प्रभु श्री राम ने अपने वनवास में किया इनका उद्धार

-14 साल के वनवास में 12 साल वनों में ही बिताए

प्रदीप शाही

यह पूर्णतया सत्य है कि भगवान जब भी इस धरती पर अवतरित हुए। तो उन्होंन अपनी लीलाओं से जनमानस का उद्धार ही किया। सतयुग के बाद शुरु हुए त्रेतायुग में भगवान श्री विष्णु हरि जी ने भगवान श्री राम के रुप में अवतार लेकर जनमानस पर हो रहे अत्याचार को समाप्त करते हुए शांति की स्थापना की। तभी तो आज भी भगवान श्री राम के राज को राम राज कह के पुकारा जाता है। भगवान श्री राम ने अपने 14 साल के वनवास के दौरान 12 साल वनवास में व्यतीत किए। जबकि अंतिम दो साल उन्होंने अपने छोटे भ्राता लक्ष्मण व अन्य सहयोगियों संग मिल कर देवी सीता को ढूंडने में बिताए। श्री राम अपने वनवास काल के दौरान जहां भी रहे। उन्होंने जनमानस पर बिना कोई भेदभाव करते हुए उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपना वातस्लय लुटाया। या यूं कहें कि उन्होंने जनमानस का उद्धार किया। आईए, आज आपको भगवान श्री राम के वनवास के दौरान किए गए महत्वपूर्ण कामों के बारे विस्तार से जानकारी प्रदान करें। आखिर क्या थे वह काम।

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राक्षसी शक्तियों से ऋषियों की दिलाई मुक्ति

प्रभु श्री राम ने अपने बनवास काल के दौरान ऋषि विश्‍वामित्र, ऋषि अत्रि, अगस्त्य मुनि जैसे कई अन्य ऋषियों के आश्रमों को असुरी और राक्षसी शक्तियों से मुक्ति दिलाई। इतना ही नहीं श्री राम ने वनवास के दौरान कई राक्षसों और असुरों का वध भी किया। दंडकारण्य क्षेत्र में ऋषि अत्रि का आश्रम था। यहां पर आदिवासियों की संख्या अधिक थी। भगवान श्री राम ने इस क्षेत्र में अपने वनवास के 10 साल का समय आदिवासियों के विकास में प्रदान किया। इस क्षेत्र में राक्षस बाणासुर का आतंक था। जिसे श्री राम ने समाप्त किया। इतना ही नहीं श्री राम ने वनवासी व आदिवासियों को धनुष व वाण का निर्माण करना सिखाया। साथ ही नग्न रहने वाले आदिवासियों को तन ढ़कने और गुफाओं के प्रयोग करने की जानकारी दी। श्रीराम ने ही सब से पहले भारत की सभी जातियों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का काम किया। दंडकारण्य क्षेत्र मौजूदा समय में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का क्षेत्र माना जाता है। गौर हो तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड के देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी प्रभु श्री राम जिंदा हैं।

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बाली का वध कर सुग्रीव को दिलाया न्याय

श्री राम की वनवास के दौरान हनुमान जी औऱ सुग्रीव से मुलाकात हुई। तब हनुमान जी और सुग्रीव ने श्री राम को अपनी समूची व्यथा सुनाई कि किस तरह से बालि ने उसकी पत्नी को बलपूर्वक अपने कब्जे में ले लिया औऱ उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। प्रभु श्री राम सुग्रीव की व्यथा सुन भावुक हो गए। तब उन्होंने बालि को छुपकर तीर से मार दिया। जब बालि और सुग्रीव में मल्ल युद्ध चल रहा था। यह भी कहा जाता है कि प्रभु श्री राम ने त्रेतायुग में जिस तरह से बाली को छुपकर तीर मारा था। उसी तरह से द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण माया रच कर बाली को जरा नामक बहेलिया बनाया। और अपने लिए वैसी ही मृत्यु को चुना। जैसी उन्होंने श्री राम के रुप में बाली को दी थी।

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श्री राम ने किया विशाल सेना का गठन

यह सर्वविदित है कि प्रभु श्री राम को 14 साल का वनवास मिला था। 12 साल का वनवास अपने समापन पर था। तभी देवी सीता का लंकापति रावण की ओर से हरण कर लिया गयाष तब श्री राम के अंतिम दो साल देवी सीता को ढूंडने और लंकापति रावण का वध करने में ही समाप्त हो गए। इस समय दौरान श्री राम ने  वानर सेना का गठन किया। इस दौरान उन्होंने वनवासी और आदिवासियों के अलावा निषाद, वानर, मतंग और रीछ समाज के लोगों को भी धर्म, कर्म और वेदों की शिक्षा प्रदान करते हुए एक विशाल सेना का गठन किया।

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रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना

श्री रामायण अनुसार प्रभु श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने  से पहले रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा की थी। पूजा करने के लिए प्रभु श्री राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित किया। सबसे खास बात यह है कि इस शिवलिंग स्थापना के लिए उन्होंने महापंडित लंकापति रावण को बतौर पुरोहित के रूप में बुलाया था। जहां पर महापंडित रावण ने श्री राम को विजय की आशीर्वाद भी प्रदान किया था।

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समुद्र के उपर सेतू का निर्माण किया

प्रभु श्रीराम ने लंका पर विजय हासिल करने के लिए नल और नील की मदद से इस संसार का पहला सेतु यानि कि पुल का निर्माण किया। कहा जाता है कि नल और नील इमारतें, पुल निर्माण करने में माहिर थे। नल और नील को पानी पर भी सेतू निर्माण की जानकारी थी। प्रभु श्री राम ने पुल निर्माण के बाद इस पुल को नल और नील को समपर्ति करते हुए इस सेतू का नाम नल और नील सेतू रखा था। परंतु मौजूदा समम में इस सेतू को राम सेतू के नाम पहचाना जाता है। हजारों साल के बाद भी इस सेतू के अवशेष मौजूद हैं। जो रामायणकाल की प्रमाणिकता को सिद्ध करते है।

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श्री राम ने हनुमान जी और जामवंत को दिया चिंरजीवी होने का वरदान

त्रेतायुग में अवतरित हुए प्रभु श्री राम के वनवास काल के दौरान कई लोगों ने मदद की। परंतु हनुमान जी और जामवंत जी ने अपना समूचा जीवन ही श्री राम को समर्पित कर दिया। श्री राम ने हनुमान जी औऱ जामवंत की समर्पण की भावना को देखते हुए उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान दिया।

श्री राम और लंकापति रावण के मध्य हुए भीष्ण युद्ध में जामवंत, प्रभु श्री राम जी की सेना के सेनापति थे। लंका पर विजय हासिल करने के बाद जब श्री राम, देवी सीता और अपने छोटे भ्राता लक्ष्मण संग अयोध्या लौटने लगे। तब जामवंत जी ने कहा कि प्रभु इतना भीष्ण युद्ध हुआ। मगर मेरे शरीर से पसीने की एक बूंद तक धरती पर नहीं गिरी। जामवंत की बात सुन कर प्रभु श्रीराम केवल मुस्कुरा दिए। और उन्होंने जामवंत को कोई भी उत्तर नहीं दिया। प्रभु श्री राम तुरंत समझ गए कि जामवंत जी में अहंकार का वास हो चुका है। एक बार फिर जामंवत कहने लगे प्रभु इस युद्ध में इतने लोगों ने हिस्सा लिया। परंतु मुझे वीरता दिखाने का कोई भी सही अवसर हासिल नहीं हुआ। मेरी युद्ध करने की इच्छा मन में ही रह गई। तब प्रभु श्री राम ने कहा जामवंत जी आपकी यह इच्छा जरुर पूरी होगी। मैं जब द्वापर युग में अवतार लूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रह कर तपस्या करते रहो। त्रेतायुग के बाद द्वापर युग में भगवान श्री विष्णु हरि जी ने एक बार फिर भगवान श्री कृष्ण के रुप में अवतार लिया। प्रभु श्री कृष्ण और जामवंत का आमना सामना हुआ। परंतु जामवंत श्री कृष्ण को पहचान न सके। दोनों में भीष्ण युद्ध छिंड़ गया। जामवंत जब श्री कृष्ण से हारने लगे। तब उन्होंने अपने आराध्य श्री राम का सिमरन करते हुए उनकी रक्षा करने की गुहार लगाई। जैसे ही जामवंत जी ने श्री राम का सिमरन किया। तो श्री कृष्ण, प्रभु श्री राम के रुप में प्रकट हो गए। तब श्री कृष्ण जी ने कहा कि आज आपकी युद्ध करने की इच्छा पूरी हो गई। जामवंत अपने आराध्य को सामने देखकर रोने लगे। उनकी आंखों से आंसूओं की धारा बहने लगी।

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