क्यों किया जाता है अंतिम संस्कार ?
भारतीय संस्कृति में अनेक ऐसी परंपराएं व मान्यताएं हैं जो आज भी वैज्ञानिक महत्व रखती हैं। वैदिक आचार्यों व ऋषियों ने इनके स्वरूप को कुछ ऐसा बनाया कि पर्यावरण व किसी अन्य को कोई हानि ना हो। विचारों को विश्वासों का रूप देने के पीछे प्रकृति की शुद्धता से संबंधित चिंतन प्रमुख रहा है। ऐसा ही कुछ देखने को मिलता है मानव के अंतिम संस्कार कर्म में। अंतिम संस्कार से जुड़ी अनेक ऐसी बातें हैं जिनके पीछे के परम्परागत तथा वैज्ञानिक महत्व के बारे में आप शायद ही जानते हैं।
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दाह संस्कार के नियम
हिन्दू धर्म में मृतक के शरीर को जल्द से जल्द जला देने का नियम है। ताकि मृतक के शरीर का कण-कण प्रकृति में विलीन हो जाए तथा किसी प्रकार का रोग व बीमारी ना फैले। अंतिम संस्कार के बाद बची राख व अस्थियों को गंगा या किसी पावन नदी में बहा देने की परंपरा है। गरूड़ पुराण के अनुसार ऐसा करने से मृतक की आत्मा को शान्ति मिलती है तथा अगले जन्म में प्रवेश का द्वार खुलता है।
दक्षिण दिशा में क्यों रखते हैं मृतक का सिर ?
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मृत शरीर का सिर चिता पर दक्षिण दिशा में रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार मरणासन्न व्यक्ति का सिर उत्तर की ओर व मृत्यु के पश्चात दाह संस्कार के समय उसका सिर दक्षिण की ओर रखना चाहिए। विज्ञान के अनुसार माना जाता है कि चुंबकीय तरंगें उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। अतः अगर मरणासन्न व्यक्ति का सिर उत्तर दिशा में रखा जाए तो व्यक्ति के प्राण जल्दी व कम कष्ट से निकलते हैं। वहीं मृत्यु के बाद दक्षिण दिशा में सिर रखने का कारण है कि दक्षिण दिशा यमराज की मानी गई है। तथा इस क्रिया से मृत शरीर को मृत्यु के देवता को समर्पित किया जाता है।
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क्यों नहीं करना चाहिए सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार ?
भारतीय धर्म ग्रंथों में सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार करने की मनाही है। ऐसी मान्यता है कि सूर्यास्त के बाद दाह संस्कार करने से मृतक की आत्मा को परलोक में भारी कष्ट सहना पड़ता है। तथा अगले जन्म में उसके किसी अंग में दोष हो सकता है।
इसके पीछे कोई ठोस वैज्ञानिक कारण तो स्पष्ट नहीं होता किन्तु इतना अवश्य है कि सूर्यास्त के बाद पेड़-पौधों के द्वारा कार्बनडाईआक्साइड छोड़ने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। चिता को जलाते समय भी अनेक प्रकार की विषैली गैसें निकलती हैं जो पर्यावरण को दूषित करती हैं तथा पर्यावरण में आक्सीजन की कमी के कारण उस स्थान विशेष में मौजूद लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। शायद इसी कारण सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार ना करने की मान्यता है।
क्यों की जाती है पार्थिव शरीर की परिक्रमा ?
दाह संस्कार के समय मृतक का कोई नज़दीकी रिश्तेदार एक छेद वाले घड़े से जल गिराते हुए मृतक के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद घड़े को तोड़ देता है। यह मात्र एक परंपरा ही नहीं है बल्कि इसके पीछे धार्मिक तथा दार्शनिक रहस्य छिपा है। घड़ा तोड़ने की प्रक्रिया आत्मा का मोह भंग करने के लिए की जाती है। इसके पीछे दार्शनिक मत है कि जीवन घड़े से निकलते हुए पानी की तरह निरंतर घटता रहता है और अंत में घड़े के फूट जाने के समान समाप्त हो जाता है। शमशान में खड़े लोगों के सामने यह क्रिया वैराग भाव जागृत करने के लिए की जाती है।
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क्यों रखी जाती है मृतक के मुख पर चंदन की लकड़ी ?
हिन्दू परंपरा में मृतक के मुख पर चंदन की लकड़ी रखी जाती है। मान्यता है कि चंदन की लकड़ी शीतल होती है तथा मरने वाले की आत्मा को आगे भी ऐसा ही शीतलता का अनुभव हो, इस लिए यह क्रिया की जाती है। किन्तु इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि जब पार्थिव शरीर को जलाया जाता है तो उससे दुर्गंध पैदा होती है। लेकिन चंदन की लकड़ी के जलने से यह दुर्गंध पूरी तरह से समाप्त तो नहीं होती किन्तु कुछ कम जरूर हो जाती है।
अंतिम संस्कार के बाद नहाते क्यों हैं ?
हिन्दू धर्म में चिता को जलाने के बाद सभी स्नान करते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक मत है कि मृतक शरीर में कीटाणु पैदा हो जाते हैं। तथा इनके फैलने का डर बना रहता है इसलिए दाह संस्कार के बाद नहाना जरूरी है ताकि किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचा जा सके।
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महिलाएं क्यों नहीं जाती श्मशान घाट ?
माना जाता है कि श्मशान में प्रेत आत्माओं का वास होता है तथा यह बुरी आत्माएं औरतों को अपना निशाना बनाती हैं इसलिए औरतें श्मशान भूमि में नहीं जातीं। लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है कि महिलाओं का दिल पुरुषों के मुकाबले कोमल होता है। कई बार जलती चिता को देखकर महिलाओं के मन में डर बैठ जाता है। दूसरा कारण है कि पुरुषों के श्मशान से लौटने के बाद उन्होंने नहाना होता है इस लिए घर पर महिला का मौजूद होना जरूरी है। तीसरा कारण यह है कि अंतिम संस्कार के बाद पुरुषों के बाल मुंडवाने की परंपरा है लेकिन महिलाएं बाल नहीं कटवा सकतीं।
धर्मेन्द्र संधू