एक ऐसा मंदिर जिसमें रात को रुकना मना है… इंसान बन जाता है पत्थर !!

भारत में कई रहस्यमयी स्थान हैं जो आज भी वहां घटित होने वाली घटनाओं के कारण चर्चा का विषय रहते हैं। इन रहस्यमयी स्थानों में मुख्य रूप से सदियों पुराने किले व मंदिर आते हैं। आपने भारत के राज्य राजस्थान के किलों के बारे में सुना होगा और इन किलों से जुड़ी रहस्यमयी और हैरान करने वाली कहानियां भी सुनी होंगी। लेकिन आज हम आपको राजस्थान में स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी जाता है वो पत्थर का बन जाता है। यह मंदिर किराडु मंदिर के नाम से विख्यात है। यह रहस्यमयी मंदिर राजस्थान के बाड़मेर में स्थित है। यह मंदिर राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर लोगों को अपनी ओर  आकर्षित तो करता है लेकिन इस मंदिर की सच्चाई जानकर कोई भी शाम होने के बाद इस मंदिर में रुकने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।

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यहां रुकने वाला इंसान बन जाता है पत्थर का!!

किराडू के मंदिर के बारे में लोगों का मानना है कि इस स्थान पर  शाम होने के बाद जो भी रुकता है वह पत्थर का बन जाता है या फिर मारा जाता है। लोगों का यह भी कहना है कि पत्थर बन जाने के डर से शाम होते ही यह सारा इलाका पूरी तरह से खाली को जाता है लेकिन यह भी हो सकता है कि सुनी-सुनाई बातों के चलते लोगों के मन में एक डर व वहम घर कर गया है। लेकिन इस मान्यता के पीछे कोई कहानी जरूर है जिसका प्रमाण इस मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव सिंहणी में मौजूद एक औरत की पत्थर की मूर्ति है।

मंदिर से जुड़ी कथा

इस मंदिर से एक कथा जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार कई साल पहले किराडू गांव में एक तपस्वी साधू का आगमन हुआ था। यह तपस्वी साधू अपने शिष्यों के साथ यहां पर आए थे। अपने साथियों व शिष्यों को इस स्थान पर छोड़कर वह तपस्वी साधू तीर्थों के दर्शनों के लिए चले गए । इस दौरान शिष्यों की सेहत खराब हो गई। उनकी सेहत खराब होने पर गांव वासियों ने उनकी किसी प्रकार की सहायता नहीं की । वापिस आने पर अपने शिष्यों की ऐसी हालत देखकर साधू ने गुस्से में आकर गांव वासियों को श्राप दिया कि तुम लोगों के दिल पत्थर के हैं जिन्हें बिमार लोगों पर दया नहीं आई, इस लिए तुम सब लोग पत्थर के हो जाओ।

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आज भी मौजूद है कुम्हारन की मूर्ति

इसी गांव में एक कुम्हारन भी रहती थी। उसने साधू के शिष्यों की पूरी मदद व सेवा की थी। तपस्वी साधू ने केवल उस महिला पर ही दया की और कहा कि तुम यहां से चली जाओ लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि जाते समय पीछे मुड़कर मत देखना। कहते हैं कि वहां से जाने के बाद कुम्हारन के मन में साधू की कही बात को लेकर संदेह हुआ और जैसे ही उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह पत्थर की बन गयी। मंदिर के नज़दीक के सिहणी नामक गांव में कुम्हारन की पत्थर की मूर्ति आज भी मौजूद है। इस श्राप के कारण ही लोगों में डर है कि जो इस स्थान पर रात के समय रुकेगा, वह इंसान भी पत्थर का बन जाएगा।

मंदिर के निर्माण काल की नहीं है सटीक जानकारी

इस मंदिर का निर्माण किसने करवाया इस के बारे में कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते। लेकिन फिर भी इस स्थान पर विक्रम संवत 12 के तीन शिलालेख देखने को मिलते हैं। पहला शिलालेख गुजरात के चालुक्य कुमार पाल के समय का है और विक्रम संवत 1209 से संबंधित है। दूसरा शिलालेख विक्रम संवत 1218 यानि 1161 ई. का है इस शिलालेख पर परमार सिंधुराज से लेकर सोमेश्वर तक की वंशावली का वर्णन किया गया है। तीसरा शिलालेख विक्रम संवत 1235 से संबंधित है जो गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय के सामन्त चैहान मदन ब्रह्मदेव का है। इतिहासकारों का मानना है कि किराडु मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था और इसका निर्माण परमार वंश के राजा दुलशालराज और उनके वंशजों के द्वारा करवाया गया था।

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बड़ी संख्या में आते हैं पर्यटक

चाहे यह मंदिर पुराना हो चुका है और विरान पड़ा है। लेकिन आज भी बड़ी संख्या में लोग इस प्राचीन धरोहर की भव्यता और शान को देखने के लिए आते हैं। जो आज भी अपने अंदर कई तरह के राज और रहस्य दबाए बैठा है और इंसानों के पत्थर में बदलने वाली सच्चाई को जानने के लिए आज भी लोगों के दिलों में जिज्ञासा ज्यों की त्यों है।

धर्मेन्द्र संधू

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