साल में केवल एक दिन खुलता है यह रहस्यमयी मंदिर

धर्म और अध्यात्म भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारतीय संस्कृति में धर्म और अध्यात्म का विशेष स्थान है। प्राचीन समय से ही धार्मिक स्थान भारत के वासियों के लिए श्रद्धा व भक्ति का मुख्य केन्द्र रहे हैं। भारत के कोने-कोने में अनेक मंदिर मौजूद हैं। कुछ मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं तो कुछ मंदिर अपने चमत्कारों व रहस्यों के लिए । यह मंदिर आज भी ऐसे रहस्यों को समेटे हुए हैं जिन्हें समझना आम इंसान के बस के बाहर की बात है। कुछ रहस्य तो ऐसे तो हैं जिन्हें विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया। कहीं पर पानी से दीपक जलता है तो कहीं पर शिवलिंग का रंग अपने आप बदल जाता है। ये तो केवल कुछ उदाहरण हैं। पूरे भरत में ऐसे रहस्यमयी मंदिर हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जो साल में केवल एक बार ही खुलता है। और सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि इस मंदिर में अपने आप ही ज्वाला प्रकट होती है जिसके दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लग जाता है।

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निराई माता मंदिर

यह है छत्तीसगढ़ में स्थित ‘निराई माता मंदिर’। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है निराई माता का यह रहस्यमयी मंदिर। यह मंदिर साल में केवल पांच घंटे के लिए ही खुलता है। सुबह 4 बजे से केवल 5 बजे तक खुलने वाले इस मंदिर में भारी मात्रा में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।

रहस्यमयी ढंग से प्रज्वलित होती है ज्योति

इस मंदिर के बारे में एक और रहस्यमयी बात यह है कि हर साल चैत्र के नवरात्रों में एक ज्योति अपने आप  ही प्रकट होती है और माता के नवरात्रों के दौरान पूरे नौ दिन तक निरंतर जलती रहती है। खास बात यह है कि यह ज्योति बिना तेल या घी के जलती है। यह ज्योति कैसे प्रकट होती है इसके बारे में आज भी रहस्य बना हुआ है।

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प्रसाद के रूप में चढ़ता है नारियल

आम तौर पर माता को कई तरह के पकवानों व मिठाईयों का प्रसाद चढ़ाया जाता है। लेकिन निराई माता मंदिर में केवल नारियल और अगरबत्ती ही चढ़ाई जाती है।

200 साल से हो रहा है पूजन

इस मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है लेकिन फिर भी लोग पूरी श्रद्धा भावना से पूजा-अर्चना करते हैं। यह पूजा अर्चना पिछले 200 सालों से लगातार जारी है। कहा जाता है कि आज से 200 साल पहले गांव मोहेरा के मालगुजार जयराम गिरि गोस्वामी ने निराई माता की पूजा के लिए छह एकड़ ज़मीन दान में दी थी। इस ज़मीन पर कृषि करने से होने वाली आमदनी से आज तक माता का पूजा-पाठ जातरा संपन्न होता है।

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चैत्र नवरात्रि के पहले रविवार को मनाया जाता है जातरा

चैत्र नवरात्रि के पहले रविवार को भक्त इस मंदिर में जुड़ते हैं। इस दिन जातरा कार्यक्रम आयोजित होता है। केवल इस दिन ही माता के मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं। बाकी सारा साल इस स्थान पर भक्तों का प्रवेश वर्जित है।

बकरों की दी जाती है बलि

भक्तों द्वारा माता को प्रसन्न करने के लिए कुछ ना कुछ भेंट किया जाता है। खास कर इस दिन भक्तों द्वारा हजारों बकरों की बलि दी जाती है। मान्यता है कि बलि देने से देवी मां प्रसन्न होती है और हर मनोकामना पूरी करती है।

महिलाओं का प्रवेश है वर्जित

इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इस मंदिर में पूजा पाठ केवल पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। यहां तक कि महिलाओं को इस मंदिर का प्रसाद खाने की भी मनाही है। माना जाता है कि अगर कोई महिला प्रसाद खाएगी तो कोई अनहोनी हो सकती है।

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पवित्र मन से होते हैं माता के दर्शन

माता के दर्शन साफ मन से किए जाते हैं। अगर कोई व्यक्ति शराब का सेवन कर के या बुराई करता है तो उसे मधु मक्खियों का सामना करना पड़ता है। लोगों का विश्वास है कि निराई माता हर मनोकामना पूरी करती है और भक्तों को दुख तकलीफों व किसी प्रकार के भय से दूर रखती है। इस मंदिर में भक्त मन्नतें मांगने, अपनी समस्याओं के समाधान के लिए व मनवांछित फल पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

धर्मेन्द्र संधू

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