ऐसे करें भगवान का जप , पूरी होगी मनोकामना

हिन्दू धर्म में जप का विशेष महत्व है। प्राचीन समय से ही जप भारतीय संस्कृति व हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग रहा है। प्राचीन ऋषि-मुनि अपनी साधना के दौरान जप को खास महत्व देते थे।
जप मुख्य रूप से माला के द्वारा किया जाता है। जप के लिए रुद्राक्ष की माला प्रयोग किया जाता है। लेकिन आजकल बाज़ार में कई प्रकार की मालाएं उपलब्ध हैं। जप के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली माला में विशेष रूप से 108 मनके होते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि जप करने वाली माला में 108 मनके या मोती ही क्यों होते हैं ? आज हम आपको बताएंगे कि इसके पीछे धार्मिक, ज्योतिष व वैज्ञानिक आधार क्या हैं ?

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रुद्राक्ष की माला का है खास महत्व
जप के लिए रुद्राक्ष की माला का खास महत्व है। रुद्राक्ष को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। रुद्राक्ष सकारात्मक उर्जा को ग्रहण कर जप करने वाले के शरीर में पहुंचाता है। रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद कीटाणुओं का नाश भी करता है।
माला में किसे कहते हैं ‘सुमेरु’ ?
माला के 108 मनकों से पता चलता है कि जप कितनी बार हुआ। माला में एक स्थान पर एक बड़ा मनका होता है जिसे ‘सुमेरु’ कहते हैं। सुमेरु का इस लिए विशेष महत्व है क्योंकि माला का जप सुमेरु से आरम्भ होता है। मान्यता के अनुसार सुमेरु को लांघा नहीं जाता। सुमेरु पर पहुंचने पर ही एक चक्कर पूरा होता है। एक चक्कर पूरा होने पर सुमेरु को मस्तक से लगाया जाता है और वहीं से दूसरा चक्कर आरम्भ होता है। ब्रह्मांड में सुमेरु की स्थिति सर्वोच्च मानी जाती है।

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धार्मिक आधार
हिन्दू मान्यता के अनुसार माला से जप करने से अक्ष्य पुण्य की प्राप्ति होती है। सूर्य की कलाओं व माला के 108 मनकों में गहरा संबंध माना जाता है। एक साल में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और साथ ही साल में दो बार सूर्य की स्थिति में भी परिवर्तन होता है। छह महीने उत्तरायण काल रहता है और छह महीने तक दक्षिणायन काल रहता है। इस कारण सूर्य की एक स्थिति में 216000 का आधा भाग यानि 108000 बार परिवर्तन होता है। छह महीने की इन कलाओं के आखिरी तीन शून्य हटाकर जप के लिए माला के 108 मनकों का निर्धारण किया गया है। शिव पुराण में कहा गया है कि माला का अंगूठे से जप करने से मोक्ष की प्राप्ति और तर्जनी से शत्रुनाश होता है। मध्यमा से धन की प्राप्ति होती है और साथ ही अनामिका से शांति मिलती है

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108 की संख्या मानी जाती है शुभ
108 की संख्या को ऋषि-मुनियों ने शुभ माना है। क्योंकि ऋषि-मुनियों ने नक्षत्रों की संख्या 27 मानी है। और प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण माने जाते हैं। गुणा करने के बाद इसका गुणनफल भी 108 आता है। इस लिए 108 को खास महत्व दिया जाता है। बड़े-बड़े धर्मात्माओं व जगदगुरुओं के नाम के आगे 108 को सम्मान के रूप में लगाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार एक सामान्य इंसान 24 घंटे में लगभग 21600 बार सांस लेता है। 24 में से 12 घंटे दिन चर्या में निकल जाते हैं और बाकी बचते हैं 12 घंटे। इस हिसाब से एक इंसान 12 घंटों में 10800 बार सांस लेता है। इस लिए कहा जाता है कि इंसान को 12 घंटों में 10800 बार भगवान का स्मरण करना चाहिए। लेकिन आज की भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में इतनी बार स्मरण करना मुमकिन नहीं है। इस लिए 10800 की संख्या से पीछे के दो शून्य हटाकर जप करने के लिए 108 संख्या का निर्धारण किया गया है।

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ज्योतिष के आधार पर
ज्योतिष के अनूसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों को ‘राशि’ कहा जाता है। साथ ही 9 ग्रहों की चर्चा भी की गई है। और अगर 12 राशियों व 9 ग्रहों को आपस में गुणा किया जाए तो 108 की संख्या प्राप्त होती है।

धर्मेन्द्र संधू

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