वंदना
– लौह पुरुष सरदार पटेल के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को भारत के गुजरात में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर दिया था ,जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें खरीदनें के लिए छात्रों के मजबूर करते थे।
वे सन् 1908 में विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब नाम कमाया । वो महात्मा गांधी को बहुत मानते थे | जब गाँधी जी ने पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा सभी को समझाई।
उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नही आएगा, आप मन में किसी भी प्रकार का डर न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में उन्होंने कहा कि आपको सब समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को अगर गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप यह न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है और फिर 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।
इसे भी देखें…यह है कोणार्क के बाद विश्व का दूसरा सदियों पुराना सूर्य देव मंदिर
सितंबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थाई राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया था। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत में विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व ही गले-से अंग को ऑपरेशन कर निकलवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया| उनका कहना था कि “मैंने विभाजन को अंतिम उपाय के रूप में तब स्वीकार किया जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना बढ़ गई थी। साथ ही यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप बिलकुल नहीं करेगा। इस समस्या को हम ही सुलझाएंगे।”
देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।
इसे भी देखें…खरा सोना है उबली चाय पत्ती… कहीं आप डस्टबिन में तो नहीं फेंक रहे
चीन मुद्दे पर नेहरू को दी थी सलाह
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया।
सरदार पटेल के स्मरणीय कार्य
सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि जब एक बार वे भारतीय युद्धपोत द्वारा बंबई से बाहर यात्रा पर गए तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा कि इस युद्धपोत पर तुम्हारे कितने सैनिक हैं?जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा कि क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त है? सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- अच्छा चलो जब तक हम यहां हैं गोआ पर अधिकार कर लो। कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की तब पटेल चौंके फिर कुछ सोचकर बोले-ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा। क्योंकि उन्हें पता था कि नेहरू इस पर आपत्ति ज़ाहिर करेंगे|
इसे भी देखें…मोम की तरह पिघलेगी फैट, देखते ही देखते मोटापा होगा कम, बस पानी में मिलाएं यह चीज़
कश्मीर पर नेहरू नीति से थे नाखुश
सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था फिर भी गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे थे। गंभीर बातों को भी वे विनोद से कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर उन्होंने कहा था, सब जगह तो मेरा वश चल सकता है पर जवाहरलाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा।
कश्मीर छोड़ देश की सभी छोटी-बड़ी रियासतों के विलय का जिम्मा पटेल ने उठाया था| कश्मीर मसले को उन्होंने कभी स्वतंत्र रूप से डील नहीं किया । कश्मीर को लेकर भारत के अंतिम वॉयसराय माउंटबेटन का मानना था कि अब यह विवाद दोनों देशों की आपसी बातचीत से नहीं सुलझने वाला है इसलिए भारत संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा करे। नेहरू इसके लिए तैयार हो गए थे पर पटेल को इस पर आपत्ति थी लेकिन उनकी एक भी नहीं सुनी गई। संघर्षविराम को मान लेने की वजह से जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया था। अगर इस रियासत के विलय का जिम्मा पटेल पर होता तो शायद यह सम्पूर्ण रूप से भारत में होता और इसकी ऐसी हालत नहीं होती । अब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने का प्रयास कर दिया है।
इसे भी देखें…बिना मंजूरी के भारत में इन जगहों पर है ‘नो एंट्री’
उनका यह भी कहना था कि भारत में केवल एक व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है और वो है जवाहरलाल नेहरू | बाकी सब सांप्रदायिक मुसलमान हैं। 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिसकी क्षति पूर्ति होना असंभव है। गांधी जी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया तो नेहरू ने उस कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तृत आयाम दिए। इसके अलावा जो शक्ति और संपूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम था। जिनकी सेवाओं, दृढ़ता व कार्यक्षमता के कारण ही उन्हें लौहपुरुष कहा जाता है।
ज्ञातव्य है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलंत प्रश्न था कि छोटी-बड़ी 562 रियासतों को भारतीय संघ में कैसे समाहित किया जाए। इस जटिल कार्य को जिस महापुरुष ने निहायत सादगी तथा शालीनता से सुलझाया था , वो कोई और नहीं आधुनिक राष्ट्र निर्माता लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ही थे|
देश की एकता और अखंडता को एक सूत्र में पिरोने में उनका अखंड योगदान था | उनके इस योगदान के लिए 2014 से हर साल उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इसे भी देखें…जोड़ों के दर्द से लेकर शरीर का हर दर्द होगा दूर… आजमाएं यह घरेलु नुस्खा
लक्षद्वीप समूह पर भारतीय ध्वज
लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज सरदार पटेल के कहने पर भेजा गया। इसके कुछ घंटे बाद पाकिस्तानी नौसेना के जहाज भी लक्षद्वीप के पास मंडराते हुए दिखाई दिए लेकिन उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ा क्योंकि वहां हिंदुस्तान का परचम लहरा रहा था |
आज भी हम भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर करें, तो देश का लगभग आधा भाग सांप्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फंसा दिखाई देता है, ऐसे में सरदार पटेल की स्मृति हो उठना स्वभाविक है।
इसे भी देखें…पुरानी से पुरानी कब्ज से मिलेगी राहत…बस एक बार खा लें यह चीज़