समस्त देवी देवताओं में भगवान शिव को विशेष दर्जा प्राप्त है। भगवान शंकर को देवों के देव महादेव के नाम से पुकारा व पूजा जाता है। भगवान शिव को इस सृष्टि का सृजन व संहारक माना गया है। भगवान शिव से जुड़ी पौराणिक कथाओं को प्रमाणित करने वाले प्रमाण आज भी धरती पर मौजूद हैं। भगवान शिव के हाथों में सुशोभित त्रिशूल का अंश जम्मू कश्मीर की भूमि पर आज भी विद्यमान है। आईए आपको भगवान शिव त्रिशूल के अंश के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं।
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कहां विद्यमान है भगवान शिव का सुध महादेव मंदिर
समुद्र तल से करीब 1225 मीटर की उंचाई पर स्थित धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर के पटनीटॉप में सुध महादेव मंदिर में आज भी भगवान शिव के त्रिशूल का अंश देखने को मिलता है। महादेव के प्रमुख मंदिरों में शामिल 2800 साल पुराने सुध महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण लगभग एक शताब्दी पहले भोले बाबा के एक भक्त रामदास महाजन और उसके पुत्रों ने करवाया था।
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मानतलाई है माता पार्वती की जन्म भूमि
पौराणिक कथा अनुसार पार्वती जी सुध महादेव मंदिर के पास स्थित मानतलाई से प्रतिदिन पूजा करने के लिए इस मंदिर में आती थीं। पुराणों अनुसार मानतलाई को माता पार्वती की जन्म भूमि भी कहा जाता है। यह स्थान सुध महादेव से करीब पांच किलो मीटर दूरी पर स्थित है। यही माता पार्वती का जन्म और शिव जी से उनका विवाह हुआ था। यहां पर माता पार्वती का मंदिर और गौरी कुण्ड दर्सनीय है। एक दिन वहां महादेव का भक्त सुधान्त नामक राक्षस आ गया। पूजा करते देख उसने माता पार्वती से बात करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन जैसे ही पार्वती ने आंखें खोलीं उस राक्षस को देखा तो वह घबराकर चीख पड़ीं। माता पार्वती की चीख कैलाश में ध्यानमग्न शिव तक पहुंच गई। जिसके बाद शिवजी ने अपने त्रिशूल से सुधान्त राक्षस पर प्रहार किया। शिव का वह त्रिशूल सीधे जाकर उस राक्षस के सीने में लगा। जब शिव जी को इस बात पता चला कि सुधान्त दानव पार्वती जी को कोई चोट नहीं पहुंचाना चाहता था। तब उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। इस घटना के बाद शिव जी ने सुधान्त राक्षस से क्षमा मांगकर उसे फिर से जीवित करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन सुधान्त दानव ने शिवजी से कहा कि वो सदैव उनके हाथों से ही मोक्ष पाना चाहता है। भगवान ने उसकी बात मानते हुए कहा कि ह जगह आज से तुम्हारे नाम पर सुध महादेव के नाम से जानी जाएगी।
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इस मंदिर में मौजूद है भगवान शिव के त्रिशूल का अंश
भगवान शिव ने सुधांत राक्षस पर जो त्रिशूल फैंका था। भगवान शिव ने अपनी गलती का अहसास होने पर अपने त्रिशूल के तीन टुकड़े कर कर वहां धरती पर ही गाड़ दिया। इस त्रिशूल का हिस्सा आज भी इस मंदिर में विद्यमान है। त्रिशूल के तीनों हिस्से दिखाई देते हैं। त्रिशूल का एक अंश मंदिर के अंदर टाइल्स लगाने की वजह से वो हिस्सा फर्श के बराबर हो गया है। भगवान शिव के इस त्रिशूल के अंश के दर्शन मंदिर में आने से पहले स्नान करने के बाद ही किए जाते हैं।
मंदिर के एक हिस्से में रखी हैं सुधान्त दानव की अस्थियां
सुधान्त चाहे राक्षस जाति से संबंधित थी। परंतु उसका भगवान शिव के हाथों वध होने से उसे मोक्ष मिला। मोक्ष मिलने के कारण ही मंदिर के एक भाग में सुधान्त दानव की अस्थियों को रखा हुआ है। मंदिर में भगवान शिव के त्रिशूल के अंश के दर्शन करने के बाद भक्त इस राक्षस की अस्थिय़ां रखे स्थान के भी दर्शन भी करते हैं।
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पाप नाशनी बाउली
मंदिर के बाहर ही पाप नाशनी बाउली (बावड़ी) स्थित है। इस बाउली में पहाड़ो से सारा साल 24 घंटे ही पानी मौजूद रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस बाउली में नहाने से सारे पाप नष्ट हो जाते है। अधिकतर भक्त इसमें स्नान करने के बाद ही मंदिर में जाते है।
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बाबा रूपनाथ की धूणी
इस मंदिर में नाथ सम्प्रदाय के संत बाबा रूप नाथ ने सदियों पहले समाधि ली थी। उनकी धूणी आज भी मंदिर परिसर में है जहां सदियों से अखंड ज्योति जल रही है।
प्रदीप शाही