जब सीता माता ने धरा चंडी रुप

-भगवान ब्रह्मा जी के वरदान ने बनाया मूलकासुर को अत्यंत बलशाली

-माता सीता ने किया था कुंभकर्ण के बेटे मूलकासुर का वध

प्रदीप शाही

रामायण में सभी जगहों पर केवल पुरुषों की ओऱ से युद्ध में भाग लेने का वर्णन मिलता है। परंतु रामायण में एक प्रसंग ऐसा भी आता है जब माता सीता ने युद्ध में हथियार उठा कर कुंभकर्ण के बेटे मूलकासुर का वध कर भगवान श्री ब्रह्मा जी के वरदान को विफल कर भगवान श्री राम को विजय दिलाई। कुंभकर्ण के बेटे मूलकासुर ने भगवान श्री ब्रहमा जी कठोर तपस्या कर अत्यंत बलशाली होने का वरदान हासिल किया था। गौर हो जब भी किसी इंसान, असुर ने कठोर तपस्या कर किसी भी देवी-देवताओं से वरदान हासिल किया। वरदान हासिल करने वालों ने अधिकतर वरदान का दुरुपयोग ही किया। आखिर क्या कारण था कि माता सीता को ही युद्ध में हथियार उठा कर मूलकासुर का वध करना पड़ा।

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विभीषण ने भगवान श्री राम को दी मूलकासुर के अत्याचार की जानकारी

लंका विजय के बाद भगवान श्री राम राजपाठ का संचालन कर रहे थे। एक दिन लंकापति विभीषण दरबार में पहुंचे। विभीषण बेहद डरे हुए थे। सभा में पहुंच कर विभीषण ने श्री राम से कहा कि प्रभु, मेरी व मेरी प्रजा की मदद करें। कुंभकर्ण का पुत्र मूलकासुर लंका की जनता पर अत्याचार कर रहा है। मूल नक्षत्र में पैदा हुआ मूलकासुर, कुंभकर्ण का बेटा है। मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण इसका नाम मूलकासुर रखा गया। कुंभकर्ण ने मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण अपने बेटे को जंगल में फिंकवा दिया था। जगंल में मधुमक्खियों ने मूलकासुर का पालन पोषण किया। जवां होने पर मूलकासुर ने भगवान श्री ब्रहमा जी कठोर तपस्या कर वरदान हासिल किया। वरदान मिलने के बाद मूलकासुर अहंकारी हो गया। जब उसे पता चला कि आपने उसके समूचे खानदान को समाप्त किया है। और मुझे लंका का राजपाठ सौंप दिया है। तब से वह प्रतिशोध लेने में जुटा है। अपने प्रतिशोध को पूरा करने के लिए उसने पाताल वासियों से भी मदद ले ली है। बीते छह माह से उसके साथ युद्ध जारी है। परंतु भगवान श्री ब्रह्मा जी के वरदान के कारण उसे पराजित करना मुमकिन ही नहीं था। ऐसे में मैं अपने परिवार व कुछ सभासदों संग आपकी शरण में आया हूं। आप ही मेरी इस समस्या का समाधान कर हमारी रक्षा करें।

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भगवान श्री राम ने सेना सहित किया लंका को कूच

विभीषण से कुंभकर्ण के पुत्र मूलकासुर की ओऱ से लंका की जनता पर किए जा रहे अत्याचार की बात सुन कर भगवान श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान जी संग अपनी सेना को लेकर लंका की तरफ चल पड़े। लंका पहुंच कर मूलकासुर संग युद्ध शुरु हो गया। भगवान श्री ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण मूलकासुर श्री राम की सेना पर भारी पड़ने लगा। तब भगवान श्री ब्रह्मा ने प्रकट हो कर श्री राम को बताया कि मैंने मूलकासुर का एक स्त्री के हाथों ही लिखा है। इसलिए आप व्यर्थ में समय न गंवाएं। आपको यह बता दूं। जब मूलकासुर को अपने सभी परिजनों के मारे जाने की जानकारी मिली। तो इसने साधु संतों के बीच जाकर कहा कि चंडी सीता के कारण ही मेरा कुल नष्ट हुआ। तब एक संत ने कहा कि जिसे तूने चंडी कहा है। वही सीता तेरी मौत बनेगी। इस कथन पर गुस्साए मूलकासुर ने संत को मार दिया। बाकि सभी संत वहां से डर के मारे चले गए। अब केवल सीता ही है। जो इसका वध कर सकती है। तब श्री राम ने पुष्पक विमान से देवी सीता को वहां लाने के लिए हनुमान जी से कहा। क्रोधित सीता के शरीर से निकली एक तामसी शक्ति तनिक भी विलंब न करते हुए युद्ध क्षेत्र में पहुंच गई।

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वहां विभीषण ने बताया कि इस मूलकासुर तंत्र साधना करने एक गुफा में गया हुआ है। श्री राम ने अपनी सेना को कहा कि वह गुफा में पहुंच कर मूलकासुर की सभी तांत्रिक क्रियाओं को नष्ट कर दें। तांत्रिक क्रियाएं नष्ट होने पर वह गुस्से में ही युद्ध मैदान पहुंच गया। सीता को सामने देख कर मूलकासुर ने कहा कि वह महिलाओं पर अपनी मर्दानगी नहीं दिखाएगा। तब छाया सीता ने कहा कि मैं तेरी मौत हूं। तूने मेरा पक्ष लेने वाले मुनियों को मार डाला। अब मैं इसका बदला चुकाउंगी। युद्ध शुरु हो गया। तब सीता ने चंडिकास्त्र चला कर मूलकासुर का वध कर दिया। मूलकासुर का सिर कट कर लंका के मुख्य द्वार पर जा गिरा। मूलकासुर का कटा सिर देख कर सेना डर कर भाग गई। तब छाया सीता दोबारा सीता माता के शरीर में प्रवेश कर गई। सीता माता की इस जीत पर सभी तरफ खुशी का माहौल पैदा हो गया। लंका में सब कुछ सामान्य होने पर श्री राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान संग वापिस अयोध्या लौट आए।

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