11वीं शताब्दी में बना रहस्यमयी मन्दिर…जिसके रहस्य आज भी बने हुए हैं पहेली

-डॉ.धर्मेन्द्र संधू

भारत के प्राचीन मंदिर आज भी देश और विदेश के श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कुछ मंदिरों का निर्माण इस तरीके से किया गया है कि वह आज भी उसी स्थिति में हैं जैसे प्राचीन समय में थे। एक ऐसा ही ग्रेनाइट से बना प्राचीन मंदिर तमिलनाडु में स्थित है जो कई रहस्यों को समेटे हुए है। 

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बृहदेश्वर मन्दिर 

भगवान शिव को समर्पित ‘बृहदेश्वर मन्दिरतमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित है। यह प्राचीन मंदिर राज-राजेश्वर और राज-राजेश्वरम के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट से किया गया है। इस मंदिर को बनाने में 5 साल का समय लगा था यानि इसका निर्माण कार्य 1004 ई. से लेकर 1009 ई. तक चला। यह मंदिर राजराज चोल प्रथम द्वारा 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था। राजराज प्रथम शैव मत को मानते थे जिसके चलते उन्हें शिवपादशेखर की उपाधि मिली हुई थी। इस मंदिर के नामकरण के बारे में कहा जाता है कि चोल शासकों ने इस मंदिर के निर्माण के बाद इसका नाम राजराजेश्वर रखा था। लेकिन तंजौर पर हमला करने के बाद मराठा शासकों ने इस मंदिर का नाम बदलकर बृहदीश्वर कर दिया।

बृहदेश्वर मन्दिर से जुड़े तथ्य और रहस्य

इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक बात आज भी सभी को हैरान करती है कि जिस पत्थर यानि ग्रेनाइट से इस मंदिर को बनाया गया है वह इस इलाके में नहीं पाए जाते। इस मंदिर के प्रभावशाली ढांचे को तैयार करने में 1,30,000 टन ग्रेनाइट का प्रयेाग किया गया है। लेकिन इतनी भारी मात्रा में ग्रेनाइट आखिर लाया कहां से गया यह एक रहस्य है। इस मंदिर से जुड़ा एक और हैरान करने वाला तथ्य यह है कि मंदिर के गुबंद की परछाई नीचे ज़मीन पर नहीं पड़ती। भारत सरकार द्वारा बृहदेश्वर मंदिर के एक हजार साल पूरे होने पर एक हजार रुपए का सिक्का भी जारी किया गया है जो इस मंदिर की प्राचीनता और प्रसिद्धि को दर्शाता है।

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बृहदेश्वर मन्दिर का वास्तु शिल्प

मान्यता है कि चोल वंश के शासक ने इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए करवाया था। विशाल बृहदेश्वर मंदिर तंजौर शहर में हर स्थान से दिखाई देता है। मंदिर की इमारत में तेरह मंज़िलें बनी हुई हंै। मंदिर में की गई नक्काशी देश-विदेश के लोगों को अपनी और खींचती है। मंदिर में शिलालेख भी मौजूद हैं जो चोल वंश की गौरव गाथा को बयान करते हैं। मंदिर के शिखर पर स्थापित स्वर्ण कलश मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। मंदिर में भव्य शिवलिंग के साथ ही नंदी जी की एक विशाल प्रतिमा के दर्शन होते हैं। नंदी जी की इस मूर्ति की ऊंचाई 12 फीट है और इसका वजन 25 टन के करीब है। नंदी जी की यह विशाल प्रतिमा पूरे भारत में एक ही पत्थर से बनी हुई दूसरी विशाल प्रतिमा है। मंदिर की दीवारों पर मां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, अर्धनारीश्वर के साथ ही नटेश और अलिंगाना रूप में भी भगवान शिव के दर्शन होते हैं।

यूनेस्को ‘वल्र्ड हेरिटेज साईटकी सूची में शामिल है यह मंदिर

बृहदेश्वर मंदिर यूनेस्को ‘वल्र्ड हेरिटेज साईटके अंतर्गत ‘ग्रेट लिविंग चोला टेम्पलके 3 मंदिरों की सूची में शामिल है। बृहदेश्वर मंदिर के अलावा गंगईकोंडा चोलपुरम और ऐरावतेश्वर मंदिर भी इस सूची में आते हैं। बृहदेश्वर मंदिर को 2004 में ग्रेट लिविंग चोला टेम्पल की सूची में शामिल किया गया था। इस प्राचीन मंदिर के सरंक्षण की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के पास है।

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कैसे पहुंचें

प्राचीन सदियों पुराना बृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित है। तंजौर तक रेल, सड़क हवाई मार्ग के द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर में मुख्य रूप से तीन उत्सव शिवरात्रि, नवरात्रि, राजराजन उत्सव श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।

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