एक गांव जिस पर भूतों का हुआ कब्जा, तो सरकार ने टूरिस्ट स्पाट बना दिया

-राजा के क्रूर मंत्री ने गांव की खूबसूरत लड़की की रखी थी मांग, जिस पर एक ही रात में खाली हो गया गांव
-पैरा नारमल एक्टिविटी की जांच करने वाली टीमें भी जमीन छोड़ भागी
– गांव में आते ही तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाती है
– मोबाइल नेटवर्क और रेडियो काम करना बंद कर देते है
-शाम होते ही टूरिस्टों को बाहर निकाल देता है चैकीदार
-बसे हुए शहर के बाशिंदों ने दिया था श्राप, अगर हम नहीं रहेंगे तो कोई भी नहीं बस पाएगा
इस गाँव का निर्माण 13वीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। रेगिस्तान में सिंचाई की जबरदस्त तकनीक रखने वाल यहां के बाशिंदे ना केवल खेती में महारत रखते थे बल्कि व्यापार में भी खासे तेज थे, आसपास के कई गांवों के लोग इनके कर्जदार हो गए पर एक रात ऐसा कुछ हुआ कि सारा गांव खाली हो गया और आज भी यह वीरान है।
शुरू में तो कहा गया कि 18वीं शताब्दी में घटती पानी की आपूर्ति के कारण पूरा गाँव नष्ट हो गया था, इस पर अंग्रेजों ने पक्के पत्थर से बने मकानों में लोगों को बसाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। जिन लोगों को रखा या या रहने के लिए व्यवस्थित तरीके से बनी गलियों में बने मकान दिए गए उन्होंने कुछ दिनों में ही इसे खाली करना बेहतर समझा।

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देश आजाद हुआ तो नई सोच के साथ लोकतंत्र में वहम एक किनारे करते हुए फिर कोशिश हुई पर रिजल्ट वही रहा, लोग जलते चुल्हे छोड़ कर भाग गए। फ्री में दिए गए मकानों में भी किसी ने रहना गंवारा नही समझा।
मान लिया गया कि इस गांव पर पर भूतों का हुआ कब्जा है और उनकी मर्जी के बिना यहां ना तो कोई आ सकता है और ना ही कोई नहीं रह सकता है, इलाके में टूरिस्टों की आमद बढ़ी तो सरकार ने 2010 में इसे ही टूरिस्ट स्पाट बना दिया। संभव है कि इसमें भी भूतों की इच्छा रही होगी जिन्होंने दिन में पर्यटकों को को आने की अनुमति दे दी। यह भी हो सकता है कि जिनसे उनका गुस्सा था अब उनकी पीढ़ियां भी खत्म हो गई होंगी। ऐसे में गांव को दिया गया श्राप भी कुछ हल्का हो गया। अब सरकार ने गांव के चारों ओर तारबंदी कर दी है और एक गेट बना दिया है जिस पर बाकायदा बोर्ड लगा कर भूतों के गांव होने का दर्जा देकर, इस पर सरकारी चैकीदार बिठठा दिया है, लेकिन यह चैकीदार भी दिन में ही रहता है, शाम होते ही गांव को ताला लगा कर चला जाता है।

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जी हां हम बात कर रहे हैं कुलधरा या कुलधर गांव की, यह भारतीय राज्य राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है यह गांव, जिसे एक शापित और रहस्यमयी गाँव के रूप में जाना जाता है इसे भूतों का गाँव भी कहा जाता है।
इस गाँव का विनाश जैसलमेर के राज्य मंत्री सालम सिंह के कारण हुआ था। सालम सिंह गाँव पर काफी शख्ती से पेश आता था इस कारण सभी ग्रामवासी लोग परेशान होकर रातोंरात गाँव छोड़कर चले गए साथ ही श्राप भी देकर चले गए इस कारण यह शापित गाँव भी कहलाता है।
यह गाँव अभी भी भूतिया गाँव कहलाता है लेकिन अभी राजस्थान सरकार ने इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दे दिया है,इस कारण अब यहां रोजाना हजारों की संख्या में देश एवं विदेश से पर्यटक आते रहते है।

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जैसलमेर शहर से 18 किलोमीटर दूर इस गाँव की लंबाई 861 मीटर और चैड़ाई 261 मीटर है, ठीक आयताकार क्षेत्र में बना यह गाँव माता-रानी के मन्दिर को केन्द्र में रखकर उसके चारों और फैला हुआ था। इसमें तीन उत्तर-दक्षिण मार्ग थे जो विभिन्न स्थानों पर पूर्व-पश्चिम की पतली गलियों द्वारा मिलते थे।
इस स्थान की अन्य दीवारें उत्तर एवं दक्षिण से देखी जा सकती हैं। गांव के पूर्वी भाग में छोटी ककणी नदी के रूप में एक सूखी नदी है। पश्चिमी भाग मानव निर्मित कृतियों की दीवारों से सुरक्षित है।
आज से 500 साल पहले 600 घरो और 85 गावों का पालीवाल ब्राहम्णों का साम्राज्य ऐसा राज्य था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, रेगिस्तान के बंजर धोरो में पानी नहीं मिलता वहाँ पालीवाल ब्राहम्णों ने ऐसा चमत्कार किया जो इंसानी दिमाग से बहुत परे था, उन्होंने जमीन पर उपलब्ध पानी का प्रयोग नहीं किया, ना बारिश के पानी को संग्रहित किया बल्कि रेगिस्तान की मिटटी में मौजूद पानी के कण को खोजा और अपना गांव जिप्सम की सतह के ऊपर बनाया। उन्होंने उस समय जिप्सम की जमीन खोजी ताकि बारिश का पानी जमीन सोखे ना इतना ही नहीं दूर से आने वाली आवाज के लिए गांव ऐसा बसाया की दूर से अगर दुश्मन आये तो उसकी आवाज उससे 4 गुणा तेजी से पहले गांव के भीतर आ जाती थी। हर घर के बीच में आवाज का ऐसा मेल था जेसे आज के समय में टेलीफोन होते हे,

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जैसलमेर के दीवान और राजा को ये बात हजम नहीं हुई की ब्राह्मण इतने आधुनिक तरीके से खेती करके अपना जीवन यापन कर सकते हे तो उन्होंने खेती पर कर लगा दिया पर पालीवाल ब्रह्मिनो ने कर देने से मना कर दिया, उसके बाद दीवान सालम सिंह को गाव के मुखिया की बेटी पसंद आ गयी तो उसने कह दिया या तो बेटी दीवान को दे दो या सजा भुगतने के लिए तयार रहे, ब्रह्मिनो को अपने आत्मसम्मान से समझोता बिलकुल बर्दाश्त नहीं था इसलिए रातों रात 85 गावों की एक महापंचयात बैठी और निर्णय हुआ कि रातों रात कुलधरा खाली करके वो चले जायेंगे, एक ही रात में 85 गांवों के ब्राह्मण कहां गए! कैसे गए! और कब गए! इस चीज का पता आजतक नहीं लगा। पर जाते जाते पालीवाल ब्राह्मण शाप दे गए की ये कुलधरा हमेसा वीरान रहेगा इस जमीन पे कोई फिर से आके नहीं बस पायेगा।
आज भी जैसलमेर में जो तापमान रहता है गर्मी हो या सर्दी, कुलधरा गांव में आते ही तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाती है। वैज्ञानिकों की टीम जब पहुंची तो उनकी मशीनों में आवाज और तरंगो की रिकॉर्डिंग हुई जिससे ये पता चलता है की कुलधरा में आज भी कुछ शक्तियां मौजूद हैं जो इस गांव में किसी को रहने नहीं देती। मशीनांे में रिकॉर्ड तरंग ये बताती हे की वहाँ मौजूद शक्तिया कुछ संकेत देती हे, आज भी कुलधरा गांव की सीमा में आते है मोबाइल नेटवर्क और रेडियो काम करना बंद कर देते हैं पर जैसे ही गांव की सीमा से बाहर आते हैं मोबाइल और रेडियो शुरू हो जाते हैं।

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आज भी कुलधरा शाम होते ही खाली हो जाता हे और कोई इन्सान वहाँ जाने की हिम्मत नहीं करता। जैसलमेर जब भी जाना हो तो कुलधरा जरुर जाए. ब्राह्मण के क्रोध और आत्मसम्मान का प्रतीक है, कुलधरा।
कुलधरा गाँव मूल रूप से पाली से जैसलमेर विस्थापित ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया। पाली मूल के इन लोगों को पालीवाल कहा जाता है। लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित इतिहास की पुस्तक तवारिख-ए-जैसलमेर के अनुसार कधान नामक पालीवाल ब्राह्मण कुलधरा गाँव में बसने वाला प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने गाँव में उधानसर नामक एक तालाब खोदा।
गाँव के खंडहरों के बीच विभिन्न देवलीयों (स्मारक पत्थर) सहित तीन श्मशान घाट हैं। देवली शिलालेखों के अनुसार, गाँव की स्थापना 13वीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुई। ये शिलालेख भट्टिक संवत् (एक पंचांग पद्धति जो 623 ई॰ से आरम्भ होती है) में तारिख लिखी गई हैं और दो निवासियों के निधन के रूप में 1235 ई॰ और 1238 ई॰ अंकित हैं।

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गाँव में अब 400 खण्डहर घर देखे जा सकते है, जिसमें अब वर्तमान में कोई व्यक्ति नहीं रहता है किन्तु यहाँ कोई तो जरूर रहता है। इंडियन पैरानामल एसोसिएशन सोसायटी की 18 लोगों की टीम ने 2010 में 12 अन्य लोगों के साथ रात बिताने का प्रयास किया उन्होंने चुंबकीय तरंगों को रिकार्ड किया कई प्रकार के संकेत भी उन्हें मिले लेकिन रात लगभग एक बजे गांव के कुएं व बावड़ी में रिकार्डिंग के दौरान उनकी हिम्मत जवाब दे गई और सारा कू्र टार्च कैमरे आदि छोड़ भाग गया।
वहीं लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित इतिहास ग्रन्थ तवारीख-ए-जैसलमेर में लिखा गया है कि यहां पालीवाल ब्राह्मण जाति के लोग रहते थे। जबकि नजीम रिजवी के मुताबिक यहाँ 17वीं 18वीं शताब्दी में कुलधरा गाँव में तकरीबन 1588 लोग रहते थे। एक ब्रिटिश अधिकारी जेम्स टॉड के अनुसार यहां की जनसंख्या 1815 ईस्वी में कुल 800 ही थी जिसमें 200 परिवार थे।
वहां कई अन्य देवाली अभिलेख अथवा शिलालेख हैं। इनमें पालीवाली शब्द का उल्लेख नहीं करते। लेकिन इनमें यहाँ के निवासियों को ब्राह्मण बताया हैं। काफी अभिलेख इन निवासियों को कुलधर या कलधर जाति का बताते हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि पालीवाल ब्राह्मणों में कुलधर एक जाति समूह था, और इन्हीं के नाम पर गांव का नाम पड़ा।

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कुछ अभिलेख इन निवासियों के जाति और गोत्र का भी उल्लेख करते हैं। अन्य जातियां जिनका अभिलेख में उल्लेख हैं, वें हैं – हरजल, हरजलु, हरजलुनी, मुगदल, जिसुतिया, लोहार्थी, लहठी, लखर, सहारन, जग, कलसर और महाजलार। गोत्र जिनका उल्लेख हैं वें हैं, असमर, सुतधाना, गर्गवी, और गागो।
एक अभिलेख गोनाली के रूप में एक ब्राह्मण के कुल (परिवार की वंशावली) का उल्लेख करता हैं। पालीवाल ब्राह्मण के आलावा एक अभिलेख दो सूत्रधार (शिल्पकार) का उल्लेख करता हैं, जिनका नाम धन्मग और सुजो गोपालना हैं। ये अभिलेख दर्शाते हैं कि, ब्राह्मण निवासी ब्राह्मण समाज में ही शादी (सगोत्री विवाह) करते थे, जबकि जातियां दूसरे गोत्र में विवाह करती थी।
कुलधरा गाँव के लोग वैष्णव धर्म के थे। इस गाँव का मुख्य मन्दिर विष्णु भगवान और महिषासुर मर्दिनी का है। हालाँकि ज्यादातर मूर्तियां गणेश जी की भी है जो प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित है। गाँव के लोग विष्णु ,महिषासुर मर्दिनी और गणेश जी के अलावा बैल और स्थानीय घोड़े पर सवार देवता की भी पूजा करते थे।

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कुलधरा गाँव में लोग जिसमें पुरुष लोग मुगलिया अंदाज की पगड़ी अथवा साफा पहनते थे जबकि पजामा भी पहनते थे साथ ही कमर पर कमरबंध (इमसज) बांधते थे। इनके अलावा कंधे पर अंगरखा (जो एक बड़ा परिधान होता है ,जिसे रुमाल भी कह सकते है) भी रखते थे। पुरुष लोग इन सब के अलावा गले में कुछ हार भी पहनते थे। महिलाएं मुख्यतः लहँगे पहनती थी जबकि अंगरखा ये महिलाएं भी रखती थी, साथ ही गले में कुछ हार भी पहना करती थी।
कुलधरा गाँव के लोग ज्यादातर कृषि का व्यापार ,बैंकरों का कार्य और किसान हुआ करते थे ,साथ ही मिट्टी के बर्तन भी बनाया करते थे ,ये अलंकृत बर्तनों का इस्तेमाल करते थे ,जो (पिदम बसंल) के बनाए जाते थे। वे जलसंचय के लिए खड़ीन का इस्तेमाल करते थे जो एक कृत्रिम सिंचाई वाला हिस्सा होता था जिसके तीन ओर बाँध बना दिये जाते थे। जब खड़ीन का पानी सूख जाता तो पीछे बची मिट्टी ज्वार ,गेहूँ और चने की फसल के लिए अनुकूल होती। एक ढ़ाई किलोमीटर लंबी और दो किलोमीटर चैड़ी खड़ीन कुलधरा के दक्षिण दिशा में मौजूद थी।

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खेती करने में गाँव के लोग ककनी नदी या काकनी नदी और कुछ कुओं से पानी सींचते थे। ककनी नदी जो शाखाओं में विभाजित थीं ,एक जिसे मसुरड़ी नदी कहा जाता था ,और दूसरी जो कि एक नाली के रूप में थी। ककनी नदी जो कि एक मौसमी नदी है जब यह सूख जाती थी तब गाँव के लोग घरों से दूर बने कुओं से पानी लेकर आते थे। एक स्तम्भ शिलालेख से पता चलता है कि गाँव में तेजपाल नाम का एक ब्राह्मण हुआ करता था, जिसने एक बावड़ी का निर्माण करवाया था। यह ब्राह्मण कुलधरा गाँव का ही रहने वाला था।
जो गाँव इतना विकसित था तो फिर क्या वजह रही कि वो गाँव रातों रात वीरान हो गया। इसकी वजह था गाँव का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी गन्दी नजर गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे।
फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।

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