-सोमनाथ मंदिर में हवा में लटकती है भगवान की प्रतिमा…
-ऋग्वेद में भी मिलता है इस मंदिर का उल्लेख
भारत की प्राचीन सभ्यता का उल्लेख लेदों, पुराणों में दर्ज है। देश को सोने की चिडि़या कहने के कारण विदेशियों की नजर हमेशा भारत पर लगी रही। देश के कोने-कोने में स्थापित प्राचीन मंदिरों में हीरे, पन्ने, स्वर्ण मंडित प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों को देख कर हर कोई सहज ही आकर्षित हो जाता है। वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने को दर्शाते गुजरात के पश्चिमी छोर पर स्थापित भगवान सोमनाथ के मंदिर को देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में पहले ज्योतर्लिग का दर्जा हासिल है। ऋग्वेद में उल्लेख किए इस मंदिर का निर्माण चंद्र देव ने किया था।
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सबसे खास बात तो यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा हवा में लटकती है। जो हमेशा से कौतहूल का विषय रहा है। सदियों पुराने समय में इस उच्चकोटि की इंजीनियरिंग का प्रयोग किया जाना हमेशा हैरानीजनक रहा है। मंदिर में मूर्ति, दीवारों से लेकर दरवाजे स्वर्ण मंडित हैं।
हवा में लटकती मूर्ति कौतहूल का विषय
भगवान सोमनाथ के मंदिर में प्रतिमा के हवा में लटकना कौतहूल का विषय ही रहा है। महमूद गजनबी भी इसे देख कर हतप्रभ रह गया था। मूर्ति के चारों तरफ किसी तरह की कोई तार या अन्य चीज के प्रयोग न होने से अचंभित हुआ। जानकारों अनुसार इस मूर्ति के चारों तरफ चुंबक का इस तरह से प्रयोग किया गया हुआ था कि मूर्ति हवा में लटकती थी। सदियों पहले बने इस मंदिर में इस तरह की इंजीनियरिंग कला का प्रयोग करना सचमुच में ही हैरानीजनक है।
मंदिर के प्रागंण व आसपास स्थित हैं देवी देवताओं के मंदिर
मंदिर के प्रांगण में हनुमान जी का मंदिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडीयार, सोमनाथ ज्योतिर्लिग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ के मंदिर हैं। अघोरेश्वर मंदिर के पास भैरवेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर, पंचमुखी महादेव मंदिर कुमार वाडा में विलेश्वर मंदिर के पास राममंदिर स्थित है। इसके अलावा इष्टदेव हाटकेश्वर मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मंदिर, नागनाथ मंदिर समेत कुल 42 मंदिर नगर के दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित बताए जाते हैं। सोमनाथ मंदिर के समयकाल में अन्य देव मंदिर भी थे। इनमें शिवजी के 135, विष्णु भगवान के पांच, देवी के 25, सूर्यदेव के 16, गणेशजी के पांच, नाग मंदिर, क्षेत्रपाल मंदिर, कुंड 18 और नदियां आठ बताई जाती हैं। इतिहासकारों अनुसार महमूद गजनबी के हमले के बाद केवल इक्कीस मंदिरों का निर्माण किया गया।
आखिर क्यों होता है केवल खंडित शिव लिंग का पूजन….
चंद्र देव ने किया था मंदिर का निर्माण
प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक सोम यानि कि चंद्र देव ने दक्षप्रजापति राजा की 27 कन्याओं से शादी की थी। परंतु चंद्र देव सबसे अधिक रोहिणी पत्नी से अधिक प्रेम करते थे। अपनी बेटियों से इस अन्याय के कारण प्रजापति दक्ष ने चंद्र देव श्राप दिया कि अब तुम्हार तेज हर दिन कम होता चला जाएगा।आखिर चंद्र ने श्राप के निवारण के लिए प्रभु शिव की अराधना करते हुए सोमनाथ मंदिर की स्थापना की। मंदिर की भव्यता के बारे अरब यात्री अल-बरुनी ने अपनी यात्रा में जिक्र किया। महमूद गजनवी ने सन् 1024 में मंदिर के भीतर पूजा- अर्चना कर रहे सभी भक्तों को मौत के घाट उतार दिया। मंदिर की तोड़फोड़ कर सभी कीमती सामान को लूट लिया। आखिर मंदिर के तहस नहस होने के बाद राजा भीमदेव ने दोबारा इसका निर्माण करवाया। सन 1297 में दिल्ली के सुलतान अलाऊद्दीन खि़लजी ने गुजरात पर कब्जा कर मंदिर को लूट लिया। इसके बाद सन् 1395 ई. में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को तहस नहस किया। इसके बाद सन 1413 में अहमदशाह ने सोमनाथ मंदिर में तोड़ फोड़ की। आखिर में मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे दोबार 1706 में खंडित किया। मंदिर कई बार टूटा और हर बार इसका जीर्णोद्धार हुआ। पंरतु शिवलिंग हमेशा स्थापित रहा।
मंदिर में स्थापित खंभों में से कैसे निकलता है संगीतमयी स्वर ??
वास्तु कला का बेजोड़ नमूना है सोमनाथ मंदिर…
प्राचीन सोमनाथ मन्दिर के आसपास की भौगोलिक स्थिति के कारण ही मंदिर को कई बार तोड़ा गया। कई बार इसका निर्माण हुआ। वास्तुकला में कुछ दोष होना इसका मुख्य कारण माना गया है। आजादी के बाद मंदिर के नवनिर्माण के बाद कुछ वास्तुदोष को समाप्त किया गया। न जाने कितनी बाद मंदिर को तोड़ा गया। परंतु हर बार प्रभु के आशीर्वाद से इस मंदिर का भव्य स्वरुप हासिल हुआ। मौजूदा मंदिर के भवन का नवनिर्माण लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया था। जबकि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया।[सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है।
यहां हुआ था भगवान श्री कृष्ण का अंतिम संस्कार ??
किदवंती
कहते है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख मानकर धोखे में तीर मार दिया था। तब ही कृष्ण ने यहां पर इस नश्वर देह त्याग दिया था। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।