किस मुसलमान के वंशजों ने ढूंडी थी भगवान की पावन गुफा…

-यहां पर ही माता पार्वती को महादेव ने बताया था अमरत्व का रहस्य
-शक्ति पीठ माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक
यह पूर्णतौर से सत्य है कि इस समूचे ब्रहांड के कण-कण में परमपिता परमात्मा का वास है। यह भी सत्य है कि सनातन धर्म सबसे प्राचीन हैं। इस धरती पर भी जगह-जगह पर देवों के देव महादेव, आदि शक्ति अपने विभिन्न रुपों में प्रकट होकर भक्तों के कष्टों का निवारण कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि देवों के देव महादेव भगवान शिव ने जिस गुफा में आदि शक्ति माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था उस गुफा को ढूंडने का श्रेय एक मुसलमान के वंशजों को जाता है। इस पावन गुफा को माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस पावन अमरनाथा गुफा में प्राकृतिक तौर से वनने वाले शिवलिंग के दर्शन करने मात्र से ही पापों का निवारण हो जाता है।

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कहां पर स्थित है पावन अमरनाथ की गुफा
हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थल भगवान श्री अमरनाथ की गुफा कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस गुफा की लंबाई 18 मीटर, चौड़ाई 16 मीटरऔर उंचाई 11 मीटर है। अमरनाथ की यह पावन गुफा भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। इसी पावन गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था।

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किस मुसलमान ने ढूंडी थी यह पावन अमरनाथ की गुफा
16वीं शताब्दी में बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गडरिया एक दिन भेड़ चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। स्वभाव से बेहद विनम्र औऱ दयालू बूटा मलिक की पहाड़ पर एक साधू से भेंट हुई। साधू ने बूटा को एक कोयले से भरी कांगड़ी (हाथ सेंकने वाला पात्र) प्रदान किया। बूटा उस कांगड़ी को घर ले आया। घर आकर जब उसने कांगड़ी को देखा तो उसमें कोयले के स्थान सोने के टुकड़े भरे हुए थे। बूटा साधू को धन्यवाद देने दोबारा उस पहाड़ी पर पहुंचा।. तो वहां पर साधु नहीं मिले। बूटा को को वहां पर एक गुफा दिखाई दी। बूटा मलिक उस गुफा में गया को वहां पर उसे विशाल सफेद चमकदार शिवलिंग दिया। उसने यह बात गांववालों को बताई। इसकी जानकारी मिलने के बाद लोगों ने इस गुफा में भोले बाबा के शिव लिंग के दर्शन करने शुरु कर दिए। बूट मलिक के वंशज आज भी इस गुफा की देखरेख करते आ रहे हैं। तब से इस गुफा की यात्रा जारी है।

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भगवान शिव ने माता पार्वती को यहां बताया था यह रहस्य
इस दुनिया में देवों के देव महादेव भोले शंकर अमर हैं। अमरत्व का रहस्य न जानने के कारण ही माता पार्वती का जन्म और मृत्य चक्र चलता रहा। जन्म और मृत्यु के चक्र को पार करती हुई ही माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त किया। भगवान शिव अपनी शक्ति को इसी रुप में वरण करत हैं। भगवन शिव ने इसी गुफा में माता को अमरत्व का रहस्य बताया था। रहस्य की जानकारी प्रदान करने से पहले भोले बाबा ने अपने गले से शेषनाग को शेषनाग झील पर, पिस्सूओं को पिस्सू टॉप, अनंत नागों को अनंत नाग, माथे के चंदन को चंदनवाड़ी पर उतारा था। अपने शरीर पर धारण सभी जीवों को खुद से दूर करने के बाद ही माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य प्रदान किया।

सफेद कबूतरों का जोड़ा है अमर
भोले बाबा की ओऱ से माता पार्वती अमरत्व को रहस्य प्रदान करने के समय एक सफेद कबूतरों का जोड़ा भी मौजूद रहा। इस रहस्य को पाने के बाद यह कबूतरों का जोड़ा भी अमर हो गया। मन्यता है कि कबूतर का यह जोड़ा जिस किस भी श्रद्धालू को दिखाई देता है, उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है।

 

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गुफा में अपने आप बनता है शिव लिंग
अमरनाथ की पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग खुद ही बनता है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इस शिवलिंग को स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों भक्त पहुंचते हैं। गुफा में उपर से पानी की बूंदें जगह-जगह पर टपक कर सफेद शिवलिंग का रुप धारण करती है। गुफा में टपकने वाली हिम बूंदों से दस फीट उंचा शिवलिंग बनता है। चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ ही इस बर्फ के शिवलिंग का आकार भी घटता और बढ़ता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है। अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा हो जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में अन्य जगहों पर पड़ी बर्फ कच्ची होती है। अमरनाथ शिवलिंग से कुछ फीट की दूरी पर सिद्धिविनायक भगवान श्री गणेश, माता पार्वती और काल भैरव के भी वैसे ही अलग-अलग हिमखंड निर्मित होते हैं।

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अमरनाथ गुफा तक जाने के हैं दो रास्ते
अमर नाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है। यह बहुत दुर्गम रास्ता है। सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। अधिकतर यात्री पहलगाम के रास्ते से पावन अमरनाथ गुफा के दर्शन करने जाते हैं। पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। चंदनबाड़ी से 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। शेषनाग झील करीब डेढ़ किलोमीटर लंबाई में फैली है। किंवदंति है शेषनाग झील में ही शेषनाग का वास है। चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर आकर भक्तों को दर्शन देते हैं।

प्रदीप शाही

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