क्या आप जानते हैं भगवान शिव के थे छह पुत्र ?

-भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय के थे चार अन्य भाई
क्या आप जानते हैं कि देवों के देव महादेव व भगवान श्री हरि विष्णु जी का विहाह भगवान श्री ब्रह्मा जी के बेटों की बेटियों से हुआ था। भगवान शंकर का विवाह भगवान श्री ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की कन्या सती से और भगवान श्री विष्णु जी का विवाह भगवान श्री ब्रह्मा के पुत्र भृगु की पुत्री लक्ष्मी से विवाह हुआ था। आज तक हम सभी ने भगवान शंकर के दो पुत्रों सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश और भगवान कार्तिकेय के बारे ही सुना है। परंतु देवों के देव भगवान शंकर के इन दो पुत्रों के अलावा चार अन्य पुत्र भी थे। यानिकि भगवान शिव के कुल छह पुत्र थे। आईए आज आपको भगवान शिव के छह पुत्रों के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करते हैं। आखिर कौन है यह भगवान शिव की संतान।

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सती और पार्वती कौन हैं ?
सती भगवान श्री ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की बेटी थी। जो अपने पिता दक्ष की ओर से अपने पति भोले शंकर का अपमान न सहन कर पाने पर यज्ञ की आग में कूदकर भस्म हो गई थी। सती के आत्मदाह करने के बाद सती ने अपने दूसरे जन्म में पर्वतराज हिमालय के यहां उमा के रूप में जन्म लिया। यह उमा ही बाद में पार्वती के नाम से विख्‍यात हुईं। दूसरे जन्म में उमा ने कठोर तपस्या कर भगवान शिव को वर के रुप में हासिल किया। माना जाता है कि सती या उमा ही मां दुर्गा के आदि रूप हैं। शिव और पार्वती के ‍मिलन के बाद शिवजी का गृहस्थ जीवन शुरू हुआ।

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गणेश का जन्म कैसे और कब हुआ ?
पुराणों में गणेशजी की उत्पत्ति की कई कथाएं मिलती हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। पहली कथा अनुसार शनि की दृष्टि पड़ने से शिशु गणेश का सिर जलकर भस्म हो गया। इस पर दुःखी पार्वती से ब्रह्मा जी ने कहा कि जिसका सिर भी सर्वप्रथम मिले। उस शीश को गणेश के सिर पर लगा दो।। पहला सिर हाथी के बच्चे का ही मिला। इस प्रकार गणेश गजानन के रुप में भी विख्यात हुए। दूसरी कथा अनुसार गणेश को द्वार पर बिठाकर पार्वती जी स्नान करने गई। इतने में भगवान शिव आए। और पार्वती के भवन में प्रवेश करने लगे। गणेश जी ने जब उन्हें रोका तो गुस्साए शिव ने उनका सिर काट दिया। गौर हो गणेश की उत्पत्ति पार्वतीजी ने चंदन के मिश्रण से की थी। जब पार्वतीजी ने देखा कि उनके बेटे का सिर काट दिया। तो वह क्रोधित हो उठी। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेशजी के सिर पर लगा दिया। और वह जी उठे।

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कार्तिकेय का जन्म कैसे हुआ ?
शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद के नाम से पहचाना जाता है। कार्तिकेय की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं। ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण की रचना हुई। कार्तिकेय के जन्म की कथा भी विचित्र है। कथा अनुसार जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती कूदकर भस्म हो गईं। तब भगवान शिव विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन होने लगी। इस मौके का फायदा दैत्यों ने उठाया। धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल गया। एेसे में देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ा। चारों तरफ हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने भगवान ब्रह्माजी से प्रार्थना की। तब ब्रह्माजी ने कहा कि इस असुर का अंत शिव पुत्र करेगा। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास गए। तब भगवान शंकर पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं। और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं। आखिर शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हुआ। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। जन्म लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। पुराणों अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।
दूसरी कथा अनुसार कार्तिकेय का जन्म छह अप्सराओं के छह अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे छह अलग-अलग शरीर एक में ही विलीन हो गए। जो कार्तिकेय के नाम से पहचाने गए।

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सुकेश थे भगवान शिव के तीसरे पुत्र
भगवान शिव के तीसरे पुत्र का नाम सुकेश था। राक्षसों का प्रतिनिधित्व दो लोगों हेति और प्रहेति को सौंपा गया। ये दोनों सगे भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी। राक्षसराज हेति ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु काल की पुत्री भया से विवाह किया। भया से विद्युत्केश नामक पुत्र का जन्म हुआ। विद्युत्केश का विवाह संध्या की पुत्री सालकटंकटा से हुआ। माना जाता है कि सालकटंकटा व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की। इसका नाम उन्होंने सुकेश रखा। सुकेश का गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के तीन पुत्र माल्यवान, सुमाली और माली हुए। इन तीनों के कारण ही राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

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शंखचुड़ जांलधर थे भगवान शिव के चौथे पुत्र
शंकचूड़ जालंधर को भगवान शिव का चौथा पुत्र माना गया है। जालंधर भगवान शिव के ही सबसे बड़े दुश्मन थे। श्रीमद्मदेवी भागवत माना जाता है कि एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया। इसी तेज से जालंधर का जन्म हुआ था। पुराणअनुसार जालंधर असुर शिव का अंश था। परंतु इस बाबत उसे कोई जानकारी नहीं थी। जालंधर बेहद शक्तिशाली, बलशाली असुर था। जालंधर ने इंद्र देव को पराजित कर तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया। जालंधर का विवाह वृंदा से हुआ था। वृंदा के पतिवृता होने के कारण ही देवता असुर जालंधर का कुछ ही नहीं बिगाड़ नहीं पा रहे थे। आखिर भगवान विष्णु ने छल से वृंदा का शील भंग कर दिया। इससे जालंधर की शक्ति क्षीण हुई। तब भघवान शिव ने जालंधर का अंत किया।

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भगवान अयप्पा हैं भगवान शिव की पांचवी संतान
भगवान अयप्पा के पिता शिव और माता मोहिनी हैं। विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था। उनके वीर्य को पारद कहा गया। भगवान शिव के वीर्य से ही सस्तव नामक पुत्र ने जन्म लिया। सस्तव को ही 8क्षिण भारत में अयप्पा के तौर पर पूजा जाता है। शिव और विष्णु के मोहिनी रुप से उत्पन होने के कारण उनको हरिहरपुत्र भी कहा जाता है। गौर हो केरल में शबरीमाला में अयप्पा स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है। जहां पर भक्त भगवान शिव के इस पुत्र के मंदिर में दर्शन करने आते हैं। यह भी माना जाता है कि इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में एक ज्योति दिखाई देती है। इस ज्योति को अयप्पा का रुप माना जाता है।

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भगवान शिव के पसीने से प्रकट हुए भौम
कैलाश पर्वत पर देवों के देव भगवान शिव समाधि में तीन थे। इसी दौरान उनके मस्तक से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया। जिसके चार भुजाएं थीं। इसका रंग लाल था। इस पुत्र को पृथ्वी ने अपनी संतान के रुप में पाला। भूमि पुत्र होने के कारण इन्हें भौम कहा जाता है। भौम बड़ा हो कर काशी पहुंचा। वहां उसने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया।

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प्रदीप शाही

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