-मंत्र के हर अक्षर में छिपे है गूढ़ रहस्य
मंत्र …
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
वेद, पुराण, उपपुराण, रामायण, श्री मद्भगवत गीता में ब्रह्रामांड का समूचा ज्ञान समाहित है। इन पावन ग्रंथों में लिखित श्लोकों में गूढ़ रहस्य छिपे हैं। इन श्लोकों के सही ढंग से उच्चारण में ही जनकल्याण की भावनाएं निहित हैं। यह भी सत्य है कि इस धरती पर हर प्राणी नश्वर है। परंतु महामृत्युंजय मंत्र एक एेसा पावन मंत्र है, जिसे मृत्यु को जीतने वाले महान मंत्र के रुप में पहचाना जाता है। या यूं कहें कि इस पावन मंत्र का जाप मृतक को संजीवनी देने वाला है। इस मंत्र को गायत्री मंत्र के समकक्ष हिंदू धर्म का सबसे व्यापक रूप से उच्चारण किए जाने वाला मंत्र माना गया है।
मार्कण्डेय को कैसे मिला महामृत्युंजय मंत्र का फल
इस धरती पर भगवान शंकर को देवों का देव महादेव कहा जाता है। इसी कारण हर समस्या का समाधान करने के लिए भोले बाबा की स्तुति सबसे पहले की जाती है। ऋषि मृकण्ड की कोई संतान नहीं थी। एेसे में उन्होंने कठोर तपस्या कर पुत्र रत्न को प्राप्त किया। परंतु ज्योतिर्विदों ने उस शिशु को देखकर बालक के अल्पायु होने की घोषणा की। बालक की आयु केवल बारह वर्ष बताई। मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को कहा कि देवी, चिंता मत करो। मेरे स्वामी भगवान शिव तो इस चक्र को भी बदल देंगे। ऋषि मृकण्ड ने अपने पुत्र मार्कण्डेय को कुमारावस्था के प्रारंभ में ही शिव मंत्र की दीक्षा तथा शिव अर्चना की शिक्षा दी। साथ ही पुत्र को उसका भविष्य बताते कहा कि भगवान शिव ही उसे मृत्यु से बचा सकते हैं। मार्कण्डेय ने मंदिर में बैठ महा मृत्युंजय मंत्र की शरण ले ली। 12 साल आयु पूरा होते ही यमराज के दूत आए, परंतु जाप सुन कर वह खाली हाथ लौट गए। यमदूतों ने यमराज से कहा कि हम मार्कण्डेय को साथ नहीं ला पाए। तब यमराज ने कहा कि वह खुद मार्कण्डेय को लाएंगे। यमराज के पहुंचने पर मंदिर में स्थित शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र गंगाधर चन्द्रशेखर प्रकट हुए। उन्होंने त्रिशूल उठा कर यमराज से कहा कि तुम मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस नहीं कर सकते हो। यमराज ने हाथ जोड़ कर कहा कि कि मैं तो आप का सेवक हूं। कर्मानुसार इस जीव को साथ लेने आया हूं। तब भगवान चंद्रशेखर ने कहा कि महा मृत्युंजय के जाप के चलते मैने इसे अमरत्व दिया है। मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज ने स्वीकार किया। प्रभु के आशीर्वाद से मार्कण्डेय के अल्पायु होने का संकट भी समाप्त हो गया।
भगवान शिव की अनूठी स्तुति है महामृत्युंजय मंत्र
मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र यानि कि महामृत्युंजय मंत्र को त्रयंबकम मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र को यजुर्वेद के रूद्र अध्याय में, भगवान शिव की स्तुति हेतु की गयी वंदना माना गया है। शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित इस महान मंत्र का यजुर्वेद में भी उल्लेख है।
महामृत्युंजय मंत्र के हैं कई नाम व रुप
महामृत्युंजय मंत्र को शिव के उग्र पहलू की ओर संकेत करने वाला रुद्र मंत्र कहा जाता है। इसके अलावा शिव के त्रि-नेत्र की तरफ इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र को मृत-संजीवनी मंत्र के रूप में भी जाना जाता है। यह मंत्र ऋषि शुक्र को उनकी कठोर तपस्या के फल के रुप में प्रदान किया गया था। इस मंत्र को जीवन बहाल करने वाली विद्या का एक रुप में कहा जाता है। इतना ही नहीं ऋषि-मुनियों ने तो महामृत्युंजय मंत्र को वेद का ह्रदय कह कर संबोधित किया है। इस मंत्र को चिंतन व ध्यान में विशेष माना गया है।
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महामृत्युंजय मंत्र के हर अक्षर में छिपे हैं गूढ़ रहस्य
शासत्रों में महामृत्युंजय मंत्र को मृत संजीवनी मंत्र कहा गया है। इस मंत्र के हर अक्षर में गूढ़ रहस्य छिपे हैं। अलग-अलग समस्याओं के लिए यह बेहद अचूक मंत्र है।
स्वास्थय बेहतर बनाने के लिए
स्वास्थय को अच्छा बनाए रखने के लिए एकाक्षरी महामृत्युंजय मंत्र- हौं का जाप बेहद लाभदायक है। सुबह उठकर इस मंत्र का जाप करने से स्वास्थय लाभ होता है।
छोटी बीमारी से निजात पाने में सहायक
त्रयक्षरी महामृत्युंजय मंत्र- ‘ऊं जूं स:’ का जाप छोटी बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। इस मंत्र के सोने से पहले 27 बार जाप करने से छोटी बीमारियां पर प्रभाव साफ तौर से देखा जा सकता है।
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दुर्घटनाओं, सर्जरी में लाभकारी
इंसान के मन में अक्सर सर्जरी और दुर्घटना जैसी आशंकाएं बनी रहती है। एेसी स्थिति सामने आने पर चतुराक्षी महामृत्युंजय मंत्र- ‘ऊं हौं जूं स:’ का जाप बेहद लाभकारी है।
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हर रोग से करे मुक्त यह मंत्र
दशाक्षरी महामृत्युंजय महामंत्र- ‘ऊं जूं स: माम पालय पालय’ के जाप से हर तरह के रोगों से मुक्ति हासिल की जा सकती है। इस मंत्र को अमृत मृत्युंजय मंत्र भी कहा जाता है।
मृत संजीवनी मंत्र है महामंत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
महा मृत्युंजय मंत्र का संपूर्ण अर्थ
त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला
यजामहे = जिनका हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं,
सुगंधिम = मीठी महक वाला
पुष्टिः = फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, आनन्दित करता है. स्वास्थ्य प्रदान करता है
उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
इव = जैसे, इस तरह
बन्धनात् = तना (लौकी का) वास्तव में समाप्ति
मृत्योः = मृत्यु से
मुक्षीय = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा = न
अमृतात् = अमरता, मोक्ष
मंत्र का सरल अनुवाद
हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग हों। अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों।
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महामृत्युजय मंत्र प्रयोग के लाभ
कलियुग में केवल महादेव पूजा फल देने वाली है। समस्त पापों व दुखों का हरण करने के लिए महामृत्युजय मंत्र की विधि ही श्रेष्ठ है। महामृत्युजंय का पाठ करना लाभकारी, कल्याणकारी व मंगलकारी होता है। मंत्र के सही ढंग से उच्चारण व सुनने से भी लाभ मिलता है।
प्रदीप शाही