इस मंदिर में होती है विशेष पूजा…राहु-केतु का प्रभाव होता है खत्म

भगवान भोलेनाथ की महिमा को कौन नहीं जानता। भोलेनाथ अपने भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। पूरे भारत में भगवान शिव की आराधना की जाती है। भगवान शिव को समर्पित मंदिरों में रोज़ाना आस्था का सैलाब उमड़ता है। आज हम आपको एक ऐसे ही प्राचीन शिव मंदिर के बारे में जानकारी देंगे, जिसका वर्णन कई धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। यह मंदिर दक्षिण भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है जो प्रसिद्ध तीर्थस्थल तिरुपति बाला जी के नजदीक स्थित है। 

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श्री कालहस्ती मंदिर

श्रीकालहस्ती शिव मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में स्थित है। यह  मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर मौजूद है। इस स्थान को दक्षिण कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के पीछे तिरुमलय की पहाड़ी दिखाई देती हैं। मंदिर के अंदरूनी भाग का निर्माण 5वीं शताब्दी में हुआ था और साथ ही बाहरी भाग का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया है। मंदिर के तीन विशाल गोपुरम हैं और सौ स्तंभों वाला मंडप विशेष दर्शनीय है। इस सौ स्तंभों वाले मंडप का निर्माण 1516 में राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल में हुआ था। मंदिर में सस्त्रशिवलिंग भी स्थापित है। इसके अलावा भगवान कालहस्तीश्वर के साथ देवी ज्ञानप्रसूनअंबा की प्रतिमा मुख्य मंदिर के बाहर स्थापित है। कहा जाता है कि 10वीं शताब्दी के दौरान चोल वंश के शासक ने इस मंदिर के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी ली। चोल वंश के साथ ही विजयनगर के शासकों ने भी इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया।

मंदिर से जुड़ी कथा

मान्यता है कि इस स्थान का नाम तीन जंतुओं – श्री मतलब मकड़ी, काल मतलब सर्प और हस्ती मतलब हाथी के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि इन तीनों ने इसी स्थान पर भगवान शिव की आराधना की थी और मुक्ति पाई थी। इनमें से मकड़ी ने तपस्या करते हुए शिवलिंग पर जाल बनाया था साथ ही सांप ने शिवलिंग से लिपटते हुए तप किया था। इनके अलावा हाथी ने शिवलिंग का जल से अभिषेक किया था। इस मंदिर में इन तीनों की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं।

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श्री कालहस्ती मंदिर से जुड़ी अन्य कथा

मान्यता है कि भगवान शिव यहाँ स्वयं प्रकट हुए थे, इस लिए इसे जागृत मंदिर भी कहा जाता है । कथा के अनुसार एक बार कुछ भक्त शिवलिंग की पूजा कर रहे थे कि अचानक शिव लिंग से खून बहने लगा। इसे देख लोग हैरान रह गए। इस पर एक आदिवासी कन्नपा ने अपनी एक आंख निकालकर भगवान शिव को भेंट कर दी, वह दूसरी आंख भी निकालकर रखने ही वाला था कि भगवान शिव स्वयं प्रकट हो गए और कन्नपा को दूसरी आंख निकालने से रोक दिया। कहते हैं कि उसी समय से ही भगवान शिव स्वयं इस स्थान पर निवास करते हैं। 

 पुराणों में भी है मंदिर का उल्लेख

श्रीकालहस्ती मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण इस बात से मिलता है कि इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी देखने को मिलता है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि पांडव अर्जुन ने श्री कालहस्तीश्वर के दर्शन किए थे और इसके बाद उन्होंने भारद्वाज मुनि के दर्शन भी किए थे। इस स्थान पर राहुकाल से संबंधित पूजा का विशेष महत्व है। इसी स्थान पर प्राचीन काल में कणप्पा नामक एक आदिवासी ने भी भगवान शिव की आराधना की थी।

चार बार होती है पूजा

इस मंदिर में शैव पंथ के नियमों के अनुसार ही पूजा-अर्चना की जाती है। रोज़ाना पूरे विधि-विधान के साथ दिन में चार बार पूजा होती है। सबसे पहले सुबह 6 बजे कलासंथी, 11 बजे उचिकलम, शाम 5 बजे सयाराक्शाई और रात को एक बार फिर पजा करने का विधान है।

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प्रमुख त्योहार

वैसे तो सारा साल ही देश और विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए आते हैं। लेकिन इस मंदिर में शिवरात्रि का पावन पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। मुख्य रूप से यहां पर महाशिवरात्रि ब्रह्मोत्सवम मनाया जाता है जो 13 दिन तक चलता है । इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों को एक वाहन में बिठाकर विशाल शोभा यात्रा का आयोजन किया जाता है। 

राहु-केतु के लिए होती है विशेष पूजा

व्यक्ति की कुंडली में अगर राहु केतु हों तो उसे कठिनाईयों और मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए श्री कालहस्ती शिव मंदिर में विशेष पूजा की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन के अलावा यहां पर रोजाना सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक राहु-केतु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव की कृपा से यहां पूजा करवाने से राहु-केतु का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है।

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धर्मेन्द्र संधू

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