आश्चर्य ! भगवान श्री कृष्ण के अर्जुन और दुर्योधन से थे पारिवारिक संबंध …

-श्री कृष्ण के बेटे सांब, दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा ने किया था प्रेम विवाह

-अर्जुन थे श्री कृष्ण के बहनोई और श्री कृष्ण थे दुर्योधन के समधी

हमारे पौराणिक ग्रंथों में कई प्रेम कथाओं का उल्लेख है। प्रेम कथाओं में धोखा या सफलता मिलना एक सिक्के के ही दो पहलू हैं। कई प्रेम कथाओं में तो इंसान अपना प्रेम हासिल करने के लिए दुनिया से भी टकराने का हौंसला रखता है। महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण की ओर से रुक्मिणी को हासिल करने के लिए पूरी सेना से टकरा विवाह करना सर्वविदित है। वहीं दूसरी तरफ श्री कृष्ण के सुपुत्र सांब भी अपने पिता की तरह की अपना प्रेम पाने के लिए पूरी सेना से टकरा गए थे। आईए, आज आपको महाभारत काल के कुछ अनोखे और दिलचस्प पारिवारिक संबंधों के रहस्य से अवगत करवाते हैं। यह सच है अर्जुन थे श्री कृष्ण के बहनोई और श्री कृष्ण थे दुर्योधन के समधी। । यह संबंध कैसे बने। इस बारे आपको अवगत करवाते हैं।

अर्जुन कैसे बने श्री कृष्ण के बहनोई
महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण यदि सबसे अधिक किसी से प्यार करते थे, तो वह थे अर्जुन। अर्जुन के प्यार के चलते ही श्री कृष्ण ने युद्ध में उसका सारथी बनना स्वीकार किया था। अर्जुन उनके प्रिय सखा थे। अपने प्रिय सखा अर्जुन के साथ ही उन्होंने प्यारी बहन सुभद्रा का विवाह करवाया था। इस तरह अर्जुन उनके बहनोई बन गए थे।

श्री कृष्ण न चाहते हुए भी दुर्योधन के बने समधी
महाभारत काल में एक एेसी घटना का उल्लेख है। जो बेहद दिलचस्प है। वह है श्री कृष्ण की नपंसदगी के बावजूद उनके बेटे सांब और कौरव कुल के ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा के विवाह की। श्री कृष्ण अपने बेटे के कारण मजबूरन कौरव दुर्योधन से समधी के रुप में एक मजबूत रिश्ते की डोर में बंधे हुए थे। सच्चाई यह भी है कि इस प्रेम विवाह में दोनों पक्षों भगवान श्री कृष्ण और दुर्योधन की सहमति नहीं थी।

 


सांब और लक्ष्मणा ने किया प्रेम विवाह
दुर्य़ोधन की बेटी राजकुमारी लक्ष्मणा और श्री कृष्ण व रुक्मिणी के बेटे सांब एक दूसरे से प्रेम करते थे। अपने पिता श्री कृष्ण की असहमति के बावजूद सांब ने लक्ष्मणा को उसकी स्वयंवर में से हरण कर लिया। स्वयंवर में से लक्ष्मणा के हरण की बात जब कौरवों को पता चली तो उन्होंने सांबं को घोर लिया। कौरवों व सांब में भयंकर युद्ध हुआ। परंतु सांब को कौरवों ने बंदी बना लिया। तब यादवों से सलाह कर कृष्ण ने हस्तिनापुर पर हमला करने का फैसला लिया। परंतु श्री कृष्ण के बड़े भार्इ बलराम ने उन्हें रोकते हुए कहा कि दुर्योधन को गदा का प्रशिक्षण दिया। इस नाते वह उनके शिष्य हैं। वह गुरू होने के नाते बिना युद्घ के ही सांब को छुड़ा लाएंगे। बलराम जब हस्तिनापुर पहुंचे तो उनका विश्वास गलत निकला। कौरवों ने दुर्योधन के सामने ही उनका अपमान किया। इस पर बरलाम ने कौरवों के अहंकार को तोड़ उन्हें सबक सिखाने का फैसला किया। बलराम ने अपने हल से समूचे हस्तिनापुर को उखाड़ दिया। और उसे गंगा नदी में प्रवाहित करने के लिए ले जाने लगे। इस पर दुर्योधन ने अपने भार्इयों की तरफ से बलराम से क्षमा मांग कर लांब और लक्ष्मणा के विवाह को स्वीकृति दे दी। इस तरह न चाहते हुए भी दुर्योधन और श्रीकृष्ण समधी बन गए।

प्रदीप शाही

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