-भगवान श्री गणेश की प्रतिमा पर मौजूद हैं चोट का निशान
प्रथम पूज्य सिद्धि विनायक भगवान श्री गणेश को एक बार देवताओं की सहायता करने का खामियाजा भुगतना पड़ा। यह खामियाजा लंकापति रावण के भाई विभीषण के चलते भुगतना पड़ा। मंदिर में आज भी भगवान गणेश जी के सिर पर चोट लगी प्रतिमा प्राण-प्रतिष्ठित है। आईए, आज आपको इस बारे जानकारी प्रदान करते हैं। आखिर एेसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई।
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कहां पर स्थित है यह मंदिर
तमिलनाडू के तिरुचिरापल्ली (त्रिचि) नामक स्थान पर रॉक फोर्ट पहाड़ी की चोटी पर उच्ची पिल्लयार मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर धरती से लगभग 273 फीट उंचाई पर स्थित है। पर्वत पर स्थापित मंदिर में भगवान श्री गणेश जी के दर्शन करने के लिए करीब 400 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। मान्यताओं के अनुसार तिरुचिरापल्ली पहले थिरिसिरपुरम के नाम से जाना जाता था। थिरिसिरन नाम के राक्षस ने इस जगह पर भगवान शिव की तपस्या की थी। इसी कारण इसका नाम थिरिसिरपुरम रखा गया। यह भी माना जाता है कि इस पर्वत की तीन चोटियों पर तीन देव विराजमान है। पहली चोटी पर भगवान शिव, दूसरी माता पार्वती और तीसरी चोटी पर श्री गणेश (ऊंची पिल्लयार ) विराजमान हैं। पहले इसे थिरि सिकरपुरम कहा जाता है। बाद में थिरिसिकरपुरम को बदल कर थिरिसिरपुरम कर दिया गया।
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आखिर क्यों…भगवान श्री गणेश पर विभीषण ने किया वार
कहा जाता है कि लंकापति रावण का वध करने के बाद भगवान श्री राम ने अपने भक्त और रावण के छोटे भाई विभीषण को भगवान विष्णु जी के एक रूप रंगनाथ की मूर्ति भेंट की। विभीषण उस पावन मूर्ति लेकर लंका जाने वाला था। विभीषण के राक्षस कुल से संबंधित होने के कारण सभी देवता नहीं चाहते थे कि यह मूर्ति विभीषण अपने साथ लंका ले जाए। तब सभी देवताओं ने भगवान श्री गणेश से इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की। इस मूर्ति को लेकर यह मान्यता थी कि उसे जिस जगह पर रख दिया जाएगा, वह हमेशा के लिए उसी जगह पर स्थापित हो जाएगी। विभीषण प्रतिमा लेकर त्रिचि पहुंच गया। तो वहां पर कावेरी नदी को देखकर उसमें स्नान करने की मन में इच्छा बलवती हुई। मूर्ति संभालने के लिए वह किसी को खोजने लगा। तभी उस जगह पर भगवान श्री गणेश एक बालक के रूप में प्रकट हुए। तब विभीषण ने बालक को भगवान रंगनाथ की मूर्ति पकड़ा कर उसे जमीन पर न रखने की प्रार्थना की।
विभीषण के स्नान करने जाने पर श्री गणेश ने रंगनाथ की उस मूर्ति को जमीन पर रख दिया। जब विभीषण स्नान कर वापिस आया, तो उसने मूर्ति जमीन पर रखी पाई। उसने मूर्ति को उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह उसे उठा न पाया। ऐसा होने पर उसे बहुत क्रोध आया। वह बालक की खोज करने लगा। बालक रुप में भगवान गणेश भागते देख कर वह उसका पीछा करने लगा। पर्वत के शिखर पर पहुंच कर आगे रास्ता होने पर श्री गणेश रुक गए। विभीषण ने उस बालक को देख कर क्रोध में उसके सिर पर वार कर दिया। ऐसा होने पर भगवान गणेश ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। भगवान गणेश के वास्तविक रूप को देखकर विभीषण ने उनसे क्षमा मांगी। उस समय से ही भगवान श्री गणेश पर्वत की चोटी पर ऊंची पिल्लयार के रूप में विराजमान हैं।
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आज भी भगवान गणेश के सिर पर चोट का निशान
कहा जाता है कि विभीषण ने भगवान गणेश के सिर पर जो वार किया था, उस चोट का निशान आज भी इस मंदिर में मौजूद भगवान गणेश की प्रतिमा के सिर पर देखा जा सकता है।
मंदिर में मनाएं जाने वाले उत्सव
ऊंची पिल्लयार मंदिर में भगवान गणेश की प्रतिदिन छह आरतियां की जाती है। यहां पर आदि पूरम और पंगुनी पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाएं जाते हैं।
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प्रदीप शाही