जब अजान शुरू हुई तब लाउड स्पीकर नहीं था और वेदों में हनुमान चालिसा का जिक्र नहीं है

-मोदी राज में दंगे! संयोग या प्रयोग, पर किसका…
-मक्का-मदीना वाले सउदी अरब के शहरों में लाउड स्पीकर से अजान पर प्रतिबंध है तो भारत में क्यों जरूरी है
-दुनिया की पहली मस्जिद किसी अरब देश में नहीं अलबत्ता भारत के केरल राज्य में बनी, बनवाई हिंदू राजा ने, फिर अब झगड़ा किस बात का
-फ्रांस ने केवल बुर्का बैन नहीं किया, सार्वजनिक स्थलों पर सभी प्रकार के धार्मिक चिन्हों पर प्रतिबंध लगाया
-सुबह उठने से पहले ही दंगे की फीलिंग आने लगती है,

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जब गुजरात के गोधरा में एक रेलगाड़ी के डिब्बे को प्लेटर्फाम पर ट्रेन से अलग कर यार्ड में ले जाकर आग के हवाले किया गया तो इसे गोधरा कांड का नाम दिया गया और इसके बाद भड़के दंगों को भारतीय जनता पार्टी का प्रयोग और गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बताया गया। 26 जनवरी 2002 को आए भूकंप, जिसमें कई हजार लोग मारे गए थे, के बाद की परिस्थितियों में दंगों के रूप में लाई गई मैन मेड त्रास्दी को प्राकृतिक आपदा से उपर घोषित कर दिया गया, तब नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन अब 20 साल बाद फिर मोदी राज में दंगे! हो रहे हैं इसे आप संयोग कहें या प्रयोग, या फिर दोनों पर ये किसके लिए संयोग है और किसका प्रयोग यह स्पष्ट नहीं है।

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पत्थरबाज कश्मीर से निकल कर सिर्फ भारत देश में ही नहीं फैले, ये पूरी दुनिया में दस्तक दे रहे हैं। इनका मनोविझान समझें तो पत्थरबाजी से चोट लगती, लहू बहता है पर इंसान मरता नहीं है, हल्की धाराओं में मामला दर्ज होता है, जमानत जल्दी मिलती है, और सजा के नाम पर, सबूतों गवाहों के अभाव में बरी या फिर जुर्माना मात्र रहता है। लेकिन इससे होने वाले उपद्रव, सिर फूटने पर बहने वाले लहू व घरों-दुकानों के टूटने वाले शीशों से दहशत पूरी फैलती है। पत्थरबाज अपने समाज में हीरो बनता है। पहले कश्मीर में पांच सौ का नोअ मिलता था, संभव है मंहगाई के दौर में इनकी गिनती जरूर बढ़ी होगी।

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दुनिया की पहली मस्जिद किसी अरब देश में नहीं बनी, अलबत्ता इसे भारत के केरल राज्य में बनाया गया और उसे भी एक हिंदू राजा ने पैगंबर मौहम्मद साहब के समय में 629 ईस्वी में करवाया था। चेरामन पेरूमल के नाम पर त्रिशुर जिले के कोडुंगलूर क्षेत्र में बनी इस मस्जिद का नाम भी उसी राजा के नाम पर है, चेरामन जुमा। इसमें ना तो गुंबद था ओर ना ही लाउड स्पीकर लगने वाली मीनारें, हालांकि इससे पहले यहां पर बौद्ध धार्मिक स्थल था।

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दिलचस्प है के जब मस्जिदों में अजान शुरू हुई थी तब लाउड स्पीकर नहीं था और वेदों में हनुमान चालिसा का जिक्र नहीं है। श्री हनुमान चालिसा की रचना स्वामी तुलसीदास ने भक्ति लहर के दिनों में मध्यकाल में की थी। वैदिक धर्म की शुरूआत हजारों सालों बाद, यानि की दोनों धर्मो के मूल में दोनों ही चीजें नहीं है। ऐसे में झगड़ा किस बात है।

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15वीं और 16वीं शताब्दी के इन्हीं दिनों में एक दोहे की रचना संत कबीर दास जी ने थी।
कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥
अर्थात अजान पर कटाक्ष तब भी होते थे जब लाउड स्पीकर नहीं था। कबीर जी ने अपने दोहो साखियों के माध्यम से समाज मे चल रहें मिथ्या आडंबरों से लोक चेतना जगाने की कोशिश की है । उनका मानना था कि ईश्वर का एक ही स्वरूप है चाहे हम जिस नाम से पुकारें, उन्हें याद करने के लिए बाहरी दिखावापन कि जरूरत नहीं हैं वो तो हर एक कण में विधमान हैं ।

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इतना ही नहीं कबीर जी ने हर वर्ग-धर्म पर सही कटाक्ष किया है वो भी साक्ष्य के साथ, बिना किसी डर से, बिना किसी भेद-भाव से।
हम कबीर तो नहीं है और सोशल मीडिया के इस राजनीतिक युग में, अब चलते है कबीर जी के इस दोहे पर जिसमें संत कबीर जी ने मूर्ति पूजा के बारे में कहा है कि
पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़ । घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार।।

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दूसरी ओर मक्का-मदीना वाले सउदी अरब के शहरों में लाउड स्पीकर से अजान पर प्रतिबंध है तो भारत में लाउड स्पीकर से ही अजान क्यों जरूरी है। लगभग हर घर में घड़ी, मोबाइल है तो जरूरी नहीं की 20 सदी में हुई लाउड स्पीकर की खोज को ही क्यों महत्व दिया जाए। 21 वीं सदी के वाट्स ऐप को क्यों नकारा जाए। दुनिया में पहली बार अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिंगापुर की सुल्तान मस्जिद में किया गया था।

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1936 में अखबारों में खबरें छपी थी कि लाउडस्पीकर से अजान की आवाज 1 मील तक जा सकेगी। सोचो पड़ोस में रहने वालों का क्या हुआ होगा। आजकल के लाउड स्पीकर पांच मील की बात करते हैं। हालांकि तब इस नई तकनीक के इस्तेमाल का विरोध मस्जिद में नमाज पढ़ने वाले कई लोगों ने किया था। जबकि कुछ का मानना था कि शहर में बढ़ते शोर के बीच अजान की आवाज ज्यादा लोगों तक पहुंच सकेगी।

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लाउडस्पीकर पर अजान दिए जाने के नियम विभिन्न देशों में अलग हैं। जैसे तुर्की और मोरक्को जैसे देशों में शायद ही कोई मस्जिद हो जहां लाउडस्पीकर से अजान दी जाती हो। जबकि नीदरलैंड में महज सात से आठ प्रतिशत मस्जिदों में लाउडस्पीकर के जरिए अजान दी जाती है। भारत के स्र्वोच्च न्यायालय ने रात 10 बजे से सुबह छह बजे तक हर प्रकार के शोर पर प्रतिबंध लगा रखा है, बाकि समय में भी आवाज की सीमा तय की है, फिर अपवाद क्यों!

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नाइजीरिया के लागोस शहर, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, बेल्जियम, फ्रांस, यूके और ऑस्ट्रिया सहित कइ्र देशों में भी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सीमित रखा गया है। 2016 में ये बैन इजराइल में भी लगा दिया गया। इजराइल के धर्म गुरुओं ने भी इस फैसले को माना। फ्रांस ने केवल बुर्का बैन नहीं किया, सार्वजनिक स्थलों पर सभी प्रकार के धार्मिक चिन्हों पर प्रतिबंध लगाया है। जन सामान्य का मानना है कि सुबह उठने से पहले ही दंगे की फीलिंग आने लगती है। हर तरफ से अलग अलग आवाजें, जो जिस धर्म का उसे तो अमुक आवाज ध्वनि लगती है, बाकि को वो शोर की कैटागिरी में डाल देता है।

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