भगवान शिव के आंसू से बना पाकिस्तान में अमृत कुंड

-विश्व प्रसिद्ध रोमां संगीत की उत्पत्ति भी यही हुई

वंदना

भारतीय सनातन संस्कृति की छाप केवल भारत ही विश्व के कई देशों में आज भी सहज दिखाई देती है। देवों के देव महादेव की आंखों से निकले आंसू से बना अमृत कुंड आज पाकिस्तान के कटासराज में विद्यमान है। प्राचीन सात मंदिरों के समूह में केवल भगवान शिव, भगवान श्री राम और भक्त हनुमान जी के ही तीन से च्रार मंदिरों के अवशेष ही बचे हैं। इसके अलावा और भी मंदिरों की श्रृंखला है जो दसवीं शताब्दी के बताये जाते हैं।

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 मंदिर का पावन इतिहास 

कटास राज पाकिस्तान के पंजाब में चकवाल गांव से लगभग 40 किलोमीटर दूर नमक कोह पर्वत शृंखला में स्थित  है।  कुछ इतिहासकारों एवं पुरात्तव विभाग के अनुसार इस स्थान को शिव नेत्र माना जाता है। जब माँ पार्वती सती हुई थी। तब भगवान शिव बेहद दुखी हुए थे।  और उनकी आँखों से दो आंसू टपके थे। एक आंसू कटास पर और दूसरा आंसू भारत के अजमेर (राजस्थान) में टपका। जहां पर यह अमृत कुंड बन गए। कटासराज का यह मंदिर महाभारत काल (त्रेतायुग) में भी था।

मंदिर की  प्रचलित पौराणिक कथा 

कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव बनवास के दिनों में इन्ही पहाड़ियों में अज्ञातवास में रहे थे। और प्यास लगने पर पानी की खोज में यहां पहुंचे थे। इस कुंड पर यक्ष का अधिकार था।  सबसे पहले जब नकुल पानी लेने इस सरोवर पर आया और पानी में हाथ डालने लगा तो यक्ष ने आवाज़ दी और कहा कि इस पानी पर सिर्फ मेरा अधिकार है| इसे पीने की चेष्टा भी मत करना | अगर पानी पीना है, तो पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दो, लेकिन नकुल ने यक्ष कि बात को सुना अनसुना कर दिया और पानी पीने लगा। यक्ष को गुस्सा आ गया | उसने उसको मूर्छित कर दिया| ठीक इसी प्रकार सहदेव, अर्जुन व भीम चारों भाई एक एक करके पानी लेने गये, लेकिन कोई भी यक्ष के प्रश्नों का उत्तर नही दे सका। और पानी लेने का प्रयास किया। यक्ष ने चारों भाइयों को मूर्छित कर दिया। अंत में चारों भाइयों को खोजते हुए युधिष्ठिर कुण्ड के किनारे पहुंचा और चारों भाइयों को बेहोश पड़े देखा। तो वह बोला की मेरे भाइयों को जिसने बेहोश किया है। वह सामने आये| यह सुनकर यक्ष सामने आया और उसने कहा कि इन्होने बिना मेरे प्रश्नों का उत्तर दिए पानी लेना चाहा। इसलिए इनकी यह दुर्दशा हुई अगर तुम ने भी ऐसा व्यवहार किया तो तुम्हारा भी यही हाल होगा।

युधिष्ठिर ने विनम्रतापूर्वक कहा कि तुम्हारे द्वारा पूछे गए प्रश्नो का उत्तर जरूर दूंगा। अगर तुम मेरे  उत्तरों से सहमत हो गए।  तो तुम्हें मेरे इन भाइयों को वापिस जिंदा करना होगा। यक्ष ने यह शर्त मंजूर कर ली और कुछ प्रश्न पूछे।

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यक्ष ने पहला प्रश्न पूछा कि प्रसन्न कौन है?

युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि प्रसन्न वह व्यक्ति जो पांचवे छठे दिन घर में स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन पकाए।  जो ऋणी नहीं हो। और जो प्रवास में न रहता हो वही प्रसन्न है।

यक्ष का दूसरा प्रश्न था कि आश्चर्य क्या है?

युधिष्ठिर ने कहा कि हर रोज़ कई लोग मृत्यु को प्राप्त होते है| यह सब देखने के बावजूद भी संसार के प्राणी हमेशा जीवित रहने की कामना करते हैं | इससे बढ़कर आश्चर्य क्या होगा।

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यक्ष का तीसरा प्रश्न था कि मार्ग क्या है?

युधिष्ठिर ने कहा कि धर्म के विषय में महापुरूष जिस मार्ग का अनुसरण करते है। सबके लिए वही मार्ग चलने योग्य है।

यक्ष का चौथा प्रश्न था कि वार्ता क्या है?

युधिष्ठिर ने कहा कि महामोह रूपी कड़ाहे में, सूर्य रूपी आग से, रात दिन रूपी (ईंधन) से, मास ऋतु रूपी कड़छी के द्वारा यह काल प्राणियों को भोजन के सामान पका रहा है। सब इस बारे में बात करते है मगर फिर भी इस भाव सागर में फंस जाते हैं। यही वार्ता है।

इस प्रकार युधिष्ठिर ने अपने विवेक से यक्ष के सभी प्रश्नों के सही उत्तर दे दिए। यक्ष ने प्रसन्न होकर सभी पांडवों को जीवित कर दिया | पानी पीकर पांडव अपने गंतव्य स्थान की तरफ चल दिए।

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2200 सालों से ज्यादा पुराना है यह मंदिर

कटासराज मंदिर अपने उत्कर्ष काल में संगीत, कला और विद्या का बड़ा केंद्र था। उस वक़्त वहां पर लगभग दस हजार  विद्वान और कलाकार थे।  युधिष्ठिर ने भी यहां की सुंदरता की काफी तारीफ की थी। महाभारत में इसे द्वैतवन कहा गया। जो सरस्वती नदी के तट पर स्थित था। इसलिए सरस्वती नदी पर शोध करनेवालों का यह महत्वपूर्ण स्थान है। यह मंदिर 2200 साल प्राचीन बताया जाता है।

आज भी 150 फीट लंबे और 90 फीट चौड़े पवित्र सरोवर का पानी शीशे की तरह साफ दिखता है। हालांकि मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में है।  यहां पर बौद्ध स्तूप, जैन मंदिरों के अवशेष और सिख धर्म से जुड़े कुछ स्थल भी हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि यहां पर गुरु नानक देव जी और नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गोरखनाथ और प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूनसांग भी यहां आए थे|

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विश्व प्रसिद्ध रोमां संगीत का उत्पत्ति भी यही हुई

इतिहासकारों के अनुसार मंदिर का वैभव 11वीं सदी में महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद नष्ट हो गया|  आक्रमण के बाद भी प्राण और आजीविका बचाने के लिए कलाकारों को यहां से जाना पड़ा। क्योंकि उनको गुलाम बनाकर अरब देशों में बेच दिया जाता था। अरब पहुंचने वालों में से अधिकतर यूरोप चले जाते थे।  यह भी कहा जाता है कि यूरोप की जिप्सी या रोमां जाति के लोग उन्हीं कलाकारों के वंशज हैं। इनके संगीत को रोमां संगीत कहा जाता है| विश्व प्रसिद्ध रोमां संगीत का उत्पत्ति क्षेत्र भी यही माना जाता है| इनकी भाषा के शब्द भी हिंदी और संस्कृत से मिलते हैं| यूरोप में रोमां जाति के लोगों की संख्या बहुत हैं| ये सभी भारतवंशी हैं। जो भारत से प्रवास या अन्य कारणों से वहां गए थे| एक अनुमान के अनुसार उनकी लगभग संख्या 60 लाख से लेकर 2 करोड़ तक थी। पाकिस्तान सरकार द्वारा कटासराज मंदिर का जीर्णोद्धार कर  उसे यूनेस्को विरासत सूची में लाने का प्रयास किया जा रहा हैं।

कटासराज मंदिर संग विश्वविद्यालय भी

कटासराज मंदिर में एक विश्वविद्यालय भी था। जो दर्शनशास्त्र और बौद्ध अध्ययन का बड़ा केंद्र था| जब विदेशी आक्रमणों की वजह से तक्षशिला का पतन हुआ। तो नजदीक होने की वजह से बहुत सारे विद्वान तक्षशिला से सीधे  बैरागी विश्वविद्यालय आ गए थे। उस इलाके में विश्वविद्यालयों की एक लम्बी श्रृंखला थी। जो तक्षशिला, कटासराज से लेकर कश्मीर के शारदापीठ तक फैली हुई थी।

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पवित्र सेंधा नमक

कटासराज पाकिस्तान में साल्ट रेंज (नमक ) पहाडियों के पास है। वहां का सेंधा नमक आज भी पवित्र माना जाता है| छठी से आठवीं सदी के बीच कई राजाओं ने साल्ट रेंज में कई मंदिरों का निर्माण करवाया। जिसमें अम्बा माता मंदिर, नंदना किला, काफिरकोट मंदिर, कलार-कहार मंदिर, मलोट-बिलोट मंदिर के अवशेष आज भी मोजूद हैं|

मंदिर कैसे पहुंचे

भगवान शिव का कटासराज मंदिर पाकिस्तान के लाहौर से 280 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर बना हुआ है। यहां तक जाने के लिए बस और प्राइवेट कार टैक्सी का प्रबंध है। कटासराज मंदिर पाकिस्तान के सिंध प्रांत के चकवाल जिले में स्थित है।

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