विश्व का आठवां आश्चर्य है करणी माता मंदिर…

-रहस्यमयी चूहों वाले मंदिर में होती है, चूहों वाली माता की पूजा

-चूहों का झूठा प्रसाद ही किया जाता है भक्तों में वितरित
भारत में स्थित अनेकों मंदिर ऐसे है, जिनके रहस्य आज भी अनसुलझे ही है। हमारे देश में ऐसे ही कई रहस्यमयी और चमत्कारिक मंदिर हैं। इनमें प्रमुख तौर से राजस्थान के बीकानेर से 32 किलो मीटर दूर देशनोक में स्थित चूहों वाला मंदिर है। यह मंदिर करणी माता मंदिर, चूहों वाली माता, मूषक मंदिर से विश्व विख्यात है। इस रहस्यमयी मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर में भक्तों को चूहों का झूठा प्रसाद ही वितरित किया जाता है।

करणी माता को माना जाता है मां जगदम्बा का अवतार
इस इलाके में करणी माता को माँ जगदम्बा का अवतार मानते है। माता का जन्म 1387 में चारण कुल में हुआ था। उनका बचपन का नाम रिघुबाई था। उनकी शादी साठिका गांव के किपोजी चारण से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन से उब गया। इसलिए उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद को माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लगा दिया। जनकल्याण, अलौकिक कार्य और चमत्कारिक शक्तियों के कारण रिघु बाई को करणी माता के नाम से पूजा जाने लगा। जिस गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थी। वह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। श्रद्धालुओं के अनुसार करनी माता 151 वर्ष की आयु में 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लीन हुई थी। उनके ज्योतिर्लीन होने के पश्चात भक्तों ने उनकी मूर्ति की स्थापना कर के उनकी पूजा शुरू कर दी। यहां पर रहने वाले चूहों को काबा कहा जाता कहां जाता है। माँ को चढ़ाये जाने वाले प्रसाद को पहले चूहे खाते है फिर उसे भक्तों में बांटा जाता है।


मंदिर में रहते हैं 20 हजार चूहे
चूहों को प्लेग जैसे भयानक रोग का प्रमुख कारण माना जाता है। बावजूद इसके राजस्थान के करणी माता मंदिर चूहों वाले मंदिर के प्रांगण में हर पल हर जगह चूहों का ही वास है। इस अनूठे मंदिर में 20 हजार चूहे रहते हैं। मंदिर में आने वालो भक्तों को चूहों का झूठा किया हुआ प्रसाद ही वितरित किया जाता है। आज से कुछ दशकों पूर्व समूचे भारत में प्लेग फैला। परंतु इस मंदिर के आस-पास कहीं भी प्लेग की बिमारी का नामोनिशान नहीं था। इतने चूहे होने के बावजूद भी मंदिर परिसर में बिल्कुल भी बदबू नहीं है। सबसे खास बात है कि आज तक मंदिर से प्रसाद ग्रहण करने के बाद कोई भी बीमारी नहीं फैली, यहाँ तक की चूहों का झूठा प्रसाद खाने से कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ है। मंदिर के प्रांगण में माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के शरीर पर चूहे कूद-फांद करते रहते हैं, लेकिन किसी भक्त को कोई भी नुकसान नहीं पहुंचाते है। चील, गिद्ध और दूसरे जानवरों से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थान पर बारीक जाली लगी हुई है।

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मंदिर में चूहों का घायल होना, माना जाता है अशुभ
मंदिर में प्रवेश करते ही हर तरफ चूहे ही चूहे दिखाई देते है। माता के दर्शनों तक पहुंचने के लिए भक्तों को अपने पैरों को घसीटते हुए जाना पड़ता है। ताकि पैर के नीचे आकर चूहे घायल न हो जाएं। क्योंकि मंदिर में चूहों का घायल होना अशुभ माना जाता है। मंदिर में करीब बीस हज़ार काले चूहे हैं। परंतु उनके साथ कुछ सफ़ेद चूहे भी रहते है। इन सफ़ेद चूहों को ज्यादा पवित्र माना जाता है। मान्यता यह है कि यदि सफ़ेद चूहा दिखाई दे जाए, तो मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। सफेद चूहों को करणी माता के परिवार का सदस्य माना जाता है। और काले चूहों को रिश्तेदार और जाति के अन्य सदस्य माना जाता है। सबसे खास बात यह है किि आरती के वक़्त सभी चूहे माता कि मूर्ति के सामने इक्कठे हो जाते है।

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चांदी की विशाल परात में चूहे ग्रहण करते हैं प्रसाद
करणी माता मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर मनमोहक नक्काशी भक्तों को पहली नजर में ही सम्मोहित कर देती है। मंदिर के चांदी के किवाड़, सोने का छत्र और चूहों (काबा) के प्रसाद के लिए यहां रखी चांदी की बड़ी परात भी देखने लायक है। इस चांदी की परात में चूहे प्रसाद ग्रहण करते हैं।

विदेशियों का आकर्षण का केंद्र है मंदिर

मंदिर में बड़ी संख्या में हर साल विदेशी मंदिर के आश्चर्य को देखने पहुंचते हैं। परंतु मन में चूहों से फैलने वाले प्लेग के डर से वह मंदिर में माता के दर्शन के समय अपनी जुराबों को नहीं उतारते हैं। इतना ही नहीं अपनी पैंट को भी भी जुराबों के बीच में कर लेते हैं।

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मंदिर में लगा है आठवें आश्चर्य का बोर्ड

करणी माता मंदििर में चूहों की मौजूदगी को देखते हुए मंदिर के बाहर आठवें आश्चर्य का बोर्ड भी लगा हुआ है।

चूहों, चारण प्रति मान्यता
मंदिर में चूहों और चारण प्रति एक मान्यता प्रचलित है। यहां पर चूहों को काबा कहा जाता है। मन्यता है कि जब किसी चूहे (काबा) की मौत हो जाती है, तो वह चारण का रुप धारण करता है। वहीं दूसरी तरफ जब किसी चारण की मृत्यु होती है, तो वह काबा का रुप धारण करता है।

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महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था मंदिर का निर्माण
मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने राजपूती और मुगली शैली में करवाया था। मन्दिर के सामने महाराजा गंगा सिंह ने चांदी के दरवाजे भी बनाए थे। मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर पर नक्काशी देखने दूर दूर से लोग आते है | भक्तों के अनुसार मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।

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मंदिर तक पहुंचने का रास्ता
मां करणी मंदिर तक पहुंचने के लिए बीकानेर से बस, जीप व टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं। बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर स्थित देशनोक रेलवे स्टेशन के पास ही है करनी माता मंदिर। वर्ष में दो बार चैत्र व आश्विन माह में नवरात्रों पर इस मंदिर में विशाल मेला भी लगता है। भारी संख्या में लोग यहां पहुंचकर मनौतियां मनाते हैं। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के पास कई धर्मशालाएं और होटल भी हैं।

वंदना

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