भगवान शिव को समर्पित मंदिर में होती है कुत्ते की पूजा

-14-15वीं शताब्दी में हुआ था कुकरदेव मंदिर का निर्माण
भारत के कोने-कोने में बने मंदिरों में विभिन्न तरह की परंपराएं सदियों से प्रचिलत हैं। कई मंदिर एेसे भी हैं, जहां पर देवी-देवताओं के अलावा जानवरों का पूजन करने की प्रथा भी प्रचलित है। जो इन मंदिरों को अन्य मंदिरों से अलग करते हैं। भारत में भगवान शिव को समर्पित एक एेसा मंदिर भी हैं, जहां पर कुत्ते की पूजा करने की परंपरा कायम है। आईए, आज आपको बताएं कि यह मंदिर भारत के किस राज्य में कब और किसने स्थापित किया। साथ ही इस मंदिर से संबंधित कौन-कौन से मान्यताएं आज भी प्रचलित हैं।

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किस राज्य में स्थित है मंदिर
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में कुकुरदेव नाम का एक प्राचीन मंदिर स्थापित है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में कुत्ते की पूजा करने की परंपरा है। मंदिर में शिवलिंग भी प्राण-प्रतिष्ठित है। परंतु मंदिर में कुत्ते की पूजा को प्राथमिकता दी जाती है। मान्यता है कि यहां पर कुत्ते के दर्शन करने मात्र से ही कुकुर खांसी व कुत्ते के काटने का भय समाप्त हो जाता है।

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क्या है मंदिर का इतिहास
कुकरदेव नामक इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14-15 वीं शताब्दी में करवाया गया था। मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है। जबकि बगल में ही एक शिवलिंग की प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठित है। कुकुर देव मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ कुत्तों की प्रतिमा लगी हुई है। मंदिर में आने वाले भक्त भगवान शिव जी के अलावा कुत्ते कुकुरदेव की वैसे ही पूजा करते हैं। जैसे आम शिवालयों में नंदी की पूजा की जाती है।

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मंदिर के गुंबदों पर बने हैं नागों के चित्र
मंदिर में बने गुंबद की चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। इतना ही नहीं मंदिर के चारों तरफ उसी समय के शिलालेख भी रखे हैं। इन शिलालेखों पर बंजारों की बस्ती, चांद, सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है। भगवान श्री राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमाएं भी सुशोभित हैं। इसके अलावा एक ही पत्थर से बनी दो फीट उंची सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा भी मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित हैं।

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मंदिर स्थापना बारे पुरात्तव विभाग की जानकारी

मंदिर के परिसर में पुरात्तव विभाग ने एक बोर्ड भी लगाया हुआ है। जिस पर जानकारी अंकित है। कहा जाता है कि कभी यहां बंजारों की एक बस्ती थी। मालीघोरी नाम के बंजारे के पास एक पालतू कुत्ता था। अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने प्रिय कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। इसी बीच साहूकार के घर चोरी हो गई। कुत्ते ने चोरों को साहूकार के घर से चोरी का माल समीप के तालाब में छुपाते देख लिया था। सुबह कुत्ता साहूकार को चोरी का सामान छुपाए स्थान पर ले गया और साहूकार को चोरी का सामान भी मिल गया। कुत्ते की वफादारी से अवगत होते ही उसने सारा विवरण एक कागज में लिखकर उसके गले में बांध दिया और असली मालिक बंजारे के पास जाने के लिए कुत्ते को मुक्त कर दिया। अपने कुत्ते को साहूकार के घर से लौटकर आया देखकर बंजारे ने गुस्से में डंडे से पीट-पीटकर कुत्ते को मार डाला। कुत्ते के मरने के बाद उसके गले में बंधे पत्र को देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। आखिर बंजारे ने अपने प्रिय स्वामी भक्त कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में ही कुकुर समाधि बनवा दी। कुछ समय बाद किसी ने इस कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित कर दी। आज इस इलाके में यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।

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बंजारा के नाम पर है एक गांव का नाम
मंदिर के सामने की सड़क के पार से मालीधोरी गांव शुरू होता है। जिसका नामकरण बंजारा के नाम पर है। इस गांव को मालीधोरी बंजारा के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर में वह लोग भी आते हैं, जिन्हें कुत्ते ने काट लिया हो। यहां हालांकि किसी का इलाज तो नहीं होता, लेकिन ऐसा विश्वास है कि यहां आने से वह सभी आदमी ठीक हो जाते हैं। जिन्हें कुत्ते ने काटा हो।

प्रदीप शाही

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