महाभारत कालीन इस मंदिर में समुद्र की लहरें करती हैं…शिवलिंग का जलाभिषेक

भगवान भोलेनाथ का साक्षात रूप माने जाने वाले अदभुत शिवलिंग पूरे भारत में स्थापित हैं। इन शिवलिंगों से कोई ना कोई प्राचीन कथा जुड़ी हुई है। कुछ शिवलिंग अति प्राचीन हैं तो कुछ अपने चमत्कारों के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही प्राचीन शिव मंदिर के बारे में जानकारी देंगें जो समुद्र में स्थित है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंगों का जलाभिषेक समुद्र की लहरों द्वारा होता है। इस प्राचीन मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है।

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निष्कलंक महादेव

निष्कलंक महादेव मंदिर गुजरात के भावनगर में स्थित है। यह प्राचीन मंदिर कोलियाक तट से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्तिथ है। इस मंदिर में पांच स्वयंभू शिवलिंग मौजूद हैं। इस स्थान पर अरब सागर की लहरें रोजाना यहां स्थापित शिवलिंगों का जलाभिषेक करती हैं।

पानी में जाकर होते हैं भोलेनाथ के दर्शन

इस मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को पानी में पैदल चलकर जाना पड़ता है। खास बात यह है कि  इस मंदिर तक पहुंचने के लिए ज्वार के उतरने यानि पानी के कम होने का इंतजार करना पड़ता है। पानी ज्यादा होने पर केवल मंदिर का झंडा और खम्भा ही दिखाई देता है। इस समय कोई सोच भी नहीं सकता कि इस समुद्र में पानी की नीचे भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी हो सकता है।

महाभारत काल से जुड़ा है मंदिर का इतिहास

समुद्र में स्थित इस प्राचीन मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महाभारत के युद्ध में पांडवों ने कौरवों को मारकर युद्ध जीता था। युद्ध समाप्त होने पर पांडव यह सोचकर व्याकुल हो गए कि उन्होंने अपने ही सगे-संबंधियों को मार गिराया है। इस हत्या का उन्हें पाप लगेगा। इस के बाद पाप से छुटकारा पाने व पश्चाताप करने के लिए पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण को मिलकर अपनी व्यथा सुनाई। इस पाप से मुक्ति पाने के के लिए श्री कृष्ण ने पांडवों को एक काला ध्वज यानि झंडा और एक काली गाय दी। साथ ही पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा और यह भी बताया कि जब ध्वज और गाय का रंग काले से सफेद हो जाए तो आपको इस पाप से मुक्ति मिल जाएगी। भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को यह भी बताया कि जिस स्थान पर यह सारा कुछ घटित हो उसी स्थान पर भगवान शिव की साधना भी करना।

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इस स्थान पर हुआ था गाय व ध्वज का रंग सफेद

पांडव भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा के अनुसार काले ध्वज और काली गाय का अनुसरण करने लगे। इसलिए पांडव कई दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर गए किन्तु गाय और ध्वज का रंग काला ही रहा। जब पांडव गुजरात में स्थित इस स्थान पर पहुंचे जहां पर वर्तमान समय में निष्कलंक महादेव मंदिर है, तो गाय का और ध्वज का रंग काले से सफेद हो गया। इसी स्थान पर पांडवों ने भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या भी की।

भगवान शिव ने पांडवों को दिए थे लिंग रूप में दर्शन

पांडवों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने  पांचो पांडवों को लिंग रूप में अलग-अलग रूप से दर्शन दिए। यह पांचों शिवलिंग आज भी इस स्थान पर स्थापित हैं। इस स्थान पर पांडवो को पाप व कलंक से मुक्ति मिलने के कारण ही इसे निष्कलंक महादेव कहते है। इन शिवलिंगों के सामने नंदी जी बिराजमान हैं। इस स्थान पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी है जिसे पांडव तालाब के नाम से जाना जाता है। इसी तालाब में श्रदालु अपने हाथ पैर धोते हैं। फिर बाद में शिवलिंगो की पूजा करते हैं।

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इस स्थान पर होती है मोक्ष की प्राप्ति

लोगों मानना है कि इस स्थान पर स्थापित शिवलिंग पर अपने किसी प्रियजन की चिता की राख लगाकार जल में प्रवाहित करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। निष्कलंक महादेव मंदिर में भगवान शिव को दूध, दहीं, नारियल और राख चढ़ाई या अर्पित की जाती है।

अमावस्या पर लगता है भाद्रवी मेला

निष्कलंक महादेव मंदिर में भादवे महीने की अमावस्या को मेला लगता है जिसे भाद्रवी मेला कहा जाता है। इसके अलावा प्रत्येक अमावस्या को बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस स्थान पर भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आते हैं। खासकर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन ज्वार अधिक सक्रिय होता है इसके बावजूद श्रद्धालु पूरी श्रद्धा से ज्वार के उतरने का इंतज़ार करते हैं।

महाराजा के वंशजों द्वारा पताका फहराने पर शुरू होता मेला

हर साल लगने वाले ‘भाद्रवी’ मेले की शुरूआत भावनगर के महाराजा के वंशजो द्वारा मंदिर में पताका फहराने से होती है। यही पताका अगले साल आने वाले मेले तक फहराती रहती है। हैरानी की बात यह है कि पूरा साल पताका को किसी प्रकार का कोई भी नुकसान नहीं होता। इसका प्रमाण 2001 में आया विनाशकारी भूकम्प है जिसमें यहाँ पर 50000 के करीब लोग मारे गए थे।

धर्मेन्द्र संधू

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