न्याय के देवता, कर्म फल दाता मंदिर में नहीं खुले आसमां नीचे करते हैं वास

-भोले नाथ के वरदान से शनि बने नवगृहों में सर्वश्रेष्ठ
-आध्यात्मिक गृह से भी पहचाने जाते हैं सूर्य पुत्र शनि देव
सूर्य पुत्र शनि देव को न्याय के देवता, कर्म फल दाता के नाम से भी संबोधित किया जाता है। आमतौर पर शनि देव का नाम सुनते ही इंसान के दिल में एक अंजाना सा डर समाया रहता है। जबकि सत्य यह है कि सूर्य पुत्र शनि देव एक आध्यात्मिक गृह के रुप में जाना है। न्याय के देवता, कर्म फल दाता शनि देव अपनी प्रवृति अनुसार ही शिंगणापुर स्थित मंदिर में न रह कर खुले आसमां के नीचे वास करते हैं। इस क्षेत्र में किसी भी घर में कोई भी दरवाजा नहीं है। इतना ही नहीं यहां पर वृक्ष तो हैं, परंतु इनकी छाया नहीं बनती है। यह सब अजूबे से कम नहीं है। देश में शनि देव के कुल तीन चमत्कारिक सिद्ध पीठ हैं। शिंगणापुरा के अलावा मध्य प्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मंदिर, उत्तर प्रदेश में कौकिला वन में सिद्ध शनि देव का मंदिर है।

शिंगणापुर में स्वयं प्रकट हुई थी भगवान शनि की प्रतिमा
महाराष्ट्र के शिंगणापुर स्थित शनि मंदिर की एक तीर्थ के रुप में मान्यता है। यहां पर भगवान शनि देव मंदिर में नहीं खुले आसमां के नीचे वास करते हैं। काले रंग की पांट फीट फुट नौ इंच उंची और एक फीट छह इंच चौड़ी यह प्रतिमा संगमरमर के एक चबूतरे पर प्राण प्रतिष्ठित है। आठों पहर न्याय के देवता शनिदेव यहां खुले में ही विराजमान रहते हैं। तीन हजार आबादी वाले इस गांव की सबसे खास बात यह कि यहां के किसी भी घर में दरवाजा नहीं लगा हुआ है। 21वीं सदी के होने के बावजूद घरों में दरवाजे का न होना अजूबे से कम नहीं है। यहां पर घर हो या दुकान या फिर मुल्यवान सामान को संभालने के लिए किसी भी तरह से कुंडी व ताला लगाने की परंपरा नहीं है। इतना ही नहीं दर्शन करने पहुंचने वाले वाहनों में भी ताला नहीं लगाया जाता है। यह सब भगवान शनिदेव की आज्ञा से ही होता है।

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भोले नाथ के वरदान से शनि बने नवगृहों में सर्वश्रेष्ठ
धर्म ग्रंथो अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ। माता के भगवान शिव की भक्ति में ध्यान मग्न होने के कारण ही उनका रंग श्याम हो गया। श्याम रंग को देखकर सूर्य भगवान ने शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। तभी से शनि का अपने पिता सूर्य से वैर रहा। शनि देव ने तब शिव जी की घोर तपस्या की। तब भगवान शंकर ने ने उन्हें नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होने का वरदान दिया। नवगृहों में सर्वश्रेष्ठ ग्रह माने जाने का प्रमुख कारण किसी भी राशि में शनि ग्रह का वास सबसे अधिक होना भी है। सबसे खास बात यह भी है कि हर इंसान की कुंडली में अपने निर्धारित समय के लिए शनि देव उसके कर्म अनुसार विराजमान होते हैं। शनि देव मनुष्य को उसके पापों व और जीवन में किए बुरे कार्यों का दंड प्रदान करते हैं। शनि देवता को जागृत देवता का दर्जा भी प्रदान किया गया है। शनि अशुभ नहीं है, जितना उन्हें माना जाता है। शनि देव शत्रु नहीं मित्र हैं। शनि देव ही केवल एेसे ग्रह है। जो इंसान को मोक्ष और प्रकृति में संतुलन पैदा करता है। शनि तप करने की प्रेरणा देता है।

शनि देव की हैं सात सवारियां
धामिनी, नीलादेवी के पति शनि देव हाथी, घोड़ा, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा , गिद्ध और कौआ की सवारी करते हैं। परंतु इनमें से कौआ उनका सबसे प्रिय वाहन है।

शनि ग्रह, सूर्य से सबसे अधिक दूरी पर है स्थित
शनि देव का पिता सूर्य देव से वैरभाव सर्वविदित है। इसी कारण नवग्रहों के कक्ष क्रम में शनि ग्रह सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर अट्ठासी करोड, इकसठ लाख मील दूर पर स्थित है। जबकि शनि ग्रह पृथ्वी से इकहत्तर करोड, इकत्तीस लाख, तियालीस हजार मील की दूरी पर स्थित है। शनि का व्यास पचत्तर हजार एक सौ मील है। छह मील प्रति सेकेंड की गति से शनि सूर्य की परिक्रमा करने में साढे 21 साल लगाते हैं।

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अंकशास्त्र में आठ है शनि का अंक
ज्योतिष विद्याओं मे अंक विद्या भी एक महत्व पूर्ण विद्या है। अंक सास्त्र में आठ का अंक शनि देव से संबंधित है। शनि देव को परमतपस्वी और न्याय का कारक माना जाता है। हर इंसान इसका आकलन कर सकता है। जैसे-आठ, 17, 26 तारिख का कुल जोड़ आठ बनता है। एेसे में इन सभी लोगों का भगवान शनि देव से संबंध है। शनि मकर तथा कुंभ राशि का स्वामी है। इसकी धातु लोहा, अनाज चना और दालों में उडद की दाल मानी जाती है।

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शनि की साढे साती
हर मनुष्य के जीवन में तीस साल में एक बार साढेसाती अवश्य आती है। एेसे में हर मनुष्य को इस समय के शुरु होने से पहले ही जप तप कर लेने चाहिए। शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए रावण ने भी उन्हें अपनी कैद में पैरों से बांध कर सर नीचे की तरफ किये हुए रखा था। ताकि शनि की वक्र दृष्टि उस पर न पड़ सके। मान्यता अनुसार श्री हनुमान की भक्ति करने से शनि देव वक्र दृष्टि नहीं पड़ती है। शनि साढे सती दौरान शरीर से पसीने की बदबू आने लगती है। शनि पीडा दौरान स्वयं के वजन के बराबर के चने, काले कपडे, जामुन फल, काले उडद, काले जूते, तिल, भैंस, लोहा, तेल, नीलम, काले फूल दान किए जाते हैं।

शनि के रत्न, उपरत्न धारण करने से मिलता है लाभ
नीलम, नीलिमा, नीलमणि, जामुनिया, नीला कटेला शनि देव से अधिक कृपा पाने वाले रत्न और उपरत्न हैं। इन रत्नों को शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

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शनि देव से संबंधित विशेष कथन…

शनिदेव के कारण ही श्री गणेश जी का सिर काटना,  भागवान राम जी को वनवास,  रावण का संहार, पांडवों को सत्ता के स्थान बनवास, राजा विक्रमादित्य को कष्ट मिलना, राजा हरिशचंद्र को दर-दर की ठोकरें मिलना, राजा नल और रानी दमयंती को मिले कष्ट का कारण शनि देव को ही माना जाता है।

शनि मंत्रोच्चारण से मिलता लाभ
शनि ग्रह की पीडा से निवारण के लिये विशेष मंत्रोच्चारण से विशेष लाभ मिलता है।
शनि गायत्री मंत्री:-ओंम कृष्णांगाय विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात।
वेद मंत्र:- ओंम प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:.औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:.
जप मंत्र :- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम:। हर रोज 23 हजार
शनि बीज मन्त्र –: ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ॥

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