ते व पौधा, एक कलश जल, कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा, धूप, दीप, श्रृंगार का सामान, दान का सामान

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