मां लक्ष्मी संग कहां पर विराजमान हैं वराह और नृसिंह अवतार

-नृसिंह की प्रतिमा पर लगातार सारा साल किया जाता है चंदन का लेप
भारत के कोने-कोने में प्राचीन मंदिर विद्यमान हैं। हर मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित प्रतिमाओं का रोमांचक इतिहास है। इतना ही नहीं इन मंदिरों की पूजा का विधान भी कुछ विशेष है। आम तौर पर मंदिरों में भगवान श्री विष्णु हरि की प्रतिमाएं माता लक्ष्मी संग विद्यमान है। वहीं देश में इकलौता सिंहाचल मंदिर एेसा भी हैं, जहां माता लक्ष्मी, भगवान विष्णु जी के वराह अवतार और नृसिंह अवतार की प्रतिमाएं प्राण-प्रतिष्ठित हैं। आईए आज आपको इस मंदिर के बारे जानकारी देते हैं, कि यह मंदिर कहां पर स्थित है। इस मंदिर की क्या-क्या विशेषताएं हैं।

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कहां पर स्थित है सिंहाचल मंदिर
माता लक्ष्मी संग भगवान विष्णु जी के वराह अवतार और नृसिंह अवतार का इकलौता सिंगाचल मंदिर आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम से महज 16 किमी दूर सिंहाचल पर्वत पर स्थित है। सिंहाचलम मंदिर को भगवान विष्णु जी के अवतार भगवान नृसिंह का निवास स्थान माना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है की यहां पर माता लक्ष्मी संग वराह और नृसिंह अवतार सयुंक्त रूप से विराजमान हैं। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां भगवान नृसिंह की मूर्ति पर 24 घंटों ही चंदन का लेप रहता है। साल में 364 दिन यह मूर्ति चंदन के लेप में लिपटी रहती है। केवल अक्षय तृतीया वाले दिन ही इस चंदन के लेप को प्रतिमा से हटाया जाता है। केवल एक दिन ही भक्त नृसिंह अवतार की असल प्रतिमा के दर्शन कर पाते हैं।

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कौन थे नृसिंह अवतार
देश में होली के पर्व का भक्त प्रहलाद से जुड़ा है। कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से रोकने के लिए भरपूर यातनाएं दी। बुआ होलिका ने उसे गोद में बैठाकर जलाने की कोशिश की, लेकिन होलिका खुद जल गई। जबकि भक्त प्रहलाद की भगवान विष्णु ने खुद रक्षा की। तब अपने भक्त प्रहलाद को हिरण्यकशिपु से बचाने के लिए भगवान विष्णु जी ने नृसिंह अवतार लिया था। देश विदेश में भगवान नृसिंह के कई मंदिर हैं, लेकिन विशाखापट्टनम में सिंहाचलम मंदिर को भगवान नृसिंह का घर कहा जाता है।

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वराह और नृसिंह अवतार का सयुंक्त रूप
सिंहाचल मंदिर को हिरण्यकश्यप के भगवान नृसिंह अवतार के हाथों मारे जाने के बाद प्रहलाद ने बनवाया था, लेकिन वह मंदिर सदियों बाद धरती में समा गया। प्रहलाद के बाद इस मंदिर को पुरुरवा नाम के राजा ने फिर से स्थापित किया था। माना जाता है कि राजा पुरुरवा एक बार अपनी पत्नी उर्वशी के साथ वायु मार्ग से भ्रमण कर रहे थे। इसी दौरान उनका विमान किसी अंजानी शक्ति से प्रभावित होकर दक्षिण के सिंहाचल क्षेत्र में जा पहुंचा। वहां पर उन्होंने भगवान नृसिंह की प्रतिमा धरती के गर्भ में देखा। उन्होंने इस प्रतिमा को निकाला और उस पर जमी धूल साफ की। इसी दौरान एक आकाशवाणी हुई कि इस प्रतिमा को साफ करने के बजाय इसे चंदन के लेप से ढक कर रखा जाए। इस प्रतिमा के शरीर से साल में केवल एक बार, वैशाख माह के तीसरे दिन चंदन का यह लेप हटाया जाए। तभी वास्तविक प्रतिमा के दर्शन प्राप्त हो सकेंगे। तब से इस प्रतिमा पर चंदन का लेप किया जाता जा रहा है। और साल में केवल एक बार ही इस प्रतिमा से लेप हटाया जाता है। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है।

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मंदिर के आसपास का अनूठा नजारा
विशाखापट्‍टनम में स्थित सिंहाचल मंदिर विश्व के प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह समुद्री तट से 800 फीट की उंचाई पर है। मंदिर तक पहुंचने वाले रास्ते में अनानास, आम के फलों के पेड़ों से सजा हुआ है। रास्ते में भक्तों के आराम के लिए हजारों की संख्या में बड़े पत्थर इन पेड़ों की छाया में स्थापित हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ीयां बनी हुई है। शनिवार और रविवार के दिन इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। अप्रैल से जून तक का समय इस मंदिर में दर्शन के लिए सबसे बेहतरीन है। होता है। सुबह चार बजे से मंदिर में मंगल आरती के साथ दर्शन शुरू होते हैं। सुबह 11.30 से 12 और दोपहर 2.30 से 3 बजे तक दो बार आधे-आधे घंटे के लिए मंदिर में भगवान के दर्शन नहीं किए जाते हैं। रात को नौ बजे भगवान के शयन का समय हो जाता है।

प्रदीप शाही

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