पत्थर, धातु की नहीं 70 औषधियों से बनीं हैं इस मंदिर की मूर्तियां

-शाकाहारी मगरमच्छ करता है अनंतपुर मंदिर की रक्षा
सदियों पहले अपने ईष्ट देव की अराधना के लिए स्थापित किया गया हर मंदिर अपने आप में अनूठा व रहस्यमयी है। चाहे उस मंदिर का निर्माण हो या फिर मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित प्रतिमाएं। यह सब उस समय की इंजीनियरिंग का कमाल है। मौजूदा समय की साइंस व इंजीनियरिंग आज भी उस अदभुत निर्माण के समक्ष नतमस्तक है। एेसे ही केरल में झील पर स्थापित अनंतपुर मंदिर के अजूबे को सुन कर आप भी चौक जाएंगे। इस मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित प्रतिमाएं पत्थर या धातु से नहीं औषधियों से बनी हुई है। इतना ही नहीं इस मंदिर की रखवाली एक शाकाहारी मगरमच्छ करता है। जो आज भी भक्तों के लिए ही नहीं बल्कि सुनने वालों के लिए भी कौतहूल का विषय बना हुआ है।

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रहसयमयी मंदिर में पत्थर की नहीं 70 औषधियों से बनीं हैं मूर्तियां
केरल में एक झील पर बने अनंतपुर मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठित मूर्तियां किसी धातु या पत्थर की नहीं है। बल्कि यह प्रतिमा 70 से ज्यादा औषधियों की सामग्री से बनी हैं। औषधियों से बनी इन मूर्तियों को ‘कादु शर्करा योग’ के नाम से पुकारा जाता है। चाहे वर्ष 1972 में इन प्रतिमाओं को पंचलौह धातु की मूर्तियों से बदल कर प्राण-प्रतिष्ठित किया गया था। परंतु अब कर फिर इन्हें दोबारा ‘कादु शर्करा योग’ के रूप में बनाने का प्रयास जारी है।

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मंदिर की शाकाहारी मगरमच्छ करता है रखवाली
केरल में झील पर स्थापित अनंतपुर मंदिर की विचित्र मान्यताएं हैं। इनमें प्रमुख तौर से मंदिर की रखवाली एक मगरमच्छ के द्वारा करनी है। सबसे खास बात यह है कि यह मगरमच्छ पूर्ण तौर से शाकाहारी है। जबकि आमतौर पर मगरमच्छ शाकाहारी नहीं होते हैं। इस मगरमच्छ को ‘बबिआ’ नाम से पुकारा जाता है। इस अनोखी मंदिर की यह भी मान्यता है रही कि जब इस झील में रहने वाले एक मगरमच्छ की मृत्यु होती है। तो रहस्यमयी ढंग से दूसरा मगरमच्छ प्रकट हो जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु (भगवान अनंत-पद्मनाभस्वामी) का है। यह मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनंत-पद्मनाभस्वामी (भगवान विष्णू) का मूल स्थान है। यहां के लोगों का यह विश्वास है की भगवान विष्णू यहीं आकर स्थापित हुए थे।

मंदिर के पुजारियों के हाथ से ही ग्रहण करता मगरमच्छ भोजन
मान्यता है कि यह मगरमच्छ पू्र्ण तौर से शाकाहारी है। भक्तों की ओऱ से मंदिर में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को पुजारियों की ओर से मगरमच्छ को प्रदान किया जाता है। पुराजीर प्रसाद को मगरमच्छ के मुंह में डालते हैं। मगरमच्छ पूरी तरह से शाकाहारी है। वह झील में रहने वाले अन्य जीवों को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाता है। कितनी भी ज्यादा या कम बारिश होने पर झील के पानी का स्तर हमेशा एक-समान रहता है। मगरमच्छ अनंतपुर मंदिर की झील में करीब 60 सालों से रह रहा है। बबिआ मगरमच्छ को प्रसाद खिलाने की अनुमति सिर्फ मंदिर प्रबंधन के पुजारियों को ही है।

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अंग्रेज सिपाही ने गोली मारी, परंतु मगरमच्छ जीवित रहा
कहते है कि वर्ष 1945 में एक अंग्रेज सिपाही ने इस मंदिर के तालाब में रहने वाले मगरमच्छ को गोली मार कर मारने की कोशिश की। परंतु मगरमच्छ अविश्वसनीय रूप से अगले दिन फिर से झील में तैरता दिखाई दिया। कुछ दिनों के बाद बाद गोली मारने वाले अंग्रेज सिपाही की सांप के डसने से मौत हो गई। लोगों का मानना है कि इसे सांपों के देवता अनंत ने डसा है। मंदिर में दर्शन करने वाले वह भाग्यशाली भक्त होते हैं, जिन्हें इस रहस्यमयी मगरमच्छ के दर्शन होते हैं। भक्त मंदिर में दर्शन करने के बाद इस झील में रहने वाले इस मगरमच्छ के दर्शन करने के लिए डटे रहते हैं। वह भक्त भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें इस मगरमच्छ के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर प्रबंधन का मानना है कि यह मगरमच्छ ईश्वर का दूत है। इसी कारण यहां पर कभी अनहोनी नहीं होती है।

कुमार प्रदीप

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