आखिर किसने बहाई समुद्र में हनुमद रामायण ?

-29 भाषाओं में हैं उपलब्ध रामायण
सदियों से भगवान श्री विष्णु हरि के अवतार मर्यादा पुरुषोतम प्रभु श्री राम के इस धरती पर अवतरित होने की समूची गाथा को महर्षि वाल्मीकि द्वारा सबसे पहले रचित वाल्मीकि रामायण को ही सबसे चर्चित व सटीक पावन रामायण का दर्जा प्राप्त है। परंतु, क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री राम के परम भक्त श्री हनुमान जी ने तो महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित बाल्मीकि रामायण से पहले ही हनुमद रामायण की रचना कर दी थी, लेकिन हनुमान जी ने अपनी रचित हनुमद रामायण को समुद्र में फेंक दिया था। आखिर श्री हनुमान ने एेसा क्यों किया। इस बाबत शास्त्रों में एक गाथा का उल्लेख भी है।

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कितनी भाषाओं में रचित की गई रामायण
भगवान श्री राम की समूची जीवन गाथा रामायण की कई भाषाओं में रचना की गई। इनमें से महर्षि वाल्मीकि की वाल्मीकि रामायण सबसे अधिक चर्चिच है। मौजूदा समय में कुल 29 तरह की रामायण उपलब्ध है। अध्यात्म रामायण, वाल्मीकि की ‘रामायण’ (संस्कृत), आनंद रामायणस ‘अद्भुत रामायण’ (संस्कृत), रंगनाथ रामायण (तेलुगु), कवयित्री मोल्डा रचित मोल्डा रामायण (तेलुगु), रूइपादकातेणपदी रामायण (उड़िया), रामकेर (कंबोडिया), तुलसीदास की रामचरित मानस (अव‍धी), कम्बन की इरामावतारम (तमिल), कुमार दास की ‘जानकी हरण’ (संस्कृत), मलेराज कथाव (सिंहली), किंरस-पुंस-पा की काव्यदर्श (तिब्बती), रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी), हिकायत सेरीराम (मलेशियाई भाषा), रामवत्थु (बर्मा), रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर), तैरानो यसुयोरी की ‘होबुत्सुशू’ (जापानी), फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस), भानुभक्त कृत रामायण (नेपाल), अद्भुत रामायण, रामकियेन (थाईलैंड), खोतानी रामायण (तुर्किस्तान), जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा), मसीही रामायण (फारसी), शेख सादी मसीह की दास्तान-ए राम व सीता, महालादिया लाबन (मारनव भाषा, फिलीपींस), दशरथ कथानम (चीन), हनुमन्नाटक (हृदयराम-1623), कंबद रामायण (एक राक्षस की लिखित) उपलब्ध हैं। इसके अलावा श्री हनुमान जी की ओऱ से लिखित हनुमद रामायण को सबप्रथम रामायण होने का गौरव हासिल है।

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सर्वप्रथम हनुमान जी ने की थी हनुमद रामायण की रचना …
शास्त्रों अनुसार विद्वानों का मत है कि सर्वप्रथम श्री राम कथा को श्री हनुमान जी ने लिखा था। हनुमान जी ने यह गाथा एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। इस श्री राम कथा को महर्षि वाल्मीकि जी की रामायण से भी पहले लिखा गया माना गय़ा। हनुमान जी की ओर से लिखी गई इस राम कथा को हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता है।
कहते हैं कि जब भगवान श्री राम, लंकापति रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या में राज करने लगते हैं। श्री हनुमान जी हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले जाते हैं। वहां पर वह भगवान शिव की तपस्या दौरान एक शिला पर प्रतिदिन अपने नाखून से रामायण की कथा लिखते थे। इस तरह उन्होंने प्रभु श्रीराम की महिमा का संपूर्ण उल्लेख हनुमद रामायण में कर दिया। इसके कुछ समय बाद महर्षि वाल्मीकि ने भी वाल्मीकि रामायण की रचना की। रामायण को लिखने के बाद उनके मन में श्रीराम कथा को भगवान शंकर को समर्पित करने की इच्छा हुई। वे अपनी रामायण लेकर भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंच गए। वहां पहुंच कर उन्होंने हनुमान जी की रचित ‘हनुमद रामायण को देखा। हनुमद रामायण के दर्शन कर महर्षि वाल्मीकि जी निराश हो गए।
महर्षि वाल्मीकि जी को निराश देखकर हनुमान जी ने उनसे उनकी निराशा का कारण पूछा तो महर्षि बोले कि उन्होंने बड़े ही परिश्रम से श्री रामायण की रचना की । परंतु आपकी रामायण देखकर लगता है कि अब मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी। आपकी रचित रामायण समक्ष मेरी रामायण तो कुछ भी नहीं है। तब महर्षि वाल्मीकि जी की चिंता का निवारण करते हुए श्री हनुमानजी ने हनुमद रामायण पर्वत शिला को एक कंधे पर उठाया और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि को बिठाकर समुद्र के पास गए। वहां पर उन्होंने स्वयं द्वारा रचित श्रीराम कथा को समुद्र के समर्पित कर दिया। माना जाता है यह हनुमद रामायण आज भी समुद्र की गहराईों में पड़ी है।

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हनुमानजी द्वारा लिखी रामायण को समुद्र में फेंक दिए जाने के बाद महर्षि वाल्मीकि ने कहा कि हे राम भक्त श्री हनुमान, आप धन्य हैं! आप जैसा कोई दूसरा ज्ञानी और दयावान नहीं है। आपकी महिमा का गुणगान करने के लिए मुझे एक जन्म और लेना होगा। और मैं वचन देता हूं कि कलयुग में मैं एक और रामायण लिखने के लिए जन्म लूंगा। तब मैं यह रामायण आम लोगों की भाषा में लिखूंगा। माना जाता है कि राम चरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास कोई और नहीं बल्कि महर्षि वाल्मीकि का ही दूसरा जन्म था। तुलसी दास जी अपनी रामचरित मानस लिखने के पूर्व हनुमान चालीसा लिखकर हनुमानजी का गुणगान करते हैं। हनुमान जी से मिलने वाली प्रेरणा से ही वे फिर रामचरित मानस लिखते हैं।
यह भी माना जाता है कि कालीदास के काल में एक पट्टलिका को समुद्र के किनारे पाया गया था। जिसे एक सार्वजनिक स्थान पर टांग दिया गया था। ताकि विद्यार्थी उस पर लिखी गूढ़ लिपि को समझ उसका अर्थ निकाल सकें। कालिदास ने उसका अर्थ निकाल लिया था। वह यह जान गए थे कि ये पट्टलिका श्री हनुमान जी द्वारा रचित हनुमद रामायण का ही एक अंश है। जो कि जल के साथ प्रवाहित होकर यहां तक आ गया है। महाकवि तुलसीदास के हाथ वहीं पट्टलिका लग गई थी। उसे पाकर तुलसीदास ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना कि उन्हें हनुमद रामायण के श्लोक का एक पद्य प्राप्त हुआ है।

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क्या है आध्‍यात्म रामायण?
कहते है कि सबसे पहले भगवान श्री राम कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म कागभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी तरह से याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा आध्यात्म रामायण के नाम से विख्यात है। यह भी कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि से पहले ही कागभुशुण्डि ने भगवान शंकर द्वारा सुनाई रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।
जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया थाष तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें भगवान ब्रह्मा जी के पास भेज देते हैं। ब्रह्मा जी गुरुड़ को भगवान शंकर जी के पास भेज दिया। तब भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए कागभुशुण्डि जी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डि जी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया।

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महर्षि वाल्मीकि है रामायण सर्वोपरि
वैदिक साहित्य के बाद जो राम कथाएं रचित हुई। उनमें महर्षि वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे। उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद श्री राम का राज्याभिषेक हो चुका था। एक दिन वह वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे। उन्होंने एक व्याघ द्वारा क्रौंच पक्षी को मारे जाने की हृदयविदारक घटना देखी। तभी उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा। बस यहीं से श्री राम कथा को लिखने की प्रेरणा मिली। महर्षि वाल्मीकि ने राम से संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखते और सुनते हुए रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि रामायण सिर्फ छह ही कांड थे। उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया था। अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्य-विशेष है। कहा जाता है कि इस ग्रंथ के भी महर्षि वाल्मीकि रचियता थे। किंतु शोधकर्ताओं अनुसार इन दोनों रामायण की भाषा और रचना अलग है। महर्षि वाल्मीकि यह चाहते थे कि उनकी रचित रामायण में कोई भी विवादित विषय न हो। क्योंकि वह श्रीराम को एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में ही स्थापित करना चाहते थे।

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प्रदीप शाही

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