एक रहस्यमयी किला जो श्राप के कारण बन गया खंडहर…

इस किले पर दशकों से हर साल गिरती है आसमानी बिजली
भारत में सदियों पुराने किले आज भी भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर के रूप में मौजूद हैं। इन में से कुछ किले उसी स्थिति में हैं जिस स्थिति में इन किलों में राजा-महाराजा निवास करते थे और कई किले अपना असल रूप खोते हुए आज खंडहरों में तबदील हो चुके हैं। लेकिन कुछ किले इतने रहस्यमयी हैं कि इनके साथ कई कहानियां जुड़ी हैं। आज हम आप को एक ऐसे ही रहस्यमयी किले के बारे में बताएंगे जिसे श्रापित किले की संज्ञा भी दी जाती है। झारखंड के रांची से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है राजा जगतपाल सिंह का 200 साल पुराना रहस्यमयी व श्रापित किला। इस किले में स्थानीय लोग दिन के समय में भी जाने से कतराते हैं। यह किला खंडहर का रूप धारण कर चुका है। इस किले के बारे में जो कहानी प्रसिद्ध है आज के वैज्ञानिक युग में उस पर विश्वास करना मुश्किल है।

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किले का खंडहर में तबदील होना
रांची के गांव पिठौरिया में मौजूद यह 100 कमरों वाला किला अब खंडहर बन चुका है। इस किले के खंडहर बनने का कारण इस पर बार-बार आसमानी बिजली को गिरना है। हैरानी की बात है कि इस किले पर हर साल बिजली गिरती है जिसके कारण यह किला अब अपनी पहचान खो चुका है। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि लेकिन गांव वासियों का कहना है कि इस किले पर हर साल बिजली एक क्रांतिकारी द्वारा राजा जगतपाल सिंह को दिए गए श्राप के कारण गिरती है। आसमानी बिजली का गिरना वैसे तो सामान्य बात है जो प्राकृतिक कारणों के चलते गिरती है लेकिन दशकों से आसमानी बिजली का एक ही स्थान पर गिरना हैरान जरूर करता है।

यह किला मुगल वास्तु कला का था बेजोड़ नमूना
इस किले का निर्माण मुगलकालीन वास्तु कला को ध्यान में रखते हुए किया गया था। यह किला तकरीबन 3 एकड़ में फैला हुआ था तथा इसमें 100 के करीब कमरे थे। इसमें एक मंदिर व रानियों के लिए एक तालाब का निर्माण भी किया गया था लेकिन अब मंदिर खंडहर बन चुका है परंतु तालाब अभी भी मौजूद है।

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इतिहास में राजा जगतपाल सिंह का स्थान
पिठौरिया शुरू से ही मुंडा और नागवंशी राजाओं का मुख्य केन्द्र रहा है। 1831-32 के कौल विद्रोह के कारण इस इलाके का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। पिठौरिया का राजा जगतपाल सिंह के नेतृत्व में पूर्ण रूप से विकास हुआ जिसके चलते पिठौरिया क्षेत्र संस्कृति और व्यापार का मुख्य केन्द्र बना। राजा जगत सिंह क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों के चलते जनता में काफी लोकप्रिय थे लेकिन उनके द्वारा की गई कुछ गलतियों ने उनका नाम गद्दारों की सूची में अंकित कर दिया।

राजा जगतपाल सिंह ने अंग्रेजों की थी मदद
राजा जगतपाल सिंह ने पहली गलती 1831 के विद्रोह में अंग्रेजों का साथ देकर की। 1831 में सिंदराय और बिंदराय के नेतृत्व में आदिवासियों द्वारा एक आंदोलन किया गया था लेकिन पिठौरिया के इलाके से अनजान होने के कारण अंग्रेज इस विद्रोह को दबा नहीं पा रहे थे। अंग्रेज़ अधिकारी विलकिंगसन ने मदद के लिए राजा जगतपाल सिंह को संदेश भेजा जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। राजा द्वारा की गई इस मदद के बाद उस समय के गवर्नर जनरल विलियम वैंटिक द्वारा उन्हें 313 रुपये मासिक आजीवन पेंशन दी गई ।

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दूसरी बड़ी गलती राजा जगतपाल सिंह ने 1857 के विद्रोह के दौरान की। राजा जगतपाल सिंह ने पिठौरिया में क्रांतिकारियों को रोकने के लिए घेराबंदी करते हुए इन क्रांतिकारियों की प्रत्येक गतिविधि की ख़बर अंग्रेजों तक पहुंचाई। राजा जगतपाल सिंह से नाराज क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने राजा को सबक सिखाने के लिए उन पर हमला कर दिया। इसके बाद क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव गिरफ्तार हो गए और राजा जगतपाल सिंह की गवाही के चलते उन्हें 16 अप्रैल 1858 को रांची में पेड़ के साथ फांसी पर लटका दिया गया। जानकारी के मुताबिक राजा जगतपाल सिंह की गवाही पर कई क्रांतिकारियों को अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटकाया गया था।

क्रांतिकारी विश्वनाथ शाहदेव ने दिया था श्राप
लोगों का मानना है कि क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने देश से गद्दारी करने व अंग्रेज़ों की मदद करने पर राजा जगतपाल सिंह को श्राप दिया था कि आने वाले समय में राजा जगतपाल सिंह का कोई नाम लेने वाला नहीं रहेगा और राजा के किले पर हर साल उस समय तक आसमानी बिजली गिरती रहेगी जब तक यह किला तबाह नहीं हो जाता। तब से लेकर आज तक रांची के पिठौरिया स्थित राजा जगतपाल सिंह के किले पर हर साल बिजली गिरती है और यह किला खंडहर बन गया है।

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वैज्ञानिकों का तर्क
इस मामले में वैज्ञानिकों का मानना है कि इस इलाके में पेड़ों व पहाड़ों में लोह तत्वों की मात्रा अधिक है। यह दोनों आसमानी बिजली को आकर्षित करते हैं जिसके चलते बारिश के दौरान इस किले पर बिजली गिरती है। लेकिन इस तर्क पर लोगों का कहना है कि जब यह किला आबाद था तब क्यों नहीं इस किले पर बिजली गिरी जबकि उस समय में आज से अधिक पेड़-पौधे और लोह तत्व मौजूद थे।

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