रूस में ईसाई धर्म से पहले था हिंदू धर्म का बोल-बोला

प्रदीप शाही
-खुदाई दौरान वोल्गा क्षेत्र में मिली थी भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा
हिंदू धर्म को विश्व भर में सबसे प्राचीन धर्म, संस्कृति के रूप में स्वीकार किया गया है। हिंदू संस्कृति की जड़ें भारत ही नहीं विश्व के कई देशों में भी कायम थी। चाहे आज विश्व भर के इन देशों में अन्य धर्मों के मानने वालों की संख्या अधिक है। यह भी पूर्णतौर से सत्य है कि एक ज़माना था जब हिंदू धर्म का रुस में बोल-बोला था। चाहे मौजूदा समय में रुस में ईसाई धर्म को मानने वाले अधिक हैं। रुस में हिंदू धर्म का प्रचलन होने का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि रूस के वोल्गा क्षेत्र में ज़मीन की खुदाई के दौरान भगवान श्री विष्णु जी की प्रतिमा मिली थी। वहां पर चाहे इस समय ईसाई धर्म के मानने वाले अधिक हैं। बावजूद इसके मौजूदा समय में भी कई हिंदू देवी देवताओं का पूजन करने की परंपरा है। गौर हो रूस में रहने वाले लोगों ने ईसाई धर्म को लगभग एक हज़ार साल पहले अपनाया था।

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रूस के लोगों ने कब अपनाया ईसाई धर्म

रूस में 10वीं सदी के अंत में कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर का शासन था। वह चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग अलग-अलग देवी-देवताओं का पूजन करने के स्थान पर केवल एक ईश्वर का पूजन करे। माना जाता है कि राजा व्लादीमिर ने उक्त फैसला उस समय रियासत में पुजारियों की तरफ से मनमाने ढंग से पूजा अर्चना कर जनमानस का शोषण करने के चलते लिया। उस समय राजा व्लादीमिर के सामने दो नए धर्म एक ईसाई और दूसरा इस्लाम था। सबसे अहम बात यह थी कि रुस के आस-पास के देशों में कहीं ईसाई और कहीं इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग बसते थे। ऐसे में राजा व्लादीमिर के समक्ष ईसाई और इस्लाम किसी एक धर्म का चुनाव करना था। ताकि उस रियासत के लोग उस धर्म को स्वीकार करें। ऐसे में राजा ने दोनों ही धर्मों की जानकारी एकत्रित करनी शुरू कर दी। राजा व्लादीमिर को इस्लाम में स्वर्ग की कल्पना और वहां हूरों के साथ मौज-मस्ती की बातें तो ठीक लगी। परंतु महिला की आजादी, मदिरापान पर पाबंदी और खतने की प्रथा राजा व्लादीमिर को ठीक नहीं लगी। ऐसे में उन्होंने इस्लाम धर्म को कबूल न करने का फैसला किया। वहीं दूसरी तरफ ईसाई धर्म में किसी भी तरह की पाबंदी नहीं थी। तब राजा व्लादीमिर ने अपनी कियेव रियासत की जनता को ईसाई धर्म अपनाने के आदेश दिए। उन्होंने ईसाई धर्म अपनाने के लिए यूनानी वेजेन्टाइन चर्च से वार्तालाप करना शुरू कर दिया। वेजेन्टाइन चर्च कैथोलिक ईसाई धर्म से विभिन्न है। इस तरह रूस में ईसाई धर्म की शुरुआत हुई। राजा व्लादीमिर की रियासत में जनता ने ईसाई धर्म को कबूल तो कर लिया, पर लंबे समय तक वहां के लोग प्राचीन देवी देवताओं का ही पूजन करते रहे। वहीं पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार संभव हो सका। और धीरे-धीरे रूस में प्राचीन हिंदू धर्म लगभग समाप्त हो गया।

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प्राचीन काल में किन शक्तियों का होता था पूजन

कहा जाता है कि रूस में प्राचीन काल में लोग जिन शक्तियों की पूजा करते थे। उन्हें विद्वान लोग अब भी प्रकृति पूजा कहकर पुकारते हैं। उनकी माने तो सूरज, वायु, बरसात सभी ईश्वर हैं। प्रकृति में होने वाले सभी परिवर्तन ईश्वर का रूप हैं। उस समय लोग अग्नि, सूर्य, पर्वत, वायु के अलावा पेड़ों का पूजन करते थे। जो आज के भारत में हिंदू धर्म को मानने वाले करते हैं। लोगों का मानना है कि इस ब्रह्मांड में कोई एक आलौकिक शक्ति है, जो इस संपूर्ण ब्रह्मांड को संचालित कर रही है। वहां पर लोग आसमान में चमकने वाली शक्ति को विद्युत देवता के रूप से पूजते थे। इस देवता का नाम पेरून था। वहीं पर किसी भी प्रकार का समझौता करने के समय पेरून देवता को पूजा जाता था। उसकी शपथ ली जाती थी। रूस के प्राचीन काल में दो अन्य देवताओं के नाम रोग और स्वारोग प्रचलित थे। उस समय सूर्य देवता को होर्स, यारीला और दाझबोग के नाम से पुकारा जाता था। इसके अलावा बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना नामक देवियों को पूजा जाता था। मरेना नाम की देवी को जाड़ों की देवी और मौत की देवी भी माना जाता था। माना जाता है कि हिंदी शब्द मरना शायद इसी मरेना देवी के नाम से ही पैदा हुआ होगा। इसी तरह रूस का जीवा देवता हिंदी शब्द ‘जीव’ भी हो सकता है। जीव यानिकि जीवंत आत्मा। रूस में इसे जीवन की देवी कहा जाता था।

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वोल्गा क्षेत्र में मिली थी भगवान श्री विष्णु जी की प्रतिमा

रूस के वोल्गा क्षेत्र में की गई खुदाई के दौरान हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के अलावा प्राचीन कालीन सिक्कें, पदक, अंगूठियां, शस्त्रों का मिलना इस बात को प्रमाणित करता है कि रूस में एक ज़माने में हिंदू संस्कृति का वर्चस्व था। वर्ष 2007 में वोल्गा क्षेत्र के गांव स्ताराया मायना में भगवान श्री विष्णु जी की प्रतिमा मिली जो मूर्ति 7-10वीं ईस्वी की थी। कहा जाता है कि यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था। स्ताराया मायना का अर्थ होता है गांवों की मां। प्राचीन काल में यहां की आबादी मौजूदा आबादी से 10 गुणा अधिक थी। रूस के पुरातत्ववेताओं को आज भी खुदाई के दौरान प्राचीन रूसी देवी देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। इन मूर्तियों के माता दुर्गा की तरह अनेक सिर व हाथ हैं।महाभारत काल के कुरु क्षेत्र की रूस और उत्तरी ध्रुव से समानता

महाभारत काल में वीर अर्जुन के उत्तर कुरु तक जाने का भी उल्लेख मिलता है। कुरु वंश के लोगों का बड़ा भाग उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहता था। इन लोगों को उत्तर कुरु इसलिए कहा जाता था क्योंकि यह हिमालय के उत्तर क्षेत्र में रहते थे। सबसे खास बात यह है कि महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है। वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मेल खाता है। वीर अर्जुन के बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप की ओर से उत्तर कुरु पर विजय हासिल करने की भी जानकारी मिलती है। भगवान श्री विष्णु जी की यह मूर्ति शायद वही मूर्ति होगी। जिसे सम्राट ललितादित्य ने स्त्री राज्य में बनवाया था। स्त्री राज्य को उत्तर कुरु के दक्षिण में कहा गया है। यह भी माना जाता है कि शायद स्ताराया मैना को पहले स्त्री राज्य ही कहा जाता था। परंतु इसके बारे में कोई भी सटीक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। एक बात पर चर्चा करना बेहद अनिवार्य है कि रूसी भाषा में दो हज़ार से अधिक शब्द संस्कृत भाषा से संबंधित हैं। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि वहां एक समय में हिंदू धर्म को मानने वाले रहे थे।

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