50 सालों में पूरा हुआ था इस विशाल जैन मंदिर का निर्माण कार्य

भारत एक धर्म निरपक्ष देश है। भारत में हर धर्म का सम्मान किया जाता है। भारत में प्रत्येक धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं इसलिए देश में हर धर्म से संबंधित धार्मिक स्थल मौजूद हैं। पूरे भारत में कई जैन मंदिर स्थित हैं। आज हम आपको भगवान ऋषभदेव से संबंधित चतुर्मुखी जैन मंदिर के बारे में बताएंगें। यह मंदिर  बनावट के आधार पर भारत के अन्य जैन मंदिरों से भव्य व विशाल है। चतुर्मुखी जैन मंदिर राजस्थान में स्थित है। यह मंदिर अरावली की पहाड़ियों के बीच में स्थित है और चारों ओर से जंगल से घिरा हुआ है। इस मंदिर को रणकपुर मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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मंदिर में स्थापित हैं चार मूर्तियां

उदयपुर से 96 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रणकपुर मंदिर में 4 प्रवेश द्वार हैं। इस मंदिर के मुख्य गृह में तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से निर्मित 4 विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। इन मूर्तियों की ऊंचाई 72 इंच के करीब है। इन मूर्तियों के मुंह चारों दिशाओं की ओर हैं। इन मूर्तियों के कारण ही इस मंदिर को चतुर्मुखी जैन मंदिर के नाम से जाना जाता है।

50 सालों में पूरा हुआ था मंदिर का निर्माण कार्य

चतुर्मुखी जैन मंदिर का निर्माण लगभग 40,000 वर्गफीट में किया गया है। कहा जाता है कि तकरीबन 600 वर्ष पहले यानि 1446 विक्रम संवत में इस मंदिर के निर्माण कार्य की शुरूआत हुई थी। और यह निर्माण कार्य लगभग 50 वर्षों से ज्यादा समय तक जारी रहा। इस भव्य मंदिर के निर्माण कार्य पर उस समय 99 लाख रुपए के करीब खर्च किया गया था। इस मंदिर में एक संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिह्नों के दर्शन भी होते हैं।

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मंदिर की बनावट है आकर्षण का केन्द्र

इस विशाल मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। इस मंदिर में 76 के करीब गुम्बदनुमा पावन स्थान हैं। इसके अलावा इस मंदिर में 4 बड़े प्रार्थना कक्षों के साथ ही 4 बड़े पूजा स्थल भी बने हुए हैं। इस मंदिर में 1,444 के करीब खंभे हैं इन खंभों की मुख्य विशेषता यह है कि इतनी बड़ी संख्या में खंभे होने के बावजूद पूरी तरह से मुख्य स्थान के दर्शन होते हैं और दर्शनों में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं होती। इन खंभों पर की गई सुंदर नक्काशी सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसके अलावा मंदिर की छत पर भी बेहतरीन नक्काशी देखने को मिलती है। मंदिर में कई तहखाने भी बने हुए हैं।

चार श्रद्धालुओं ने करवाया था मंदिर का निर्माण

रणकपुर मंदिर का निर्माण आचार्य श्यामसुंदरजी, धरन शाह, कुंभा राणा तथा देपा नामक 4 श्रद्धालुओं द्वारा करवाया गया था। कुंभा राणा मलगढ़ के राजा थे और धरन शाह राजा के मंत्री थे। साथ ही आचार्य श्यामसुंदर एक धार्मिक नेता थे।  मान्यता है कि धरन शाह को रात को एक स्वप्न आया जिसमें उन्हें ‘नलिनीगुल्मा विमान’ के दर्शन हुए। यह विमान बाकी पावन विमानों में से सबसे अधिक सुंदर माना जाता है। इसके बाद ही धरन शाह ने मंदिर बनवाने के बारे में सोचा और इस मंदिर के निर्माण के लिए कई वास्तुकारों को बुलाया गया लेकिन अंत में  मुंदारा से आए एक वास्तुकार दीपक की योजना पसंद आने पर उस साधारण से वास्तुकार को इस भव्य मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी दी गई।

कुंभा राणा के नाम पर पड़ा ‘रणकपुर’ का नाम

इस मंदिर के निर्माण के लिए मलगढ़ नरेश कुंभा राणा ने जमीन दी थी। और साथ ही उन्होंने मंदिर के नज़दीक एक नगर बसाने की बात भी कही। मंदिर के नज़दीक मदगी नामक गांव में ही मंदिर का निर्माण किया गया और इसी स्थान पर ही एक नगर भी बसाया गया। कुंभा राणा के नाम पर ही इस नगर को ‘रणपुर’ नाम दिया गया और बाद में यह नगर ‘रणकपुर’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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कैसे पहुंचें

राजस्थान का उदयपुर शहर विश्व प्रसिद्ध शहर है। उदयपुर से रणकपुर 96 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उदयपुर से बस व टैैक्सी द्वारा इस स्थान तक पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर का नज़दीकी रेलवे स्टेशन उदयपुर है। साथ ही नज़दीकी एयर पोर्ट भी उदयपुर ही है। विक्रम संवत 1953 में चतुर्मुखी जैन मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी एक ट्रस्ट को दी गई थी।

धर्मेन्द्र संधू

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