भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश के हैं यह पुत्र विशेष…

-धरती पर आज भी विराजमान है इनके वंशज
त्रिदेवों भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री विष्णु औऱ भगवान श्री महेश (महादेव) में से भगवान श्री विष्णु औऱ देवों के देव महादेव ने इस धरती पर अवतार धारण कर दुष्ट प्रवृति के लोगों का संहार कर धर्म की स्थापना की। इनके कई अंश के वंशज आज भी धरती पर मौजूद है। इसके अलावा भी त्रिदेवों की संतान का पुराणों में उल्लेख मिलता है। आईए, आज आपको त्रिदेव की संतान के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। इन संतान के कौन से वंशज आज भी इस धरती पर विद्यमान हैं।

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भगवान ब्रह्मा की संतान
भगवान श्री ब्रह्मा के पुत्रों की संख्‍या बारे पुराणों में सही ढंग से कोई भी जानकारी नहीं है। भगवान ब्रह्मा की एक नहीं तीन पत्नियों सावित्री, गायत्री और सरस्वती का उल्लेख मिलता है। वहीं भगवान ब्रह्मा जी के इन मानस पुत्रों की चर्चा ही अधिक होती है। ये पुत्र मारिचि, अत्रि, गिरस, पुलस्त्य, पुलह, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष, कंदर्भ, नारद, और इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार, स्वायंभुव मनु और शतरुपा, चित्रगुप्त के नाम से जाने जाते हैं। इसके अलावा विष्वकर्मा, अधर्म, अलक्ष्मी, आठवसु, चार कुमार, मनु, रुद्र, अरणि, अंगिरा, रुचि, दक्ष, कर्दम, पंचशिखा, वोढु, अपान्तरतमा, वशिष्‍ट, प्रचेता, हंस, यति को भगवान श्री ब्रह्मा जी की संतान कहा जाता है। भगवान श्री ब्रह्मा जी के इन पुत्रों के वंशज आज भी भारत में निवास करते हैं। मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, कर्तु, पुलस्त्य तथा वशिष्ठ इन सात पुत्रों के वंशज उत्तर दिशा में मौजूद हैं।

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भगवान श्री विष्णु जी के पुत्र
माना जाता है कि भगवान श्री विष्णु के विभिन्न अप्सराओं से 100 पुत्रों ने जन्म लिया था। काम के देवता कामदेव को भगवान श्री विष्णु जी का ही पुत्र माना जाता है। भगवान श्री विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी से प्रमुख रूप से चार पुत्रों आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत ने अवतार लिया। इसके अलावा भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र वर्ग भी माने गए हैं। जिनमें देवसखाय, चिक्लीताय, आनन्दाय, कर्दमाय, श्रीप्रदाय, जातवेदाय, अनुरागाय, सम्वादाय, विजयाय, वल्लभाय, मदाय, हर्षाय, बलाय, तेजसे, दमकाय, सलिलाय, गुग्गुलाय, कुरुण्टकाय प्रमुख हैं।

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भगवान शिव के पुत्र
देवों के देव भगवान शिव के पुत्रों में प्रमुख तौर से सिद्धिविनायक श्री गणेश और भगवा कार्तिकेय का नाम ही लिया जाता है। जबकि राम भक्त श्री हनुमान, जालंधर, सुकेश, अयप्पा स्वामी को भी भगवान शिव के पुत्र कहा जाता हैं। हनुमानजी को शंकर सुवन भी कहा जाता है। इन्हें भगवान शिव का अंशावतार भी कहते हैं। दक्षिण भारत में अयप्पा स्वामी को भी भगवान शिव शंकर का पुत्र माना जाता है। भगवान अयप्पा के पिता भगवान शिव और माता मोहिनी हैं। भगवान श्री विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया। भगवान शिव के वीर्य से सस्तव नामक पुत्र का जन्म का हुआ जिन्हें दक्षिण भारत में अयप्पा स्वामी कह कर पूजा जाता है। भगवान शिव और भगवान विष्णु के रुप मोहिनी से उत्पन होने के कारण इन्हें हरिहरपुत्र भी कहा जाता है।
इसके अलावा भूमि पुत्र मंगल को भी देवों के देव भगवान शिव का पुत्र माना जाता है। इन्हें भूमा कहा जाता था। एक समय जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में में ठे थे, उस समय उनके माथे से पसीने की तीन बूंदें धरती पर गिरीं। इन बूंदों से धरती ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया। जिसकी चार भुजाएं थीं। धरती माता ने अपने पुत्र का पालन पोषण किया। भूमि का पुत्र होने के कारण इन्हें भौम कहा जाता है। बड़ा होने पर भूमा काशी पहुंचा। वहां पर उसने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया।
देवों के देव महादेव भगवान शिव की पहली पत्नी सती, दूसरी पार्वती, तीसरी काली और चौथी उमादेवी थी। सती ने यज्ञ में आत्मदाह किया था। माता पार्वती से भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। भगवान श्री गणेश की उत्पत्तिमाता पार्वती जी ने ही की थी। जबकि सुकेश नाम के एक नवजात को उन्होंने गोद लिया था। सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के तीन पुत्रों माल्यवान, सुमाली और माली ने जन्म लिया। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई। भगवान शिव का चौथा पुत्र जालंधर था। जालंधर भी भघवान शिव का अंश ही था।

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प्रदीप शाही

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