जानिए भगवान शिव ने कामदेव को क्यों किया था भस्म..आज भी मौजूद है वह स्थान

भारत में कई प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों का अपना इतिहास है और अपनी मान्यताएं हैं। प्रत्येक मंदिर के साथ कोई ना कोई कथा या कहानी जरूर जुड़ी हुई है। इनमें से कुछ मंदिरों का उल्लेख व वर्णन धार्मिक ग्रन्थों में किया गया है। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में जानकारी देंगे जिसका संबंध भगवान शिव के साथ है। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। यह स्थान ‘कामेश्वर धाम’ के नाम से विख्यात है। यह प्राचीन मंदिर उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के कारों नामक गांव में स्थित है।

पुराणों में है इस स्थान का वर्णन

इस धाम यानि मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह वही स्थान है जिसका वर्णन शिव पुराण और वाल्मीकि रामायण में मिलता है। इसी स्थान पर भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म किया था। इस स्थान पर आज भी वह आधा जला हुआ लेकिन आज भी हरा भरा आम का वह पेड़ मौजूद है जिसके पीछे छिपकर कामदेव ने समाधि में लीन भगवान शंकर पर पुष्प बाण चलाया था।

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क्यों किया था भगवान शिव ने कामदेव को भस्म ?

शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान शिव की पत्नी देवी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में भगवान शिव का अपमान सहन न करते हुए यज्ञ वेदी में कूद जाती हैं। इस पर भगवान शिव तांडव कर पूरी सृष्टि में हाहाकार मचा देते हैं। इससे व्याकुल होकर देवता भगवान शिव को समझाने पहुंचते हैं। देवताओं के समझाने पर भगवान शिव शान्त होकर गंगा-तमसा नदियों के पावन संगम पर समाधि में लीन हो जाते हैं। इसी दौरान राक्षस तारकासुर तपस्या करके ब्रह्मा जी से यह वरदान पा लेता है कि उसकी मृत्यु केवल शिव के पुत्र के द्वारा ही हो। इस प्रकार तारकासुर को अमरता का वरदान मिलता है क्योंकि देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव शांत होकर समाधि मे लीन हो चुके थे।

वरदान पाने के बाद तारकासुर हाहाकार मचा देता है और वो स्वर्ग पर अधिकार करने की कोशिश करता है। इस बात से चिंतित हो कर देवता भगवान शिव को समाधि से जगाने के लिए कामदेव को सेनापति बनाकर भेजते हैं। कामदेव द्वारा भगवान शिव का ध्यान भंग करने की हर संभव कोशिश की जाती है। लेकिन सारे प्रयास विफल जाते हैं। अंत में कामदेव द्वारा खुद को आम के पेड़ के पत्तों के पीछे छिपाकर भगवान शिव पर पुष्प बाण चलाया जाता है। इस पुष्प बाण से भगवान शिव की समाधि टूट जाती है। इस पर क्रोधित होकर भगवान शिव आम के पेड़ के पत्तो के पीछे खड़े कामदेव को अपने त्रिनेत्र से जला कर भस्म कर देते हैं।

संतों का तप स्थान रहा है यह धाम

वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि त्रेतायुग में इस स्थान पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी आये थे। कहा जाता है कि अघोर पंथ के संत श्री कीनाराम बाबा की प्रथम दीक्षा भी इसी स्थान पर हुई थी। और यही वह पावन स्थल है जहां पर दुर्वासा ऋषि ने भी तपस्या की थी।

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ऐसे पड़ा इस स्थान का नाम

कहा जाता है कि इस स्थान का नाम पहले कामकारू कामशिला था। यही कामकारू शब्द अपभ्रंश में काम शब्द खोकर कारूं बना और बाद में कारून और अब वर्तमान समय में कारों के नाम से प्रसिद्ध है।

इस स्थान पर स्थापित हैं तीन प्राचीन शिवलिंग

श्री कामेश्वर नाथ शिवालय

यह शिवालय रानी पोखरा के तट पर एक बड़े आम के वृक्ष के नीचे स्थित है। कहा जाता है कि इस शिवालय में स्थापित शिवलिंग खुदाई के दौरान मिला था जो ऊपर से थोड़ा सा खंडित अवस्था में है।

श्री कवलेश्वर नाथ शिवालय

इस शिवालय की स्थापना अयोध्या के राजा कमलेश्वर द्वारा आठवीं सदी में की गई थी। मान्यता है कि इस स्थान पर आकर राजा कमलेश्वर का कुष्ट रोग ठीक हो गया था। इस शिवालय के पास में ही राजा कमलेश्वर ने एक विशाल तालाब बनवाया था। इस तालाब को रानी पोखरा कहा जाता है। ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस द्वारा सरकारी गजट में इस मंदिर के नज़दीक स्थित झील को कवलेश्वर ताल के नाम से दर्ज किया था।

श्री बालेश्वर नाथ शिवालय

बालेश्वर नाथ शिवालय में एक चमत्कारिक शिवलिंग स्थापित है इसके बारे में लोगों का कहना है कि यह एक चमत्कारिक शिवलिंग है। मान्यता है कि 1728 में अवध के नवाब मुहम्मद शाह ने कामेश्वर धाम पर हमला किया था। इस हमले के दौरान बालेश्वर नाथ शिवलिंग से निकले काले भौरों ने जवाबी हमला करते हुए नवाब मुहम्मद शाह की सेना को भागने के लिए मज़बूर कर दिया था।

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सावन के महीने में कांवड़ियों का उमड़ता है सैलाब

कारों गांव में स्थित कामेश्वर धाम में सावन के महीने में कांवड़ियों का सैलाब उमड़ता है। साथ ही बड़ी संख्या में शिव भक्त भगवान शिव के दर्शनों के लिए आते हैं। खासकर सावन महीने के पहले सोमवार को भक्तों का तांता लगता है। हर हर महादेव के जयकारों से सारा वातावरण,माहौल और इलाका शिवमय हो जाता है।

धर्मेन्द्र संधू  

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