आखिर क्यों भगवान श्री राम को धरती पर लेना पड़ा अवतार…

-नारद मुनि के श्राप से ही भगवान विष्णु को लेना पड़ा था भगवान राम का अवतार
जब किसी देवता, राक्षस या फिर इंसान को तप, बुद्धि या फिर पौरुष का अभिमान हुआ है, तो उसका फल भोगना ही पड़ा है। दशानन रावण को भी अपने ज्ञान और बल के अहंकार होने पर भगवान श्री राम के हाथों मौत मिली। क्या आप जानते हैं कि तपस्वी और ज्ञानी ऋषि नारद को अपने ज्ञान और तप के चलते हुए अहंकार से बंदर का रुप धारण करना पड़ा। इस रुप से पीड़ित ऋषि नारद ने अपने आराध्य भगवान श्री विष्णु जी को भगवान श्री राम व दो अन्य गणों को धरती पर राक्षस योनि में रावण और कुंभकर्ण के रुप में जन्म लेने का श्राप दिया। आईए, आपको विस्तार से इस बारे जानकारी प्रदान करते हैं।

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कैसे हुआ ऋषि नारद को अहंकार
हिमालय पर्वत में एक बड़ी पावन गुफा थी। उस गुफा के नजदीर ही गंगा जी बहती थीं। इस गुफा के पास के मनोरम वातावरण को देख कर नारद जी के मन में अपने आराध्य श्री हरि विष्णु की भक्ति करने की इच्छा बलवती हो गई। वह वहीं बैठ कर तपस्या में लीन हो गए । नारद मुनि की इस तपस्या से देवराज इंद्र भयभीत हो गए। वह सोचने लगे कि कहीं देवर्षि नारद अपने तप के बल से उनका सिंहासन ने छीन लें। इंद्र देव ने नारद की तपस्या भंग करने के लिये कामदेव को उनके पास भेज दिया। वहां पहुंच कर कामदेव ने अपनी माया से बसंत ऋतु को उत्पन्न कर दिया। रंग-बिरंगे फूलों वाले उपवन में कोयले कूकने लगींष शीतल. सुगंधित हवा चलने लगी। रंभा व अन्य अप्सराएं नृत्य करने लगीं। किंतु कामदेव की यह माया नारद मुनि पर कोई भी प्रभाव नहीं डाल सकी। तब कामदेव घबरा गए कि कहीं नारद मुनि उन्हें श्राप न दे दें। तब कामदेव ने नारद मुनि से क्षमा मांगी। नारद मुनि ने भी कामदेव को क्षमा कर दिया।

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कामदेव के जाने के बाद नारद मुनि के मन में अहंकार पैदा हो गया कि उन्होंने कामदेव को जीत लिया। इस के बाद नारद मुनि भगवान शिव के पास चले गए। वहां उन्होंने कामदेव को हराने की समूची बात बताई। भगवान शिव समझ गए कि नारद को अहंकार हो गया है। भोले बाबा ने सोचा कि यदि नारद मुनि के अहंकार की बात विष्णु जी को पता चली तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा। तब उन्होंने नारद से कहा कि तुमने जो बात मुझे बताई है उसे श्री हरि को मत बताना। नारद मुनि को शिव जी की यह बात अच्छी नहीं लगी। भगवान शिव के समझाने के बावजूद नारद मुनि ने भगवान श्री हरि को सारी कहानी सुना दी। भगवान विष्णु समझ गए कि नारद को अहंकार ने घेर लिया है। मन में सोचा कि वह ऐसा उपाय करेंगे, जिससे नारद का घमंड दूर हो जाएगा।


नारद मुनि भूले वैराग्य, स्वंयबर करने की इच्छा जगी
नारद मुनि श्री विष्णु से विदा हुए, तो उनके मन अभिमान पहले से भी और भी बढ़ गया। इधर श्री हरि ने अपनी माया से नारद जी के रास्ते में एक बड़े ही सुन्दर नगर को बना दिया । उस नगर में शीलनिधि नाम का वैभवशाली राजा रहता था। उस राजा की विश्व मोहिनी नाम की बहुत ही सुंदर बेटी थी। जिसके रूप को देख कर तो लक्ष्मी भी मोहित हो जाएं। विश्व मोहिनी स्वयंवर करना चाहती थी। इसलिए कईं राजा उस नगर में आए हुए थे। नारद मुनि उस नगर के राजा के पास पहुंचे तो राजा ने उनका सत्कार कर आसन पर बिठाया। फिर उनसे अपनी कन्या का भविष्य बताने के लिए कहा। कन्या का रूप देखते ही नारद मुनि अपना वैराग्य ही भूल गए। कन्या की हस्तरेखा देखकर उन्हें पता चला कि जो भी इससे विवाह करेगा, वह अमर हो जाएगा। नारद मुनि के मन में उस कन्या से शादी करने की इच्छा ने जन्म लिया, तब उनहोंने राजा को को अपने मन से ही कुछ बातें बता दी।

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भगवान श्री विष्णु ने दिया बंदर का रुप
कन्या से विवाह करने की कल्पना करने पर नारद मुनि ने श्री हरि को याद किया। भगवान श्री विष्णु उनके सामने प्रकट हुए। तब नारद जी ने अपने मन की बात बताई। औऱ प्रार्थना की हे नाथ आप मुझे अपना सुंदर रूप दे दो, ताकि मैं इस कन्या से विवाह कर सकूं। भगवान हरि ने कहा जैस आप चाहें। विष्णु जी ने अपनी माया से नारद जी को बंदर का रूप दे दिया नारद मुनि जी को यह बात समझ में नहीं आई। वहां पर छिपे भगवान शिव के दो गणों भी इस घटना को देख रहे थे।

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ऋषि नारद तत्काल विश्व मोहिनी के स्वयंवर में पहुंच गए। भगवान शिव के वह दोनों गण भी ब्राह्मण का रूप बना कर वहां पहुंच गए। नारद मुनि मन ही मन बहुत प्रसन्न थे कि वह उन्हें भगवान विष्णु का रुप मिला हुआ है। विश्व मोहिनी ने बंदर के रुप वाले नारद मुनि की तरफ देखा भी नहीं। और राजा रूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। मोह के कारण नारद मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी । राजकुमारी द्वारा किसी अन्य राजा के गले में वरमाला डालते देख नारद मुनि परेशान हो उठे। तब शिव जी के गणों ने हंसते हुए नारद मुनि को दर्पण में अपना चेहरा देखने को कहा। नारद मुनि ने जब जल में झांक कर अपना मुंह देखा तो अपना बंदर सा मुख देख गुस्सा हो गए. उन्होंने शिव जी के उन दोनों गणों को राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया। श्राप देने के बाद जब मुनि ने एक बार फिर से जल में अपना मुंह देखा तो उन्हें अपना असली रूप फिर से मिल चुका था। नारद मुनि का गुस्सा कम नहीं हुआ। क्योंकि विष्णु के कारण ही उनकी बहुत हंसी हुई है। उसी समय विष्णु जी से मिलने के लिए चल पड़े। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी, माता लक्ष्मी जी और विश्व मोहिनी से हुई। अपने आराध्य विष्णु जी से कहा कि आपके कारण ही खुशियां आज मुझसे दूर हुई। समुद्र- मंथन के दौरान श्री शिव को विष और राक्षसों को मदिरा पिलाई। स्वयं लक्ष्मी जी और कौस्तुभ मणि को ले लिया। आपने जो मेरे साथ किया इसका फल जरूर भोगेंगे। आपने मनुष्य रूप धारण करके विश्व मोहिनी को प्राप्त किया है ।

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नारद मुनि ने दिया श्राप
अब मैं आपको श्रप देता हूं कि अब आपको मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा । जिस तरह से आपने मुझे एक स्त्री से दूर किया है। इसी तरह आपको भी स्त्री से दूर रहने पड़ेगा। मुझको बंदर का रूप दिया, इसलिए आपको बंदरों से ही मदद लेनी पड़ेगी। नारद मुनि के श्राप को श्री विष्णु ने स्वीकार कर उन पर से अपनी माया को हटा लिया। माया के हटते ही नारद जी को अपने द्वारा दिए श्राप का बहुत दुख हुआ अब श्राप वापिस नहीं लिया जा सकता था। नारद मुनि के श्राप के कारण ही शिव जी के वह दोनों गण रामायण काल में रावण और कुंभ कर्ण के रूप में राक्षस योनि में पैदा हुए। वहीं भगवान विष्णु ने भगवान श्री राम के रूप में जन्म लिया।

प्रदीप शाही

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