देवी-देवताओं ने क्यों बनाया जीवों को अपना वाहन ?

भारतीय धर्म व संस्कृति में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। भारत में भगवान के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। पुराणों व धार्मिक ग्रन्थों में कई प्रकार के देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है। इन ग्रन्थों में यह भी बताया गया है कि कौन से देवी या देवता को कौन सा पुष्प, कौन सा भोग व कौन सा रंग पसंद है। यहां तक कि भारत में पूजे जाने वाले देवी-देवताओं के विभिन्न वाहनों का उल्लेख भी पुराणों व ग्रन्थों में मिलता है। आप ने अकसर देखा होगा कि देवी-देवताओं की जो तस्वीरें व मूर्तियां मंदिरों व घरों प्रतिष्ठित की जाती हैं उनमें यह देवी-देवता किसी ना किसी वाहन पर सवार होते हैं। देवी-देवताओं के यह वाहन विशेष रूप से पशु-पक्षी होते हैं। मां दुर्गा के वाहन शेर से लेकर भगवान विष्णु के वाहन गरूड़ तक सभी देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षी ही है। इनके यह वाहन इनके स्वभाव के अनुसार ही है। आज हम चर्चा करेंगे कि देवी-देवताओं ने अपने लिए इन विशेष वाहनों का चुनाव ही क्यों किया ? इसके पीछे क्या रहस्य व राज है ? जीवों को ही क्यों चुना अपना वाहन?

देवी-देवताओं के वाहन देते हैं जीवों की रक्षा का संदेश

जीवों को देवी-देवताओं के साथ जोड़ना प्रतीक रूप में जीवों की रक्षा का संदेश देना है। क्योंकि इस प्रकार मानव के मन में जीवों के प्रति श्रद्धा व दया भाव जागृत होता है। और जीवों के प्रति हिंसा कम होती है।

भगवान गणेश का वाहन मूषक

भगवान गणेश मूषक की सवारी करते हैं। मूषक शब्द संस्कृत के मूष शब्द से बना है। इसका अर्थ होता है चुराना। मूषक मानव के मन का प्रतीक है और मानव के मन में स्वार्थ ने पूरी तरह से घर किया हुआ है। भगवान गणेश का मूषक यानि चूहे पर सवारी करना प्रतीक रूप में स्वार्थ पर विजय पाना है और मानव को सदबुद्धि प्रदान करना है।

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भगवान शिव का वाहन नंदी बैल

भगवान शिव के वाहन नंदी बैल का स्वभाव भी भोले नाथ के अनुसार ही है। नंदी बैल ताकतवर व बेहद शक्तिशाली होने के बाद भी शांत स्वभाव का प्राणी है। इसका स्वभाव भी भगवान शिव से मिलता है। भगवान शिव भी शक्तिशाली व ताकतवर होने के बावजूद शांत स्वभाव के हैं। लेकिन जब वह गुस्से में होते हैं तो उन्हें शांत करना मुश्किल होता है। सफेद रंग के नंदी बैल स्वच्छता व शांति का प्रतीक है । नंदी के चार पैर दया, दान, क्षमा व तप के प्रतीक हैं।

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मां दुर्गा का वाहन शेर

मां दुर्गा को शक्ति माना जाता है और मां दुर्गा का वाहन शेर भी बल , गुस्से व शक्ति का प्रतीक है। यही गुण मां दुर्गा के स्वभाव में भी विद्यमान हैं। शेर की दहाड़ सबसे तेज़ मानी जाती है और इसी प्रकार मां दुर्गा की हुंकार के आगे कोई भी ध्वनि टिक नहीं पाती।

मां सरस्वती का वाहन हंस

मां सरस्वती हंस पर बिराजमान होती हैं। मां सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है। हंस जिज्ञासा का प्रतीक है। मां सरस्वती का हंस की सवारी करना इस ओर संकेत करता है कि ज्ञान के द्वारा ही जिज्ञासा का शमन किया जा सकता है।

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मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू

धन की देवी लक्ष्मी उल्लू पर सवार होती हैं। उल्लू शुभता व संपत्ति का प्रतीक है। उल्लू रात के समय का जीव है । प्रतीक रूप में मां लक्ष्मी की कृपा मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है।

भगवान विष्णु करते हैं गरुड़ की सवारी

गरुड़ भगवान विष्णु की सवारी है। भगवद गीता में कहा गया है कि भगवान विष्णु में ही सम्पूर्ण संसार समाया है। भगवान विष्णु का बड़े आकार का वाहन पक्षी गरुड़ भी इसी ओर संकेत करता है।

भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर या मयूर

भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर या मयूर है। यह वाहन भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को भेंट किया था। एक कथा के अनुसार कार्तिकेय की साधना व तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को मोर रूपी वाहन भेंट किया। यह वाहन कार्तिकेय के चंचल मन को नियंत्रित करने की ओर संकेत करता है क्योंकि मोर स्वयं चंचलता का प्रतीक है।

श्री कृष्ण और गाय

चाहे भगवान श्री कृष्ण को गाय की सवारी करते हुए नहीं दर्शाया गया लेकिन फिर भी गाय का श्री कृष्ण से अटूट संबंध है। शायद इसके पीछे का कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से भगवान श्री कृष्ण का संबंध स्थापित करना है।

धर्मेन्द्र संधू

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