श्री कृष्ण ने शनिदेव को कोयल रुप में यहां दिए थे दर्शन

-इस मंदिर में दर्शन करने पर शनिदेव करते है विशेष कृपा
किसी ने सच ही कहा है कि भगवान की लीला भगवान ही जाने। भगवान कब किस रुप में प्रकट हो कर दर्शन दें। यह तो केवल भगवान ही जानते हैं। द्वापर काल में माता यशोदा ने शनि देव को भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने से रोक दिया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने शनि देव को कोयल बन दर्शन दिए। यह पावन स्थान आज भक्तों के लिए एक पावन स्थान के रुप में पहचान रखता है। इस मंदिर में श्री शनि देव महाराज के दर्शन करने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आईए, आज आपको इस मंदिर के बारे जानकारी प्रदान करते हैं।

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कहां पर भगवान श्री कृष्ण ने कोयल बन दिए दर्शन
मथुरा से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर कोसी कला स्थान है। जहां पर भगवान सूर्य देव पुत्र श्री शनि देव का प्राचीन कोकिला वन धाम मंदिर स्थापित है। यह वह स्थान है जहां से नंदगांव, बरसाना, श्री बांके बिहारी मंदिर बेहद पास हैं। 20 एकड़ में स्थापित कोकिला वन धाम मंदिर में श्री शनि देव के मंदिर के अलावा श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी के मंदिर प्रमुख हैं। इस मंदिर के परिसर में दो प्राचीन सरोवर इस मंदिर के पुरातन होने की प्रमाणिकता को सिद्ध करता है। यहां पर एक गौशाला भी बनी हुई है। इस पावन स्थल पर ही भगवान श्री कृष्ण ने शनि देव महाराज को कोयल बन दर्शन दिए थे।

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आखिर क्यों माता यशोदा ने नहीं करने दिए थे शनि को कृष्ण दर्शन
पापियों का नाश करने के लिए जब भगवान श्री विष्णु हरि, भगवान श्री कृष्ण के रुप में इस धरती पर अवतरित हुए। तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पधारे। विष्णु भक्त शनिदेव भी देवताओं संग भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने नंदगांव पहुंचे। परंतु माता यशोदा ने उन्हें अपने लाडले नंद लाल के दर्शन करने से रोक दिया। क्योंकि माता यशोदा को इस बात का डर था कि कहीं श्री शनि देव कि वक्र दृष्टि उनके लाडले कान्हा पर न पड़ जाए। शनिदेव को माता यशोधा की बात अच्छी नहीं लगी। और वह निराश होकर नंदगांव के पास के ही एक जंगल में आकर तपस्या में लीन हो गए। शनिदेव का मानना था कि पूर्णपरमेश्वर भगवान श्री विष्णु ने ही तो उन्हें न्यायाधीश बनाकर पापियों को दंडित करने का कार्य सोंपा है। और वह खुद ही अपने ईष्ट के दर्शन ही नहीं कर पा रहे हैं।

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इस वन में श्री कृष्ण ने कोयल बन दिए शनिदेव को दर्शन
भगवान श्री कृष्ण, अपने प्रिय शनि देव की तपस्या से भावुक हो गए। श्री कृष्ण ने कोयल के रूप में शनि देव के समक्ष प्रकट हो कर कहा कि हे शनि देव, आप निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हो कर पापियों को सजा प्रदान करते हैं। ताकि सज्जन पुरुषों का कल्याण हो सके। हे शनि देव ! आप से एक भेद खोलना चाहता हूं कि यह बृज-क्षेत्र मुझे सबसे अधिक प्रिय है। मैं इस पावन भूमि को हमेशा आप जैसे न्र्याय के देवता की देखरेख में रखना चाहता हूं। मेरी इच्छा है कि आप इसी स्थान पर सदैव निवास करें। मैं यहां पर आपको कोयल के रूप में मिला हूं। इसी लिए आज से यह पावन स्थान कोकिलावन के नाम से पहचाना जाएगा। इस वन में हमेशा कोयल के मधुर स्वर गूंजते रहेंगे। इस प्रदेश में और कोकिलावन धाम में आने वाला हर प्राणी आप के साथ-साथ मेरी कृपा का भी पात्र बनेगा

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कोकिलावन धाम मंदिर का इतिहास
गरूड़ पुराण में व नारद पुराण में कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है। एेसे में शनि देव महाराज का भी कोकिलावन में विराजमान होना भगवान कृष्ण के काल से ही माना जाता है । यह मंदिर कुछ समय के लिए देखरेख न होने का कारम जीर्ण अवस्था में पहुंच गया। कहा जाता है कि करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पहले भरतपुर के महाराजा ने भगवान की प्रेरणा से इस कोकिलावन के जीर्ण अवस्था में पहुंच चुके कोकिलावन मंदिर का अपने राजकोष से जीर्णोधार करवाया। तब से इस मंदिर का विकास निरंतर जारी है।

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इस मंदिर में श्री शनि देव बरसाते हैं विशेष कृपा
कोकिलावन धाम मंदिर के बारे कहा जाता है कि इस मंदिर में शनि देव महाराज के दर्शन मात्र से ही शनि देव भक्तों पर अपनी विशेष कृपा प्रदान करते हैं। भक्तों की शनि महादशा, साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रकोप से बी मुक्ति मिलती है। प्रत्येक शनिवार को यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। शनि अमावस्‍या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है।

प्रदीप शाही

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