विश्व का इकलौता शिवलिंग जिसमें दिखती हैं इंसानी नसें..

जतिन शर्मा

भोलेनाथ की पूजा देश के हर कोने में की जाती है। पूरे देश में अनूठे व प्राचीन शिवलिंग स्थापित हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शिवलिंग के दर्शन करवाने जा रहे हैं जिसे पांडवों ने स्थापित किया था। इस शिवलिंग के ऊपर इंसानी शरीर की नसों जैसी आकृतियां बनी हुई हैं जो इसे विशेष बनाती हैं। इस पावन स्थान को मुक्तेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है। यहीं पर भगवान शिव ने पांडवों को युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद दिया था।

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मुक्तेश्वर धाम

पंजाब के जिला पठानकोट के अर्धपहाडी क्षेत्र धार के गांव डूंग में स्थित है यह पावन स्थान जिसे मुक्तेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है। पठानकोट से इस स्थान की दूरी 20 किलोमीटर के करीब है। इस स्थान पर पांडवों ने 5 गुफाओं का निर्माण किया था। जिस गुफा में यह पावन शिवलिंग स्थापित है वहां पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अंतिम समय व्यतीत किया था। सबसे बड़ी गुफा में पांडवों द्वारा स्थापित पावन शिवलिंग के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि द्वावर युग में शिवलिंग के पास दूध की धारा निरंतर बहती थी। कलियुग में यह पानी की निरंतर धारा में बदल गयी। लेकिन अब यह पानी की धारा भी अस्तित्व में नहीं हैं। मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग पर बनी रेखाओं को कुछ समय के लिए अगर सच्चे मन से ध्यान लगाकर देखा जाए तो भगवान शिव साक्षात दर्शन देते हैं और हर मनोकामना पूरी होती है।

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इसके अलावा इस स्थान पर जिन अन्य 4 गुफाओं का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। उन गुफाओं में एक गुफा भीम की थी जो पहाड़ की पिछली ओर बनाई गई थी। लेकिन यह गुफा कुछ साल पहले झील में समा कर खंडित हो चुकी है। एक गुफा में ध्यान कक्ष बनाया गया था। जबकि एक गुफा को मन्दिर कमेटी द्वारा अब मौजूदा समय में भंडार कक्ष का रूप दे दिया गया है।

मुख्य गुफा में युधिष्ठर का सिंहासन, द्रोपदी की रसोई भी मौजूद है। मान्यता है कि युधिष्ठर अपने इसी सिंहासन पर बैठकर ही अन्य भाईयों के साथ विचार विमर्श किया करते थे।

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इस स्थान पर युधिष्ठर का धूना भी मौजूद है। द्रोपदी की रसोई के पास अर्जुन ने पानी की व्यवस्था के लिए तीर चलाकर एक बावड़ी  का निर्माण भी किया था। इस बावड़ी की विशेषता है कि रावी नदी में जल स्तर कम हो जाने के बावजूद इसका पानी कभी नहीं सूखता । इन गुफाओं में आज भी अर्जुन के तीरों के निशान देखने को मिलते हैं। गुफा के अंदर की गई शिल्पकारी विशेष दर्शनीय है। गुफाओं की दीवारों पर देवी देवताओं की आकृतियां उकेरी गई हैं। दीवारों के अलावा गुफा की छत पर भी अदभुत आकृतियों के दर्शन होते हंै। गर्भ गुफा के प्रवेश द्वार के पास छत पर भगवान शिव की आकृति बनी है।  ध्यान कक्ष में छत पर श्री यंत्र की आकृति बनी हुई है।

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मुक्तेश्वर धाम को कहते हैं मिनी हरिद्वार

मुक्तेश्वर धाम को मिनी हरिद्वार के रूप में भी जाना जाता है। यहां लोग अस्थियां प्रवाहित के लिए भी आते हैं। इस स्थान पर पितृ दान भी किया जाता है। यहां पर काल सर्प दोष को दूर करने के लिए पूजा करवाई जाती है। इस स्थान से जुड़ी एक खास बात यह है कि यहां पर भगवान शिव के दर्शन करने व पूजा करवाने से गौ हत्या के पाप से भी मुक्ति मिलती है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर यहां तीन दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में भारी संख्या में दूर दराज से भगवान शिव के भक्त पहुंचते हैं। इसके अलावा नवरात्रों व सावन के महीने के साथ ही होली के पर्व पर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते  हैं।

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यहां पर था भीम का कोल्हू

इस स्थान पर तेल निकालने के लिए भीम का कोल्हू भी हुआ करता था। कहते हैं कि एक बार जब कोल्हू से तेल नहीं निकला तो क्रोधित होकर भीम ने कोल्हू को उखाड़ कर दूर फेंक दिया। जहां भीम का कोल्हू गिरा था, वर्तमान समय में वह स्थान जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में है। इस स्थान पर भी भगवान शिव का मंदिर बना हुआ है।

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