क्या है गंगा जल का वैज्ञानिक महत्व ?

 

भारतीय संस्कृति व हिन्दू धर्म में पवित्र नदियों को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। इन नदियों का पूजन किया जाता है। इन नदियों का निर्मल जल भारत के लाखों लोगों के लिए प्राण वर्धक सिद्ध होता है। हिन्दू धर्म, हिन्दू रीति रिवाज़ों में पावन पवित्र गंगा नदी का विशेष महत्व है। माना जाता है कि गंगा नदी के पावन जल में स्नान करने से ही पापों से मुक्ति मिल जाती है। तथा मानव के सभी दुख दरिद्र दूर हो जाते हैं। यहां तक भी कहा जाता है कि गंगा जल का मात्र स्पर्श करने से ही बड़े से बड़ा पाप समाप्त हो जाता है। गंगा नदी उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक भूमि को सींचते हुए जीवन प्रदान करती है। गंगा नदी भारत की प्राकृतिक संपत्ति ही नहीं है बल्कि भारत वासियों की भावनाओं व आस्था का आधार भी है। इस लिए मान्यता है कि मृतक व्यक्ति की अस्थियों को गंगा में बहाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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गंगा नदी का उद्गम स्थान

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री को गंगा नदी का उद्गम स्थान माना जाता है। इस स्थान से निकल कर गंगा नदी कई किलोमीटर का सफर तय करते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। जिस मुख्य स्थान से गंगा नदी निकलती है उसे गोमुख कहा जाता है। गंगा नदी के उद्गम के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहा जाता है कि रघुकुल के राजा भागीरथ ने अपने पूर्वज़ों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रण किया था लेकिन उन्हें मोक्ष प्राप्ति गंगा जल के द्वारा ही हो सकती थी। इस लिए राजा भागीरथ ने घोर तपस्या की । इस पर प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने भागीरथ को कहा कि तुम्हारा मनोरथ जल्द ही पूर्ण होगा लेकिन कठिनाई यह है कि गंगा के वेग को यह धरती संभाल नहीं पाएगी। इसके बाद भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटा में बांधा और धारा के रूप में धरती पर जाने दिया। इस प्रकार गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई।

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हिन्दू धर्म में गंगा जल का महत्व

हिन्दू धर्म में धार्मिक अनुष्ठानों व कर्मकांडों में गंगा जल को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है। मुख्य रूप से गंगा जल को पूजा स्थान पर रखा जाता है। गंगा जल का प्रयोग पूजा के लिए, चरणामृत में मिलाने के लिए तो होता ही है। साथ ही यह भी माना जाता है कि जब मानव मृत्यु के करीब होता है तो उसके मुंह में गंगा जल डाला जाता है कि उसकी आत्मा सीधे स्वर्ग को जाए।

गंगा जल का वैज्ञानिक महत्व

कहा जाता है कि गंगा का जल कभी खराब नहीं होता। धार्मिक अनुष्ठानों में गंगा जल का विशेष महत्व है। गंगा जल से प्रत्येक वस्तु पवित्र हो जाती है। इस लिए ज्यादातर हिन्दू घरों में गंगा जल को संभालकर रखा जाता है।गंगा जल की खूबियों के चलते इसका आधात्मिक महत्व होने के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए परीक्षणों से सिद्ध हो चुका है कि गंगा जल शरीर की शक्ति को बढ़ाता है। गंगा जल का सेवन करने से दमा, तपेदिक, मलेरिया व हैजा इत्यादि रोग नष्ट हो जाते हैं।

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क्यों नहीं पड़ते गंगा जल में कीड़े ?

वैज्ञानिकों ने शोध कर यह तथ्य निकाला है कि गंगा जल में ‘बैक्टीरियोफाज़’ नामक एक विषाणु पाया जाता है जो गंगा जल को दूषित व गंदा करने वाले दूसरे जीवाणुओं को समाप्त कर देता है इसलिए गंगा जल में कभी कीड़े नहीं पड़ते। यह लम्बे समय तक सही रहता है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने पाया है कि गंगा जल में प्राणवायु आक्सीजन को बनाए रखने की अद्भुत क्षमता है लेकिन यह क्यों है इसको सिद्ध व प्रमाणित करने में वैज्ञानिक अभी तक असमर्थ हैं। तकरीबन सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर हाकिन ने गंगा जल पर शोध कर यह सिद्ध किया था कि जब घातक बीमारी हैजा के बैक्टीरिया को गंगा जल में डाला गया तो कुछ समय बाद ही हैजा का बैक्टीरिया मर गया था। आज भी कई वैज्ञानिकों ने गंगा जल का निरीक्षण कर पाया है कि गंगा जल में बैक्टीरिया को मारने व नष्ट करने की क्षमता मौजूद है।

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इतिहासकारों के अनुसार बादशाह अकबर खुद गंगा जल का सेवन करते थे और आने वाले मेहमानों को भी गंगा जल ही पेश किया जाता था। यह भी कहा जाता है कि जब अंग्रेज़ वापिस इंग्लैंड जाते थे तो पीने के लिए अपने साथ गंगा जल ले जाते थे और इसके उल्ट जो पानी वह अपने देश से लाते थे वह कुछ ही दिनों में खराब हो जाता था। गंगा नदी इसके ऊपर निर्भर करने वाले अनेकों लोगों की जीवन रेखा कही जा सकती है। प्रत्येक मानव का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह पावन गंगा की शुद्धता को बरकरार रखे क्योंकि गंगा नदी हमारी अमीर भारतीय संस्कृति की पहचान है, यह नदी हमारी अमूल्य धरोहर व निर्मल पावन जल का स्त्रोत होने के साथ-साथ हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक है।

धर्मेन्द्र संधू

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