देवी दुर्गा के नौ रुप में से पहला रुप है ‘मां शैलपुत्री’

-माता सती ने ही पर्वतराज के घर लिया था शैलपुत्री के रुप में जन्म

-चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कैसे करें मां शैलपुत्री का पूजन

धार्मिक पुराण अनुसार माता दुर्गा के नौ रुप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में माता के इन रुपों का ही पूजन किया जाता है। क्योंकि नवरात्रि पर शक्ति स्वरुपा, जगत जननी माता की पूजा अर्चना की जाती है। माता सती ने ही अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर में शैल पुत्री के तौर पर जन्म लिया था। जिन्हें मां दुर्गा जी का पहला स्वरुप शैलपुत्री कहा जाता है। औऱ नवरात्रि का शुभारंभ मां शैलुपत्री का पूजन कर ही किया जाता है। आईए, आपको चैत्र नवरात्र के आगमन से पहले कलश की स्थापना, माता शैलपुत्री की कथा, पूजन व विधि के बारे जानकारी प्रदान करें।

इसे भी देखें….हनुमान जी ने क्यों धारण किया था पंचमुखी रुप…

कौन है माता शैलपुत्री

दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल-पुष्प धारण किए मां शैलपुत्री अपने  पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या थी। तब इनका नाम सती था।  पूर्व जन्म में एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। जिसमें सभी देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया। पंरतु भगवान शंकर को जानबूझ कर यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने यज्ञ में भाग लेने की इच्छा भगवान शंकर को बताई। भगवान शंकर ने कहा कि हमें न बुलाने के कारण आपका भी वहां जाना ठीक नहीं होगा। पंरतु सती के यज्ञ में जाने की जिद करने पर भगवान शंकर ने उन्हें अनुमति प्रदान कर दी। घर पहुंच कर केवल माता ने ही उनका सत्कार किया। अन्य सभी ने मुंह फेरे रखा। इतना ही नहीं उनके पति भगवान शंकर के प्रति कहे अपमानजनक शब्द सुनने पर माता सती ने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है। भगवान शंकर के इस अपमान को न सहते हुए वहीं योगाग्नि द्वारा अपने आप को जलाकर भस्म कर दिया। इस घटना के बाद शंकर भगवान ने  दक्ष के उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। अगले जन्म में सती ने  शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। गौर हो पार्वती, हैमवती भी मां शैलपुत्री के ही नाम हैं।

इसे भी देखें….अंजान सच ! केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध करने में थे सक्षम

नवरात्र के पहले दिन करें कलश की स्थापना

नवरात्र के प्रथम दिन स्नान कर माता दुर्गा, भगवान श्री गणेश, नवग्रह, कुबेर की  मूर्तियों के साथ कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। कलश स्थापना के समय पूजा गृह में पूर्व के कोण की तरफ अथवा घर के आंगन से पूर्वोत्तर भाग में पृथ्वी पर सात तरह के अनाज रखें। इसके बाद कलश में गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, कलावा, चंदन, अक्षत, हल्दी, धन और फूल डालें। फिर ‘ॐ भूम्यै नमः’ कहते हुए कलश को सात अनाजों सहित रेत के ऊपर स्थापित करें।

इसे भी देखें…इस गुफा में छिपा है प्रलय का राज़…स्कंद पुराण में है इस पावन गुफा का वर्णन

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 8:39 से 10:03 तक और दोपहर 12:53 से 14:18 तक।  

मां शैलपुत्री का पूजन और विधि

कलश पूजन के बाद  मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ से सभी पूजन सामग्री अर्पण करते हुए मां शैलपुत्री की पूजा करें। मां शैलपुत्री को सफेद कनेर का फूल अर्पित करें। इस दौरान  या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। का जाप करें।

इसे भी देखें…..धर्म की स्थापना के लिए भगवान श्री गणेश ने लिए थे आठ अवतार

प्रदीप शाही

LEAVE A REPLY