अद्भुत ! यहां भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर शिला रुप में है विद्यमान

-पत्थर बताता है कब होगा कलयुग का अंत
हम सभी ने देवों के देव महादेव की ओर से बालक गणेश के सिर को काटने फिर उस स्थान पर हाथी के बच्चे के सिर को लगाने की इस घटना को सुना है। परंतु क्या आपको यह पता है कि बालक गणेश के काटे गए सिर का क्या हुआ। आखिर वह सिर कहां गया। आईए, आज आपको यह बताते हैं कि बालक गणेश का कटा हुआ वह सिर भारत के किस स्थान पर पड़ा है। यह पावन स्थल कहां है। इस गुफा मंदिर में केवल भगवान श्री गणेश का कटा हुआ सिर ही नहीं पड़ा है। बल्कि वहां पर एक एेसा पत्थर भी पड़ा है। जो कलयुग के अंत की जानकारी देता है। इस गुफा मंदिर के अन्य रहस्यों के बारे भी आपको अवगत करवाते हैं।

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कहां पर विद्यमान है गुफा मंदिर
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र इसलिए भी है। क्योंकि इस पावन गुफा में देवों के देव महादेव भगवान शिव व माता पार्वती के सुपुत्र बालक गणेश का कटा हुआ सिर आज भी विद्यमान है। इस गुफा की सबसे खास बात यह है कि यह पावन गुफा एक विशालकाय पहाड़ी के भीतर 90 फीट भीतर बनी हुई है। यह गुफा उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के नगर अल्मोड़ा से शेराघाट जाते हुए मनोरम पहाड़ी वादियों के बीच बसे कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा के नाम से पुकारा जाता है। यह गुफा कई चमत्कारों को अपने आप में समेटे हुए है।

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यहां पर विद्यमान है बालक गणेश का कटा हुआ सिर
बुद्धि के देवता के तौर पर पूजे जाने वाले भगवान श्री गणेश जी को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देवता का दर्जा प्राप्त है। भगवान श्री गणेश जी के जन्म बारे कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने कैलाश पर्बत पर प्रवेश न होने पर क्रोध वश बालक गणेश के सिर को धड़ से अलग कर दिया। बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी के बच्चे का मस्तक लगा दिया। परंतु बालक गणेश के शरीर से अलग हुए सिर को भगवान शिव ने इस पावन गुफा में रख दिया।

गुफा मंदिर में 108 पंखुड़ियों वाला कमल
पाताल भुवनेश्वर के गुफा मंदिर में भगवान श्री गणेश के कटे हुए सिर (‍‍शिला) रूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। इस दिव्य कमल को भगवान शिव ने खुद अपने हाथों से स्थापित किया। इस ब्रह्मकमल से निकलने वाला पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर बूंद-बूंद रुप में टपकता है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है।

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गुफा में मौजूद हैं भगवान श्री केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ जी
पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां पर भगवान श्री केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ जी के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण देव, माता लक्ष्मी, श्री गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है। इस पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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पत्थर बताता है कब होगा कलयुग का अंत
इस गुफाओं में सभी चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर विद्यमान हैं। इन में से एक पत्थर जिसे कलियुग का पत्थर कहा जाता है। इस बारे कहा जाता है कि यह पत्थर धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर उपर की दीवार से टकरा जाएगा। उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

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पाताल भुवनेश्वर गुफा का पौराणिक महत्व
स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं देवों के देव महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं। अन्य समस्त देवी देवता उनकी स्तुति करने यहां पर आते हैं। कहा जाता है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफ़ा में प्रविष्ट हुए, तो उन्होंने इस गुफ़ा के भीतर महादेव शिव सहित 33 कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किये। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ईस्वी के आसपास इस गुफ़ा से साक्षात्कार हुआ। तब उन्होंने इस पावन गुफा में तांबे के एक शिवलिंग को स्थापित किया गुफा में शेषनाग की प्रतिमा, गुफा में स्थापित जल स्त्रोत, गुफा में स्थापित हंस की प्राकृतिक मूर्ति भक्तों के मन में भगवान प्रति एक गहरी आस्था को प्रवाहित करती है।

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प्रदीप शाही

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