मुण्डन संस्कार का क्या है वैज्ञानिक आधार ?

-मुण्डन संस्कार क्यों है जरूरी

भारतीय संस्कृति एक महान संस्कृति है। संस्कार, रीति रिवाज़, मान्यताएं, परम्पराएं, लोक विश्वास इत्यादि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। भारतीय संस्कृति में संस्कारों को विशेष महत्व दिया गया है। हिन्दू धर्म में मानव जीवन को मर्यादित व पवित्र बनाने के लिए 16 संस्कारों का वर्णन देखने को मिलता है। धार्मिक के साथ-साथ इन संस्कारों का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह संस्कार मानव जीवन में अहम स्थान रखते हैं। मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक इन 16 संस्कारों का विशेष महत्व है। इन 16 संस्कारों में एक प्रमुख संस्कार है ‘मुण्डन संस्कार’। मुण्डन संस्कार में बच्चे के सिर के बाल पहली बार पूरी तरह से उतार दिए जाते हैं। कहा जाता है कि बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके सिर पर गर्भ से कुछ बाल होते हैं जिन्हें अशुद्ध माना जाता है इसीलिए मुण्डन संस्कार किया जाता हैं। इस संस्कार को ‘चूड़ाकर्म संस्कार’ भी कहा जाता है। मुण्डन संस्कार 16 अन्य संस्कारों की सूची में आठवें स्थान पर आता है।

मुण्डन संस्कार का वैज्ञानिक महत्व

मुण्डन संस्कार पहले या तीसरे साल में किया जाता है। माना जाता है कि जब बच्चा मां के पेट में होता है तो उसके बालों में कई प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया लगे होते हैं। जो बार-बार धोने से भी नहीं निकलते इस लिए मुण्डन संस्कार में बच्चे के पहले बाल उतार दिए जाते हैं। एक और तथ्य के अनुसार गर्भावस्था के समय सिर के कुछ रोमछिद्र बंद हुए होते हैं। मुण्डन के द्वारा बच्चे के सिर के कीटाणु व गंदगी दूर हो जाती हैं और बंद रोमछिद्र खुलने के बाद घने व मज़बूत नए बाल आते हैं। माना जाता है कि एक साल के अंदर मुण्डन करवाने से बच्चे का सिर मज़बूत होता है और साथ ही दिमाग भी तेज़ होता है।

 

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कब करना चाहिए मुण्डन संस्कार?

वैसे तो पहले साल में ही मुण्डन संस्कार किया जाता है लेकिन तीसरे साल में किया गया मुण्डन संस्कार सही माना जाता है। इसका कारण है कि जन्म के एक साल तक बच्चे का कपाल अति कोमल होता है। बच्चे का कपाल दो-तीन साल की उम्र में कठोर होना शुरू होता है। इस लिए तीन साल की उम्र में किया गया मुण्डन सही माना जाता है। लेकिन कुछ लोगों द्वारा अपनी कुल परंपरा के अनुसार एक साल, तीन साल या पांच साल की उम्र में मुण्डन संस्कार संपन्न किया जाता है।

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मृत्यु होने पर भी किया जाता है मुण्डन

हिन्दू धर्म में बच्चे का मुण्डन संस्कार किया जाता है। इसके इलावा किसी करीबी व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी मुण्डन किया जाता है। विज्ञान के अनुसार माना जाता है कि जब मृतक का अंतिम संस्कार किया जाता है तो उस समय हानिकारक बैक्टीरिया संस्कार करने वाले व्यक्तियों के शरीर के साथ जुड़ जाते हैं। सिर में चिपके जीवाणुओं को खत्म करने के लिए कुछ लोगों द्वारा मुण्डन करवाया जाता है।

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इच्छा पूर्ण होने पर मुण्डन

कई बार मन्नत या इच्छा पूर्ण होने पर भी कुछ लोगों द्वारा मुण्डन करवाया जाता है। आम तौर पर लोग धार्मिक स्थलों पर जाकर मन्नत मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर अपने बाल उतरवाते हैं। यह प्रथा खासकर वाराणसी व तिरुपति में प्रचलित है।

 

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मुण्डन के बाद ‘चोटी’ या ‘शिखा’ रखना

मुण्डन के बाद सिर के ऊपर एक छोटी सी चोटी रखी जाती है। जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है सिर के उस स्थान को विज्ञान के अनुसार शरीर के अंगों, मन व बुद्धि को नियंत्रित करने वाला स्थान माना जाता है। यही स्थान सुषुम्ना नाड़ी का स्थान भी है। मानव के हर प्रकार के विकास में सुषुम्ना नाड़ी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। विज्ञान के अनुसार यह स्थान मस्तिष्क का केन्द्र होता है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी का हानिकारक प्रभावों से बचाव करती है। ज्योतिष में जिसका राहु नीच का हो या राहु खराब प्रभाव दे रहा हो उसे चोटी रखने व तिलक लगाने का उपाय बताया जाता है।

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