क्यों किया जाता है देवी देवताओं की मूर्तियों का जल विसर्जन ??

भारतीय संस्कृति में देवी देवताओं की प्रतिमाओं औऱ धार्मिक चित्रों का बेहद श्रद्धा व सम्मान से पूजन किया जाता है। हर साल देश में आयोजित होने वाले धार्मिक समागमों के बाद देवी देवताओं की मूर्तियों को जल प्रवाह करने की परंपरा भी है। शास्त्रों अनुसार जल ही सृष्टि का आरंभ और अंत है। सृष्टि के आरंभ के समय भी जल था। इस सृष्टि के अंत में भी जल का ही चारों तरफ साम्राज्य होगा। एेसे में जल को बेहद पावन मानते हुए ही देवी देवताओं की प्रतिमाओं को जल में प्रवाह करने की सदियों से रीत जारी है। भारत में भगवान श्री गणेश चुतुर्थी के अलावा मां दुर्गा का श्रद्धा व उल्लास से पूजन हर राज्य में करने की परंपरा है। इस पूजन के समापन पर इन प्रतिमाओं को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। यह रहस्य लंबे समय से कौतहूल का विषय बना हुआ है। शास्त्रों में इस बाबत क्या कुछ कहा गया है। आईए इस बारे आपको जानकारी दें।

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जल को हमेशा से पावन माना गया
इस धरती पर जल को हर शास्त्र में पावन माना गया है। यानिकि जल ही सत्य है। भगवान श्री राम और उनके छोटे भ्राता लक्ष्मण ने भी जल को बेहद पावन मानते हुए जल में समाधि ली थी। कई संत महात्मांओं के पार्थिव शरीर को भी जल में प्रवाह करने की रीत चल रही है। भारत में नदियों को तो माता का दर्जा दिया गया। जिसमें गंगा माता प्रमुख है। जो भगवान शिव की जटाओं से निकलती है।

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जल के देवता हैं वरुण
शास्त्रों अनुसार वरुण को जल का देवता कहा जाता है। जिसे भगवान विष्णु का दूसरा स्वरूप भी कहा जाता है। और भगवान श्री विष्णू का निवास भी जल में है। इस लिए जल को बेहद पावन माना जाता है। हवन यज्ञ में जल का आचमन किया जाता है। किसी भी पूजा के दौरान जल को किसी बर्तन में संग्रहित कर रखा जाता है। पूजा संपन्न होने के बाद जल के छींटे दिया जाना बेहद शुभ माना गया है। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों की ओऱ से जल को हाथ की अंजुलि में भर कर श्राप दिया जाता था। एेसे में शास्त्रों अनुसार देवी देवताओं को पूजन के बाद उनकी प्रतिमाओं को जल में समर्पित कर देना चाहिए।

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जल मार्ग से अपने लोक को प्रस्थान करते हैं देवी देवता
शास्त्रों अनुसार जब भी हम किसी अनुष्ठान के दौरान मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। तो उसी समय देवी देवताओं को उन मू्र्तियों वास हो जाता है। जब हम अनुष्ठान पूर्ण कर लेते हैं, तो उन प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों को जल में प्रवाह कर देना चाहिए। ताकि वह फिर से अपने लोक में ही फिर वास कर सके।

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