-सुलतानपुर लोधी में संग्रहित हैं गुरु साहिब के पावन बाट
-डेरा बाबा नानक में सुशोभित है बहन नानकी का दिया अनमोल तोहफा
-विदेश में भी संग्रहित हैं गुरु साहिब की पावन निशानियां
प्रदीप शाही
श्री गुरु नानक देव जी के अवतरण से ही यह स्पष्ट हो गया था कि यह एक दिव्य ज्योति पुंज है। जो इस धरा पर अवतरित हुआ है। बाबा नानक के साधु स्वभाव और उनकी दानी प्रवृति ने जनमानस के उद्धार, रुढिवादी सोच को समाप्त करने में पहल की। नानक के बचपन से लेकर ज्योति जोत समाने तक उनके विचार, उनकी दूरदर्शिता ने जनमानस को प्रभावित किया। यही कारण है कि गुरु साहिब के दिए उपदेश आज भी जनमानस के जीवन को रोशनी से भर रहे हैं। गुरु साहिब ने केवल भारत ही नहीं अपने विचारों से देश विदेश में रहने वालों को प्रभावित किया। उनके विचारों के समक्ष हर कोई नतमस्तक हुआ। गुरु साहिब के पावन स्पर्श किए परिधान व अन्य स्मृति चिह्न भारत ही नहीं विदेशों में भी सुशोभित हैं। जिन को देखने मात्र से ही सिर श्रद्धा से झुक कर नमन करता है। इतना ही नहीं मन में एक अनूठी श्रद्धा का भी वास हो जाता है।
इसे भी देखें…गुरु नानक देव जी एक संत, पैगंबर, धर्म सुधारक, समाज सुधारक
बाबा नानक ने इन बाट से किया था सच्चा सौदा
पंजाब के तलवंडी नामक स्थान में 15 अप्रैल, 1469 को एक किसान कालू राम बेदी व माता तृप्ता के घर जन्म लेने वाले बाबा नाकन बचपन से साधु स्वभाव व दानी प्रवृति के थे। उनके इसी स्वभाव के कारण पिता कालू राम इन से अक्सर नाराज रहते थे। पिता व बाल नानक के मध्य पनपी इस समस्या के समाधान के लिए बड़ी बहन नानकी जी ने अपने छोटे भाई नानक को अपने के पास सुलतानपुर लोधी बुला लिया था। बाबा नानक के अपनी बहन के घर में खाली रहने के स्थान मोदीखाने में नौकरी कर ली। मोदी खाने में नौकरी करते समय गरीब, अमीर, फ़कीर में कोई भी भेदभाव न करते हुए सभी को एक समान सौदा देने लग गए। जिन बाट से बाबा नानक ने सभी को सौदा दिया। वह बाट आज भी सुलतानपुर लोधी स्थित गुरुधाम में संग्रहित है।
बाबा नानक को शादी पर बहन नानकी ने दिया था यह अनमोल तोहफा
श्री गुरु नानक देव जी का विवाह मूलचन्द जी की सुपुत्री अच्छी देवी जी संग हुआ। शादी करने को जाने समय गुरू नानक देव जी को उन की बहन नानकी जी ने अपने हाथों से किए कशीदाकारी वाला रुमाल भेंट किया। इस रुमाल में रंग-बिरंगे धागों से तीन महिलाओं, एक हिरण, एक मोर, एक पेड़ व फूल पत्तियों की कढ़ाई की है। यह रुमाल आज डेरा बाबा नानक में स्थित गुरुधामों में विद्यमान है।
इसे भी देखें…साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए लिखी, शहादत की अनूठी इबारत
कच्ची कंध (दीवार) सदियों से मौजूद
बाबा नानक की बारात ने कुछ समय बटाला में विश्राम किया। यहां पर गुरू साहिब एक कच्ची दीवार के पास बैठे थे, जो गिरने वाली थी। परंतु गुरू जी के वचन के चलते यह दीवार आज भी विद्यमान है। जो बाबा नानक की पावन याद को जिंदा करती है।
पाकिस्तान एमनाबाद में थी बाबा नानक की चक्की
गुरू साहिब सुलतानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले एमनाबाद पहुंचे। यहां पर वह भाई लालो बढ़ई के पास कई दिन रुके रहे। उस समय एमनाबाद पर एक पठान का शासन था। पठान का बेटा बहुत समय से बीमार था। पठान ने मलक भागो की सलाह पर अपने इलाके के सभी फकीरों बंदीख़ाने में डाल कर अपने बेटे की सलामती के दुआ करने को कहा। पठान के सिपाहियों ने अन्य फकीरों संग गुरु नानक देव जी को भी बंदीख़ाने में डाल दिया। उस समय गुरू साहिब को बंदीख़ाने में चक्की पीसने के लिए दी गई। यह चक्की एमनाबाद ( पाकिस्तान) के गुरूद्वारा साहिब में मौजूद थी। परंतु कुछ साल पहले यह वहां से चोरी हो गई।
इसे भी देखें…माता गुजरी जी, बाबा जोरावर सिंह, फतेह सिंह की अंतिम स्मृति
गुरु साहिब की पावन चरण पादुकाएं नजामाबाद में हैं संग्रहित
गुरू जी ने उदासी के दौरान अयोध्या सहित कई तीर्थ यात्राएं की। इसी दौरान वह नजामाबाद पहुंचे। नजामाबाद नदी के पास सन्यासी मठों की बहुत बड़ी गिनती थी। नदी किनारे महांदेव घाट पर एक शिवालय और पुराना कुआँ था। यहां पर गुरु साहिब ने तीन दिनों तक आवास किया। यहां पर उन्होंने सन्यासियों संग गहन चर्चा की। जब गुरू जी यहां से जाने लगे तो सन्यासियों ने उनसे अपनी कोई निशानी देने की मांग की। तब गुरु साहिब ने अपनी चरण पादुका उन्हें प्रदान कर दी है। यह चरण पादुका आज भी नजामाबाद स्थित गुरुद्वारा चरण पादुका साहिब में विद्यमान है। गुरु साहिब नजामाबाद के बाद प्रयाग (मौजूदा इलाहाबाद), बनारस, गया से गुजरते हुए ढाका पहुंचे। यहां भी संगत की विनती पर उन्हें अपनी चरण पादुका दी। वहां पर स्थित गुरुद्वारा साहिब में यह चरण पादुका सुशोभित हैं। इसके बाद गुरु साहिब लंका में कुछ समय व्यतीत करने के बाद वापिस पंजाब आ गए।
इसे भी देखें…भारत का एक ऐसा गांव जिसे कहते हैं भगवान का अपना बगीचा
तिब्बत के राजा ने गुरु साहिब को भेंट किया वस्त्र
गुरु साहिब ने अपनी दूसरी उदासी उत्तर के पहाड़ी क्षेत्र का दौरा किया। गुरू साहिब कई पहाडी तीर्थों से गुजरते हुए सुमेरु पर्वत पहुँचे। इस इलाके में सिद्धियों का बडा प्रभाव था। गुरू जी की इन सिद्धियों के साथ गोष्टी की। इस दौरान वहां तिब्बत का राजा तरासुंग दियोचंग भी मौजूद था। वह गुरु साहिब से बहुत प्रभावित हुआ। उसने गुरू जी को तिब्बत आने का न्योता दिया। उस समय तिब्बत के इलाके में बुरे लोगों का अधिक प्रभाव था। वह कोई भी धार्मिक काम नहीं होने देते थे। गुरु साहिब ने वहां काफी समय व्यतीत कर बुरा काम करने वालों को सही राह पर लाने के प्रयास किए। जिसमें वह सफल भी रहे। वहां एक धार्मिक मठ का निर्माण भी किया गया। तिब्बत का राजे ने गुरु साहिब को सत्कार के तौर पर एक वस्त्र भी भेंट किया।
इसे भी देखें…सकारात्मक उर्जा, अच्छी सेहत चाहिए तो जाएं रोजाना मंदिर
सिक्कम स्थित उलाहना मंदिर में विद्यमान है गुरु साहिब के पैर का निशान
गुरू साहिब तिब्बत के बाद नईमाला, मुग्गूथांग, केदांग, सेरांग, गियांगौंग, सोरा (डांगमार), गंगौग, लुकरैप यौंगड़ी से गुजरते हुए थांगू पहुंचे। यहां कुदरत ने गुरू जी की पवित्र चरण छू को सदा के लिए नक्काश लिया। गुरू जी के पैर का पंजा पत्थर पर छप गया। यह पत्थर सडक बनाने वालों ने बारुद से उड़ा दिया। यह पत्थर टूट कर तीस्ता नदी में जा गिरा। जिसे एक लामा ने ढूँढ कर लाचनि गुफा (उलाहना मंदिर) में रख दिया। गुरू जी कई स्थानों से होते हुए सिक्किम के इलाके में पड़ते लाचनि नामक स्थान पर भी गए। गुरू नानक देव जी ने यहां पर हुई आव-भगत से प्रसन्न हो कर तिब्बत के राजा को अपने वस्त्र और कमंडल भेंट कर दिया। बाद में लामा की ओऱ से बनाए गए मंदिर में वस्त्र और कमंडल सुशोभति कर दिए गए। इस मंदिर में इस सामान की पूजा की जाती है।
इसे भी देखें…इस मंदिर में मिलती है बारिश की चेतावनी! 14 फुट मोटी दीवार से बिन बारिश पानी टपकता..
लेह गुरुद्वारा साहिब में गुरु साहिब के शरीर की छाप विद्यमान
गुरू साहिब ने सिक्किम के बाद लेह की तरफ रुख किया। यहां एक राक्षस लोगों को तंग करता था। गुरू जी लेह के एक ताल किनारे जा ठहरे। इसी ताल के नजदीक पहाड़ी पर एक राक्षस रहता था। इलाके के लोग गुरू साहिब के दर्शन करने आने लगे। राक्षस ने गुस्से में आकर गुरू जी पर पहाडी से पत्थर लुढका दिया। यह पत्थर गुरू साहिब का स्पर्श पाकर मानो मोम बन गया। इस पत्थर पर गुरू साहिब के पवित्र शरीर की छाप लग गई। यह देख राक्षस गुरू जी के पैरों में गिर कर उनका सेवक बन गया। गुरू जी के शरीर की छाप वाला पत्थर आज भी गुरुद्वारा पत्थर साहिब लेह में सुशोभित है।
मक्का में गुरु साहिबान ने कबूल किया मुसलमानों का दिया चोला
गुरू जी ने समुद्री जहाज़ के द्वारा मक्का की यात्रा की। गुरू जी मक्का में एक साल के करीब रहे। मुसलमानों के पीरों, विद्वानों व मौलवियों संग गहन चर्चा की। परंतु कट्टर वादी सोच वाले लोग बाबा जी पर अपना कोई कोई प्रभाव न डाल सके। आखिर उन्होंने गुरू जी को एक चोला डलवा दिया। गुरू जो ने सब को सम्मान देते हुए इस चोले का स्वीकार कर लिया। अमृतसर साहिब में ईरान के सुहान शहर के रहने वाले तोता अरोडा की सेवा से प्रसन्न हो कर यह चोला उन्हें प्रदान कर दिया। यह चोला आज बी डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा साहिब में विद्यमान है।
करतारपुर में श्री गुरु नानक देव जी ने श्री गुरु अंगद देव जी की सेवा से प्रसन्न हो कर उन्हें गुरुगद्दी देने का फ़ैसला किया। गुरू नानक देव जी ने गुरुगद्दी देने के समय अपनी वाणी की पोथी (संग्रह) गुरू अंगद देव जी को सौंप दी।
साभार-गुरु नानक देव जी की पावन स्मृतियों के चित्रों संबंधी जानकारी हरप्रीत सिंह नाज ने देश विदेश में जाकर संकलित की।