औरंगज़ेब ने किया था इस मंदिर पर हमला….मधुमक्ख्यिों ने की थी रक्षा

भारत में मां दुर्गा के कई प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर मौजूद हैं। प्रत्येक मंदिर से कोई ना कोई कथा जुड़ी है । इन मंदिरों से जुड़े रहस्यों को आज तक कोई नहीं समझ पाया। देश-विदेश से श्रद्धालु मां दुर्गा के इन पावन मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। दुर्गा माता को शक्ति के रूप में पूजा जाता है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जिसे तोड़ने का साहस मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने किया था लेकिन उसे मां दुर्गा के क्रोध का शिकार होना पड़ा। कहा जाता है कि इस मंदिर पर हमला करने आई मुगल सेना पर हज़ारों की संख्या में मधुमक्ख्यिों ने हमला कर दिया था जिसके चलते मुगल सेना को भागना पड़ा। दोस्तो यह प्राचीन मंदिर राजस्थान के सीकर जिले  में ‘जीण माता मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध है।

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‘जीण माता मंदिर’

‘जीण माता मंदिर’ राजस्थान के सीकर ज़िले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। माना जाता है कि यह मंदिर एक हज़ार साल पुराना है। यह स्थान घने जंगल व अरावली पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर के निर्माण काल के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिलती लेकिन फिर भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने निर्वासन काल के दौरान किया था।

जीण माता के अवतरण की कथा

मान्यता है कि जीण माता का जन्म चैहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ था। इनका एक भाई था जिसका नाम हर्ष था। कहते हैं एक बार जीण माता का अपनी भाभी के साथ विवाद हो गया और अपने भाई से नाराज़ होकर जीण माता अरावली पर्वत पर जाकर तप करने लगी। मान्यता है कि इसके बाद जीण ही ‘माता’ के रूप में अवतरित हुईं।

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औरंगज़ेब ने की थी मंदिर को तोड़ने की कोशिश

कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने जीण माता मंदिर व भैरो मंदिर को तोड़ने के लिए अपनी सेना को भेजा। इस पर स्थानीय लोगों ने माता से प्रार्थना की तो माता ने चमत्कार दिखाया और औरंगज़ेब की सेना पर मधु-मक्खियों ने हमला कर दिया। इस हमले से मुगल सेना वहां से जान बचाकर भाग निकली।

औरंगज़ेब भिजवाता था ज्योत के लिए तेल

मधु-मक्खियों ने हमले के बाद ने औरंगज़ेब ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए इस स्थान पर अखंड ज्योत जलाने का प्रण लिया और हर महीने इस ज्योत के लिए सवा मन तेल देने का वचन दिया। औरंगज़ेब पहले दिल्ली और बाद में जयपुर से ज्योत के लिए तेल भिजवाता रहा। इसके बाद भी जयपुर के महाराजा ने इस परंपरा को जारी रखते हुए तेल भेजना जारी रखा लेकिन तेल की मात्रा कम कर इसे साल में केवल दो बार नवरात्रों के समय कर दिया। इसके बाद महाराजा मान सिंह के गृहमंत्री हरी सिंह ने तेल की बजाए 20 रुपए तीन आने नकद देने शुरू कर दिए।

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बहन को मनाने आया था भाई हर्ष

कहा जाता है कि अपनी बहन जीण को मनाने के लिए हर्ष अरावली पर्वत के काजल शिखर पर पहुंचा लेकिन जीण माता ने वापिस जाने से मना कर दिया और इसके बाद हर्ष भी उसी स्थान पर भैरो की तपस्या करने लगा और बाद में हर्ष ने भैरो का पद प्राप्त किया।

‘जीण माता’ मंदिर की मर्यादा

‘जीण माता’ मंदिर की पूजा विधि व मर्यादा दूसरे मंदिरों से भिन्न है। इसमें पुरी सम्प्रदाय के साधूओं द्वारा ही पूजा-पाठ किया जाता है और पुजारी पराशर ब्राह्मण हैं। इन पुजारियों के 100 के करीब परिवार हैं जो बारी-बारी से माता की पूजा करते हैं। जो पुजारी पूजा करता है उसे मंदिर में ही रहते हुए ब्रह्मचार्य का पालन करना पड़ता है। माता को भेंट की गई वस्तुएं भी पुजारियों की बहनों व बेटियों को दी जाती हैं जबकि पुजारियों की पत्नियों के लिए इन वस्तुओं का इस्तेमाल करने की मनाही है। हर साल मंदिर में आयोजित होने वाले विशेष उत्सव के दौरान पुजारियों की बारी बदलती है। यह उत्सव शरद पूर्णिमा को आयोजित होता है।

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मंदिर तक कैसे पहुंचें

जयपुर से जीण माता मंदिर की दूरी लगभग 115 किलोमीटर है। सीकर शहर से मंदिर की दूरी 29 किलोमीटर है। प्रसिद्ध मंदिर खाटूश्याम जीण माता मंदिर से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

धर्मेन्द्र संधू

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